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Wheat Export: सरकार ने क्‍यों रोका गेहूं का निर्यात और क्‍या हैं इसके मायने? जानें एक्‍सपर्ट के विचार

Wheat Export इस समय तमाम देश गेहूं की आपूर्ति के लिए भारत की ओर देख रहे हैं। परंतु इस वर्ष अपेक्षाकृत कम उत्पादन के कारण केंद्र सरकार ने गेहूं का निर्यात रोक दिया है जो हमारी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से उचित ही कहा जाएगा।

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 20 May 2022 08:06 AM (IST)Updated: Fri, 20 May 2022 10:21 AM (IST)
Wheat Export: सरकार ने क्‍यों रोका गेहूं का निर्यात और क्‍या हैं इसके मायने? जानें एक्‍सपर्ट के विचार
Why Modi Government Stopped Wheat Export and How India Will Benefit From This Ste

नई दिल्‍ली, प्रो. लल्‍लन प्रसाद। हाल ही में भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर जो रोक लगाई है, उसका अमेरिका और यूरोप तक के देशों में विरोध हुआ है। वहां गेहूं की कीमतों में उछाल आ गया। रूस और यूक्रेन भी गेहूं के बड़े उत्पादक देश हैं, उनके द्वारा विश्व बाजार में जो गेहूं जा रहा था उसकी आपूर्ति बाधित हो चुकी है। गेहूं के निर्यात में अप्रत्याशित वृद्धि हुई जिससे भारतीय किसानों को अच्छा लाभ मिला। सरकार को न्यूनतम मूल्य पर फसल देने के बजाय किसान खुले बाजार में अनाज बेचना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि वहां अच्छी कीमत मिलने लगी है। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण है इस बार देश में अधिक तापमान के कारण गेहूं के उत्पादन में कमी होना और साथ ही हमारी अपनी घरेलू आवश्यकता में वृद्धि होना।

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उल्लेखनीय है कि सितंबर 2022 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना लागू रहेगी, जिसके अंतर्गत लगभग 80 करोड़ लोगों को पांच किलो राशन प्रतिमाह मुफ्त दिया जाता है। सरकार के पास गेहूं का स्टाक सीमित है। सरकार ने गेहूं के निर्यात पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसमें कुछ ढील दी गई है। अब तक निर्यात के जो सौदे किए जा चुके हैं उन्हें पूरा किया जाएगा, साथ ही पड़ोसी देशों को अन्न संकट से उबारने के लिए यदि उन्हें अनाज देना पड़ा तो सरकार इस पर विचार करेगी।

वैश्विक समस्या

महंगाई आज विश्वव्यापी समस्या है, जिससे भारत भी अछूता नहीं है। पिछले कुछ महीनों से कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। ऊर्जा के साधनों- कच्चे तेल, डीजल, गैस आदि के लिए भारत अपनी आवश्यकता का 80 प्रतिशत विदेश से आयात करता है, जिसके लिए भारी विदेशी मुद्रा देनी पड़ती है। इनकी कीमतों में वृद्धि न केवल विकास दर को प्रभावित करती है, बल्कि सभी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का कारण बनती है। अप्रैल 2022 में कच्चे तेल का प्रतिदिन औसतन 102.7 डालर प्रति बैरल के दर से आयात हुआ। देश के अंदर उपभोक्ताओं को 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक दर पर पेट्रोल खरीदना पड़ रहा है। डीजल और गैस की कीमतों में भी वृद्धि हुई है। खाद्य पदार्थो सहित सभी चीजों की कीमतों में उछाल आ गया। थोक कीमतों का सूचकांक 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गया जो 27 वर्षो का रिकार्ड है। वहीं खुदरा कीमतों का सूचकांक 7.9 प्रतिशत पर आ कर पिछले एक दशक का रिकार्ड तोड़ गया। डालर के मुकाबले रुपये की कीमत भी गिरी, लोगों की क्रय शक्ति में कमी आई, आम आदमी का बजट प्रभावित हुआ। खाद्य तेल, घी 17.3 प्रतिशत, सब्जियां 15.4 प्रतिशत, मसाले 10.6 प्रतिशत, खाद्य पदार्थ 8.4 प्रतिशत, अंडा, मांस, मछली 6.4 प्रतिशत, अनाज छह प्रतिशत, दूध 5.5 प्रतिशत और दालें 1.9 प्रतिशत महंगी हुई हैं।

