वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मौजूदा रणनीति बदलने की जरूरत
दुनियाभर में कारोबार के बदलते तौर तरीकों को देखते हुए भारत को भी अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। दुनियाभर में कारोबार के बदलते तौर तरीकों को देखते हुए भारत को भी अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। उद्योग संगठनों का मानना है कि विभिन्न देशों की तरफ से घरेलू उद्योगों के संरक्षण के लिए उठाए जा रहे कदमों के बाद वैश्विक कारोबार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में परिस्थितियां निरंतर बदल रही हैं। निर्यातक संघों के फेडरेशन फियो का मानना है कि भविष्य में इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का यही सही वक्त है। अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी झगड़ा चरम पर है। अमेरिका लगातार अपने बाजार को अन्य देशों के उत्पादों के लिए सीमित बना रहा है। यह जरूरी है कि अमेरिकी बाजार में उन उत्पादों की संभावनाएं तलाशी जाएं, जिनके दरवाजे भारत के लिए तो खुले हैं, लेकिन अन्य देशों के लिए बंद हो रहे हैं।
फियो के महानिदेशक डॉ. अजय सहाय ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि अमेरिका समेत यूरोप के कई देशों में भारतीय रेडिमेड गारमेंट उत्पादों के सामने बांग्लादेश चुनौती पैदा कर रहा है। उसे अमेरिका से मिल रहा टैरिफ एडवांटेज 2022 में समाप्त हो जाएगा। बांग्लादेश ने उस स्थिति का सामना करने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है और गारमेंट उद्योग को आयकर में कई रियायतें देना शुरू कर दिया है। इन स्थितियों में वह 2022 के बाद भी भारतीय गारमेंट उत्पादों को प्रतिस्पर्धा से बाहर करने की स्थिति में होगा। परिधानों के मामले में भारत को तुर्की जैसे देशों से भी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। डॉ. सहाय का कहना है कि सरकार को इन स्थितियों के देख समझ कर रणनीति बनानी चाहिए।
अमेरिका की आयात शुल्क रणनीति का जवाब देने के लिए चीन ने भी अपनी तैयारी कर ली है। बताया जाता है कि चीन ने अपने मेटल निवेश को कंबोडिया जैसे देशों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। इन देशों में अब भी उसे आयात शुल्क में रियायत उपलब्ध है। डॉ. सहाय के मुताबिक सीरिया के पुनर्निर्माण में चीन बेहद रुचि ले रहा है। सीरिया के पुनर्निर्माण पर करीब 400 अरब डॉलर का खर्च आने का अनुमान है।