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नोटबंदी को चूना लगाने में सबसे आगे रहे ज्वैलर्स, चार वर्षो की जांच के बाद अब हो रहा खुलासा

पांच लाख रुपये की सालाना आय वाले ज्वैलरों ने दो-तीन दिनों में करोड़ो रुपये जमा करा दिए।लेकिन जांच एजेंसियों की कार्रवाई में दूध का दूध और पानी का पानी होने लगा है।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 09:38 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 11:10 AM (IST)
नोटबंदी को चूना लगाने में सबसे आगे रहे ज्वैलर्स, चार वर्षो की जांच के बाद अब हो रहा खुलासा
नोटबंदी को चूना लगाने में सबसे आगे रहे ज्वैलर्स, चार वर्षो की जांच के बाद अब हो रहा खुलासा

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाली एजेंसियां पहले ही संकेत दे चुकी थीं कि नवंबर, 2016 में लागू नोटबंदी को चूना लगाने में ज्वैलर्स सबसे आगे रहे थे। तकरीबन चार वर्षो की जांच के बाद सामने आ रहे तथ्य इन एजेंसियों के संकेत को सही साबित करते हैं। नोटबंदी नौ नवंबर, 2016 को लागू की गई थी और 30 दिसंबर, 2016 के आड़े बताते हैं कि किसी ज्वैलर ने सामान्य से 93 हजार फीसद ज्यादा रकम बैंकों में जमा करवाई तो किसी ने अपनी सालाना कमाई से एक हजार फीसद ज्यादा राशि सिर्फ उक्त अवधि जमा करा दी।

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पांच लाख रुपये की सालाना आय वाले ज्वैलरों ने दो-तीन दिनों में करोड़ो रुपये जमा करा दिए। लेकिन जांच एजेंसियों की कार्रवाई में दूध का दूध और पानी का पानी होने लगा है। एक आंकड़ों की छानबीन हो रही है, जो जल्द ही पूरी हो जाएगी। आय और जमा राशि के बीच बेहद बड़े अंतर को लेकर इनसे पूछताछ हो रही है। कई ज्वैलरों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि नोटबंदी के दौरान प्रतिबंधित 500 और 1,000 रुपये के नोटों को सिस्टम में पहुंचाने में ज्वैलरों ने ही प्रमुख भूमिका निभाई है। लगभग सभी ने प्रतिबंधित नोटों को ठिकाने लगाने के लिए एक ही तरीका अपनाया है। सभी ने यही कहा है कि अक्टूबर, 2016 के अंत से उन्हें भावी खरीदारी के लिए अग्रिम मिलने शुरू हुए और यह सिलसिला दिसंबर, 2016 तक चला। लेकिन इसके पक्ष में अधिकांश ज्वैलर कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर पाये हैं।

कुछ ने अपनी खाता-बही में सोना-चांदी या आभूषण खरीदने की इंट्री की हुई है लेकिन वे सब गलत पाए गए हैं। कुछ ज्वैलरों ने करोड़ों रुपये के आर्डर बाहर से लिए हैं, लेकिन उसकी आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं की है। कई ज्वैलरों ने सैकड़ों बेनाम ग्राहकों से 20 हजार रुपये से कम राशि लेना दिखाया है और इस तरह से करोड़ों रुपये अपने बैंक खाते में जमा कराए हैं।

यह राशि अग्रिम के तौर पर दिखाई गई है, लेकिन कई साल बीत जाने के बावजूद इनके एवज में कोई आपूर्ति नहीं की गई है।कुछ ज्वैलर्स जब फंस गये तो किसी दूसरी कंपनी के पेपर्स व लाभ-हानि खाते का डिटेल एजेंसियों के पास जमा करा दिया। सूत्रों का कहना है कि कई ज्वैलर्स इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए हैं कि सैकड़ों बेनाम ग्राहकों से उन्होंने पैसे क्यों लिए। हद यह है कि चार वर्ष बाद भी इनके पास करोड़ों रुपये पड़े हुए हैं। एक ज्वैलर ने बताया कि उसके पास 573 लोगों ने पैसे जमा कराए हैं।

गुजरात के एक ज्वैलर ने नौ नवंबर से 31 दिसंबर, 2016 के बीच करीब 4.15 करोड़ रुपये जमा करा दिए। जब जांच एजेंसियों ने उससे पिछले वर्ष का डाटा देखा तो पाया कि ज्वैलर ने सिर्फ 44,260 रुपये जमा कराए थे। यानी एक वर्ष में ही उसकी आय में 93,000 फीसद से अधिक का इजाफा हो गया। वहीं, एक ज्वैलर ने सालाना रिटर्न सिर्फ 64,550 रुपये पर भरा था लेकिन नोटबंदी के दौरान 72 लाख रुपये बैंक में जमा कराए।


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