वैश्विक बाजार की तुलना में भारत में अनाज की कीमतें नियंत्रण में

वैसे विश्व बाजार की तुलना में देखा जाए तो भारत में अनाज की कीमतें अभी भी काफी हद तक नियंत्रण में है। कोविड महामारी के शुरू से भारत सरकार गरीबों को पांच किलो राशन प्रतिमाह मुफ्त दे रही है, जो कीमतों में वृद्धि से उन्हें राहत दिलाती रही है। इससे अत्यंत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या नहीं के बराबर हो गई है। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने एवं इमरजेंसी की स्थिति में पर्याप्त खाद्यान्न स्टाक में रखने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। फूड सब्सिडी पर भारत सरकार का खर्च 2020-21 में 2.94 लाख करोड़ रुपये था जो वर्तमान वित्त वर्ष में 3.94 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने की उम्मीद है। गेहूं की पैदावार इस वर्ष 10.5 करोड़ टन तक ही सीमित रहने की उम्मीद है जो निर्धारित लक्ष्य से 5.7 प्रतिशत कम है। सरकार के स्टाक में कुल 3.75 करोड़ टन बताया जा रहा है, जिसमें से 2.6 करोड़ टन सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में जाएगा। साथ ही 75 लाख टन इमरजेंसी के लिए रखा जाएगा। सितंबर 2022 तक के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत एक करोड़ टन अनाज की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति में सरकार को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में अतिरिक्त अनाज खरीदने और भंडारण की आवश्यकता पड़ सकती है। खाद्य पदार्थो के अलावा परिवहन किराया, कपड़े, जूते, प्लास्टिक और मेटल्स के सामान, इलेक्ट्रानिक सामान एवं रोजमर्रा के उपभोग की अधिकांश वस्तुएं एवं सेवाएं महंगी हो गई हैं। समाचार पत्र का कागज भी महंगा होता जा रहा है, रूस और यूक्रेन दोनों ही इसके बड़े आपूर्तिकर्ता हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक का प्रयास

कीमतों पर नियंत्रण के लिए रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति रोकने के प्रयास करती रही है। पिछले दो वर्षो में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया, मई 2022 के पहले सप्ताह में रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि कर दी। ब्याज दर जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को कर्ज देता है वह चार प्रतिशत से बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया गया। साथ ही कैश रिजर्व रेशियो (वाणिज्यिक बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपनी जमाराशि का जितना प्रतिशत नकद रखना पड़ता है) उसमें 50 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की, जिसके फलस्वरूप 87000 करोड़ रुपये बैंकिंग व्यवस्था से बाजार में आने से रोका जा सकेगा। बाजार में प्रचलन में मुद्रा कम करना कीमतों में उछाल रोकने का एक कारगर उपाय माना जाता है।

हालांकि रेपो रेट बढ़ने से हाउसिंग लोन पर ईएमआइ बढ़ने और निवेश के लिए पूंजी की कमी की आशंका बढ़ जाती है। देश की मुद्रा की कीमत में गिरावट भी कीमतों में बढ़ोतरी लाती है। हाल के महीनों में भारतीय मुद्रा डालर के मुकाबले में काफी कमजोर हुई है, 77 रुपये प्रति डालर अब तक की सबसे कमजोर स्थिति है। रुपये की कीमत में गिरावट के प्रमुख कारण है अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में वृद्धि, रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल के आयात पर बढ़ता खर्च जिसका भुगतान डालर में करना होता है। रिजर्व बैंक अपनी मुद्रा नीति के जरिए रुपये में गिरावट पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है।

कीमतों में बढ़ोतरी के प्रमुख कारण होते हैं कम उत्पादन और अधिक मांग एवं आपूर्ति में बाधा। वर्तमान परिस्थिति में आपूर्ति में बाधा मुख्य कारण है, जो आंतरिक भी है और बाहरी भी। देश में कारखानों में उत्पादन की गति धीमी है, मौसम की मार से कृषि उत्पादन भी प्रभावित है। ऊर्जा के साधनों एवं कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से कल कारखानों में बनने वाले अधिकांश सामान महंगे हो गए हैं। औद्योगिक विकास का सूचकांक मार्च 2022 में मात्र 1.9 प्रतिशत था। कोविड काल में यातायात में बाधा कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण था। रूस-यूक्रेन युद्ध एवं अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा प्रतिबंध इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं के आयात निर्यात में रुकावट लाई है जो विश्व बाजार में कीमतों की उछाल का प्रमुख कारण है। रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं, जौ और अन्य खाद्य पदार्थो, कच्चा तेल और गैस, तांबा, अल्मुमिनियम, मेटल्स, रक्षा सामग्री, अमोनियम नाइट्रेट आदि के बड़े उत्पादक और निर्यातक देश हैं जिनकी आपूर्ति बाधित है। युद्ध यदि लंबा चला तो कीमतों पर नियंत्रण कठिन होता जाएगा।

रूस-यूक्रेन युद्ध पूरे विश्व को एक बड़े खाद्य संकट की ओर ले जा रहा है। करीब-करीब सभी देशों में आवश्यक खाद्य पदार्थो की कीमतों में पिछले तीन महीनों से लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। इस समय तमाम देश गेहूं की आपूर्ति के लिए भारत की ओर देख रहे हैं। परंतु इस वर्ष अपेक्षाकृत कम उत्पादन के कारण केंद्र सरकार ने गेहूं का निर्यात रोक दिया है, जो हमारी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से उचित ही कहा जाएगा।

(लेखक पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनमिक्स विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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