राज्यों की कर्ज लेने की माली हालत नहीं, आरबीआइ की रिपोर्ट ने बताई स्थिति
जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार और गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच निश्चित तौर पर रार का रंग राजनीतिक ज्यादा है। लेकिन यह भी सच है कि राज्यों की माली हालत भी ऐसी नहीं कि वह ज्यादा बोझ झेल पाए। (PC AP Photo)
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार और गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच निश्चित तौर पर रार का रंग राजनीतिक ज्यादा है। लेकिन यह भी सच है कि राज्यों की माली हालत भी ऐसी नहीं कि वह ज्यादा बोझ झेल पाए। राज्यों की इकोनॉमी की समग्र तस्वीर मंगलवार को आरबीआइ की तरफ से जारी एक रिपोर्ट से सामने आती है जो साफ तौर पर यह इशारा करती है कि चाहे वह आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र जैसे आर्थिक तौर पर उन्नत राज्य हों या फिर बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, किसी की भी स्थिति अतिरिक्त कर्ज लेने की नहीं है।
इस रिपोर्ट के मुताबकि वर्ष 2017 के बाद के तीन वर्षों में सभी 31 राज्यों पर आंतरिक कर्जे में 39 फीसद का इजाफा हुआ है और मार्च, 2017 से मार्च, 2019 के बीच इनकी तरफ से ब्याज अदाएगी की राशि मे 21.05 फीसद का इजाफा हुआ है। आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक मार्च, 2020 तक की स्थिति यह है कि देश के राज्यों पर 39.33 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। यह मार्च, 2019 के मुकाबले 13.75 फीसद ज्यादा है।
अगर जीएसटी क्षतिपूर्ति के संदर्भ में जीएसटी काउंसिल की तरफ से दिए गए पहले प्रस्ताव को आधार माने तो चालू वित्त वर्ष के दौरान सीधे तौर पर कर्ज बोझ में 1.15 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। जानकारों की मानें तो राज्यों का काम सिर्फ क्षतिपूर्ति राशि के बराबर कर्ज लेने से ही नहीं चलने वाला। जीएसटी संग्रह कम होने की वजह से उन्हें केंद्र से मिलने वाली हिस्सेदारी कम हो चुकी है। इसलिए भी उन्हें अलग से कर्ज लेना पड़ रहा है।
आरबीआइ के आंकड़े के मुताबिक अगस्त, 2020 तक चालू वित्त वर्ष के लिए सभी राज्यों की तरफ से 2.69 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया जा चुका है। वित्त वर्ष के शेष महीनों में इन राज्यों की तरफ से चार लाख करोड़ रुपये का कर्ज और लेने की सूरत बन रही है। ऐसे में राज्यों पर कर्ज का कुल बोझ मार्च, 2020 के 39.33 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर मार्च, 2021 तक 45.93 लाख करोड़ रुपये होने की संभावना है।
सोमवार (12 अक्टूबर, 2020) को देर रात चली जीएसटी काउंसिल में कई राज्यों की तरफ से यह मुद्दा उठाया गया कि क्षतिपूर्ति राशि के बदले उधारी लेने पर उन्हें लंबे समय तक क्षतिपूर्ति टैक्स वसूलने की इजाजत मिल रही है लेकिन चालू वित्त वर्ष में उनकी तरफ से जो ज्यादा उधारी ली जा रही है उसके ब्याज का बोझ उन्हें उठाना पड़ेगा।
वर्ष 2019-20 के दौरान देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के बजटीय अनुमानों के मुताबिक इन्हें 3,54,800 करोड़ रुपये की राशि चुकानी पड़ी है। यह 2017-18 के मुकाबले 21 फीसद ज्यादा और वर्ष 2018-19 के मुकाबले 11 फीसद ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष की उधारी इन राज्यों पर ब्याज का बोझ और बढ़ा देगा।