कोयले की कमी के चलते एल्यूमिनियम उद्योग पर संकट की छाया
कोयले की सप्लाई में पावर सेक्टर को प्राथमिकता मिलने से विभिन्न उद्योगों में चल रहे कैप्टिव पावर प्लांटों के उत्पादन पर संकट के बादल गहरा गए हैं।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। कोयले की सप्लाई में पावर सेक्टर को प्राथमिकता मिलने से विभिन्न उद्योगों में चल रहे कैप्टिव पावर प्लांटों के उत्पादन पर संकट के बादल गहरा गए हैं। यह स्थिति पावर प्लांटों में हुई कोयले की दिक्कत के बाद सरकार की तरफ से लिए गए उस फैसले से उपजी है जिसमें कोयला सप्लाई में विद्युत उत्पादन संयंत्रों को वरीयता दिए जाने की बात कही गई है। कोयला सप्लाई की दूसरी वरीयता में राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, नाल्को और सेल (आरएसपी) जैसे केंद्र सरकार के उपक्रमों को रखा गया है।
सरकार के इस फैसले की सबसे अधिक आंच एल्युमीनियम उद्योग महसूस कर रहा है। एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस फैसले के बाद कोयला सचिव को लिखे एक पत्र में कहा है कि इससे उद्योग के कैप्टिव पावर प्लांट बंद होने के कगार पर आ जाएंगे। एसोसिएशन का कहना है कि इस निर्णय के बाद एमसीएल, एसईसीएल और सीसीएल समेत कई कोयला उत्पादन कंपनियों ने कैप्टिव पावर प्लांटों को होने वाली कोयले की सप्लाई ताप विद्युत संयंत्रों की तरफ मोड़ दी है।
एसोसिएशन के मुताबिक एल्युमीनियम उद्योग पावर सेक्टर के बाद दूसरा सबसे बड़ा कोयला ग्राहक और गैर पावर सेक्टर का सबसे बड़ा कोयला खपत वाला उद्योग है। एल्युमीनियम उत्पादन में बिजली की भूमिका बेहद अहम है। एक टन एल्युमीनियम के उत्पादन के लिए 14500 किलोवाट यूनिट बिजली की खपत होती है जिसके लिए 11.7 टन कोयले की आवश्यकता होती है। बिजली की आपूर्ति में दो घंटे से अधिक की बाधा एल्युमीनियम पॉट को जमा देती है जिसे दोबारा शुरू करने में समय और बिजली दोनों लगती है।
अपने पत्र में एसोसिएशन ने कहा है कि एल्युमीनियम उद्योग ने स्मेल्टर और रिफाइनरी संचालन के लिए 50,000 करोड़ रुपये के निवेश से 9300 मेगावाट की कैप्टिव पावर प्लांट क्षमता स्थापित की है