नई परियोजनाएं तब पहले पुरानी पूरी हों जब
नई दिल्ली [संजय सिंह]। अधूरी परियोजनाओं के बोझ से रेलवे कराह रही है। आजादी के बाद सैकड़ों सर्वे का एलान हुआ मगर काम कुछ नहीं हुआ। वहीं, करीब साढ़े तीन सौ चालू परियोजनाएं धन की कमी से घिसट रही हैं। इसके बावजूद हर साल रेल बजट में नई परियोजनाओं की घोषणा से रेल मंत्री बाज नहीं आते। अब इस चलन पर लगाम लगाने का वक्त आ गया है। उम्मीद है कि पवन कुमार बंसल इस जरूरत को समझेंगे और नई परियोजनाओं के एलान की बजाय पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान दें
नई दिल्ली [संजय सिंह]। अधूरी परियोजनाओं के बोझ से रेलवे कराह रही है। आजादी के बाद सैकड़ों सर्वे का एलान हुआ मगर काम कुछ नहीं हुआ। वहीं, करीब साढ़े तीन सौ चालू परियोजनाएं धन की कमी से घिसट रही हैं। इसके बावजूद हर साल रेल बजट में नई परियोजनाओं की घोषणा से रेल मंत्री बाज नहीं आते। अब इस चलन पर लगाम लगाने का वक्त आ गया है। उम्मीद है कि पवन कुमार बंसल इस जरूरत को समझेंगे और नई परियोजनाओं के एलान की बजाय पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान देंगे।
आजादी के बाद से अब तक नई रेल लाइनों के 400 से ज्यादा सर्वे घोषित हो चुके हैं, मगर इन पर कोई काम नहीं हुआ है। 2009 से पहले तक नई लाइनों के 399, आमान परिवर्तन के 26 और दोहरीकरण के 70 सर्वे का एलान किया जा चुका था। मगर धन की कमी से किसी पर भी आगे काम नहीं हुआ। इन सर्वे पर निर्माण कार्यो के लिए चार लाख 21 हजार 546 करोड़ रुपये की बड़ी धनराशि की जरूरत है। इसमें नई लाइनों के लिए तीन लाख 59 हजार 68 करोड़, आमान परिवर्तन के लिए 16 हजार 298 करोड़ और दोहरीकरण के लिए 36 हजार 180 करोड़ रुपये चाहिए।
सर्वे के बाद अटकी सबसे ज्यादा नई लाइन परियोजनाएं जिन राज्यों में हैं उनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू व कश्मीर व पूर्वोत्तर जैसे पर्वतीय राज्यों की 17 परियोजनाएं शामिल हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की 49, पश्चिम बंगाल की 40, बिहार की 26, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश व असम में प्रत्येक की 14-14 और पंजाब की 11 नई लाइनों पर काम शुरू होना बाकी है। आमान परिवर्तन की मध्य प्रदेश, बिहार में एक-एक, पश्चिम बंगाल में दो और उत्तर प्रदेश में तीन परियोजनाएं सर्वे से आगे नहीं बढ़ी हैं। दोहरीकरण में बिहार की चार, हरियाणा-पंजाब की तीन झारखंड की दो, मध्य प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की एक, उत्तर प्रदेश की 12 और पश्चिम बंगाल की 11 परियोजनाएं सर्वे से आगे नहीं बढ़ी हैं।
रेलवे की जो परियोजनाएं चल भी रही हैं वो घिसट-घिसट कर आगे बढ़ रही हैं। रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी द्वारा संसद में दिए गए बयान के मुताबिक ऐसी अधूरी परियोजनाओं की संख्या फिलहाल 347 है। इन्हें पूरा करने के लिए एक लाख 47 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है। हर साल रेल बजट में इन परियोजनाओं को जो पैसा आवंटित होता है वह ऊंट के मुंह में जीरा से अधिक कुछ नहीं। इन्हें पूरा करने के लिए राज्यों की मदद से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने और रेल विकास निगम की मदद से बैंकों से कर्ज लेने के प्रयास हो रहे हैं। ज्यादा अहम परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर वित्त मंत्रालय से अतिरिक्त मदद लेने का भी जुगाड़ किया जा रहा है। मगर इससे भी बात नहीं बन रही।