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सरकार को नए रोजगार तैयार करने में उद्योग जगत की करनी होगी मदद

अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद जब रूस से तेल खरीदने पर जोर दिया जा सकता है तो पुनः ईरान से भी सस्ता तेल खरीदने की नीति पर विचार करना चाहिए। ऐसा कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को तीव्र गति प्रदान कर सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 06 Sep 2022 02:44 PM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2022 02:44 PM (IST)
अपनी क्षमता पहचानने की जरूरत। फाइल फोटो

 राहुल लाल। आजादी के अमृत काल में ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनना और इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में दो अंकों की वृद्धि दर हासिल करना भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को प्रतिबिंबित करता है, परंतु चालू खाता घाटा, विनिर्माण, प्रति व्यक्ति आय इत्यादि के मोर्चे पर अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं। इसके साथ आठ बुनियादी ढांचा उद्योगों का उत्पादन गिरकर छह माह के निम्नतम स्तर 4.3 प्रतिशत पर आना चिंताजनक है।

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देश का सार्वजनिक ऋण तेजी से बढ़ा है और मुद्रास्फीति का स्तर निर्धारित लक्ष्य से अभी भी अधिक है। नीति निर्माता खुदरा मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन उन्हें थोक मुद्रास्फीति की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए, जो इस समय करीब 14 प्रतिशत के स्तर पर है। निरंतर उच्च सार्वजनिक ऋण का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अब दिखने लगा है। वित्त वर्ष 2010-11 में केंद्र सरकार को अपने कर्ज पर ब्याज चुकाने में राजस्व प्राप्तियों का 29.7 प्रतिशत हिस्सा चला जाता था।

कोरोना काल में सरकार को अपने खर्च में वृद्धि करनी पड़ी। इसके चलते अब कर्ज पर ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 42.7 प्रतिशत तक पहुंच गया है। उच्च ब्याज दर के कारण आने वाले दिनों में यह और भी बढ़ सकता है, जबकि राजकोषीय घाटा पहले से ही अधिक है और उसे कम करना आवश्यक है। चिंता यह है कि बीते कुछ महीनों में वैश्विक हालात भी कुछ ज्यादा प्रतिकूल हुए हैं। भू-राजनीति तनाव के कारण अभी ईंधन सहित जिंस की कीमतें ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी।

ऐसे में आरबीआइ द्वारा कठोर मौद्रिक नीति जारी रह सकती है। अर्थात नीतिगत ब्याज दरों की स्थिति सख्त बनी रह सकती है। इन सब वजहों से भारत में पूंजी आवक कठिन बनी रहेगी। ऐसे हालात में अगर भारत को तीव्र वृद्धि दर हासिल करनी है तो अर्थव्यवस्था के कमजोर पक्षों की पहचान कर उन्हें मजबूत करना होगा। घरेलू कंपनियों को प्रतिस्पर्धा से बचाने की नीति बनानी होगी और उत्पादन में सब्सिडी देनी होगी। सरकार को नए रोजगार तैयार करने में उद्योग जगत की मदद करनी होगी।

कृषि क्षेत्र को और लाभप्रद बनाना होगा, क्योंकि इससे देश का एक बड़ा हिस्सा संबद्ध है। बड़ी कंपनियों ने उत्पादकता में वृद्धि को गति दी है, जबकि अधिकांश लोग छोटी कंपनियों में काम कर रहे हैं। इसलिए छोटी कंपनियों के उन्नयन के लिए विशेष नीति की आवश्यकता है। इसके साथ ही भारत को अपनी ऊर्जा नीति को भी बदलने की आवश्यकता है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद जब रूस से तेल खरीदने पर जोर दिया जा सकता है तो पुनः ईरान से भी सस्ता तेल खरीदने की नीति पर विचार करना चाहिए। ऐसा कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को तीव्र गति प्रदान कर सकते हैं।

[आर्थिक मामलों के जानकार]


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