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Budget 2021: पेट्रोल-डीजल, शराब सहित इन वस्तुओं पर लगाया गया कृषि सेस, जानें- आम उपभोक्‍ता पर क्या पड़ेगा असर

पेट्रोल पर ढाई रुपये प्रति लीटर और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस लगाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि इस सेस का उपभोक्‍ताओं को अतिरिक्‍त बोझ नहीं पड़ेगा। वित्त मंत्री ने कहा उपभोक्‍ता पर समग्र रूप से कृषि सेस का कोई अतिरिक्‍त भार नहीं पड़ेगा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 01 Feb 2021 05:09 PM (IST)Updated: Sat, 06 Feb 2021 07:42 AM (IST)
केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन बजट पेश करने के दौरान (फोटो: एएनआई)

नई दिल्ली, जेएनएन। वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट में डीजल- पेट्रोल, शराब सहित कई वस्तुओं पर कृषि सेस लगाने का फैसला किया है। पेट्रोल पर ढाई रुपये प्रति लीटर और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस लगाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, इस सेस का उपभोक्‍ताओं को अतिरिक्‍त बोझ नहीं पड़ेगा। वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कृषि सेस (Imposition of Agriculture Infrastructure and Development Cess) को बढ़ाने के साथ ही बेसिक एक्‍साइज ड्यूटी और एडिशनल एक्‍साइज ड्यूटी के रेट को कम कर दिया गया है। इसके कारण उपभोक्‍ता पर समग्र रूप से कृषि सेस का कोई अतिरिक्‍त भार नहीं पड़ेगा।

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 शराब होगी महंगी

इम्पोर्टेड शराब पर सरकार ने 100 फीसद सेस लगा दिया है। इसे लगने के बाद शराब की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी होगी। सरकार ने घोषणा की है कि नया एग्री इन्फ्रा डेवलपमेंट सेस कल से ही लागू हो जाएगा। इस हिसाब से कल से शराब पीना भी महंगा होगा, क्योंकि बजट में अल्कोहलिक बेवरेज पर 100 फीसद एग्री इन्फ्रा सेस लगाया है। शराब पर सौ फीसद सेस बढ़ने के बाद शराब की कीमतों में इजाफा होना तय है। अलग-अलग राज्यों में शराब की कीमतों अलग है। शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। ऐसे में विभिन्न राज्यों में शराब की कीमतों में लगने वाले टैक्स की दर से हिसाब से कीमतों में इजाफा होगा। 

सेस के नये फार्मूले से राजस्व बढ़ाने की कवायद

कृषि क्षेत्र से जुड़े ढांचागत विकास के नाम पर केंद्र सरकार ने एक दर्जन आयातित उत्पादों के अलावा पेट्रोल, डीजल पर भी सेस (अधिभार) लगाने के जो उपाय किये हैं, उसको लेकर आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है। खास तौर पर भाजपा विरोधी राज्य इसे एक बड़े मुद्दे की तरह उठा सकते हैं क्योंकि इस कदम का असर राज्यों को केंद्र की तरफ से जो राजस्व हिस्सेदारी दी जाती है उसमें होगी। आम बजट 2021-22 पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल पर क्रमश 2.50 रुपये और चार रुपये प्रति लीटर की दर से एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस (एआइडीसी) लगाने का फैसला किया है। राहत की बात यह है कि इन उत्पादों की खुदरा कीमतों में कोई वृद्धि नहीं होगी, क्योंकि इन पर लगने वाले सीमा शुल्क या उत्पाद शुल्क में उसी हिसाब से कटौती की गई है।

इन आयातित उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स

जिन आयातित उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने का फैसला किया गया है उनमें सोना, चांदी, अल्कोहलिक बेवरेजेज (शराब), क्रूड पाम ऑयल, क्रूड सोयाबीन व सनफ्लावर ऑयल, सेब, कोयला, लिग्नाइट, यूरिया व दूसरे उर्वरक, मटर, काबुली चना, काला चना, मसूर दाल और सोना है। आयातित शराब पर एआइडीसी की दर 100 फीसद तय की गई है, जबकि सबसे कम कोयला व लिग्नाइट पर महज 1.5 फीसद की दर तय की गई है।

ग्राहकों पर नहीं पड़ेगा बोझ

वित्त मंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि इनमें से अधिकांश उत्पादों के मामले में ग्राहकों को ज्यादा कीमत नहीं देनी पड़ेगी। आयातित शराब की कीमत बढ़ने की संभावना है। पेट्रोल व डीजल पर लगे सेस के बारे में उन्होंने कहा कि, इन उत्पादों पर एआइडीसी लगाने के साथ ही हम यह सुनिश्चत कर रहे हैं कि इन पर लगने वाले बेसिक एक्साइज शुल्क और स्पेशल एडिशनल एक्साइज शुल्क को भी समायोजित किया जाए ताकि ग्राहकों पर कई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़े।

राज्यों को बढ़ेगी मुश्किल

अधिभार लगाने का यह तरीका राज्यों को इसलिए नागवार गुजरेगा कि इससे जो राजस्व सरकार को मिलेगा उसे वह राज्यों के साथ साझा नहीं करेगी। अधिभार पूरी तरह से केंद्र सरकार लगाती है और इसका संग्रह वह अपने पास रखती है। दूसरी तरफ उत्पाद शुल्क, विशेष उत्पाद शुल्क या आयात शुल्क से जो राशि मिलती है उसका 42 फीसद राज्यों के साथ साझा करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर केंद्र सरकार अभी ब्रांडेड ब्लेंडेड पेट्रोल पर 34.16 रुपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क लगाती है, जबकि डीजल पर 34.19 रुपये प्रति लीटर का केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगता है। इससे चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 1,31,545 करोड़ रुपये की राशि हासिल हुई हई। अभी तक इसमें से 42 फीसद हिस्सा राज्यों को देना होगा, लेकिन अब केंद्र ने चतुराई से उत्पाद शुल्क की राशि घटा कर उसकी जगह अधिभार लगा दिया है। यानी जो कुल राजस्व हासिल होगा उसमें से कम हिस्सा ही राज्य के पास जाएगा और अधिभार के तौर पर जो संग्रह होगा वह केंद्र का होगा। एक तरह से देखा जाए तो केंद्र का अपना राजस्व भी बढ़ेगा और ग्राहकों पर कोई अतिरिक्त बोझ भी नहीं बढ़ेगा, लेकिन स्पष्ट है कि राज्यों की हिस्सेदारी कम होगी।


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