ब्याज दरों को लेकर स्थिति और स्पष्ट करे आरबीआइ : सीआइआइ
सीआइआइ का मानना है कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से पूरी इकोनोमी के लिए चिंता बढ़ रही है और इस चिंता को कम करने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों को मिल कर पेट्रो उत्पादों पर टैक्स की दर को घटाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: आरबीआइ ने जिस तरह से मई माह के शुरुआत में ब्याज दरों को बढ़ाया है उसका संकेत उद्योग जगत समझ चुका है। उद्योग चैंबर सीआइआइ के नये अध्यक्ष संजीव बजाज का कहना है कि महंगे कर्ज का दौर अब शुरू हो चुका है। आने वाले दिनों में ब्याज दरों की स्थिति बहुत कुछ इस तथ्य से तय होगी कि देश में मानसून की स्थिति कैसी रहती है। महंगाई और ब्याज दरों के भविष्य को लेकर आरबीआइ को आगे आ कर जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। देश के सबसे बड़े उद्योग चैंबर का अध्यक्ष पद संभालने के बाद बजाज ने पहली बार प्रेस कांफ्रेंस करते हुए इकोनोमी की जो तस्वीर पेश की है वह बहुत कुछ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से तय होगी। अगर वित्त वर्ष 2022-23 के शेष महीनों में क्रूड की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल के करीब रहती है तो देश की आर्थिक विकास दर 8.2 फीसद रहेगी लेकिन अगर यह 100 और 110 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो विकास की दर घट कर 7.8 या 7.4 फीसद रह सकती है।
महंगाई पर दूसरी छमाही में स्थिति होगी स्पष्ट
संजीव बजाज के मुताबिक महंगाई की दर को लेकर दूसरी छमाही में ही ठोस तौर पर कुछ कहा जा सकेगा। अभी जो हालात हैं उससे साफ है कि ब्याज दरों में वृद्धि का सिलसिला शुरू हो गया है जो आने वाले कुछ वर्षों तक जारी रहेगा। हमें उम्मीद है कि अगली पालिसी घोषणा में आरबीआइ ब्याज दरों को लेकर और स्पष्ट तस्वीर पेश करेगा। केंद्रीय बैंक को इस बारे में जून की मौद्रिक नीति घोषणा में ही बताना चाहिए। साथ ही बहुत कुछ मानसून की स्थिति पर भी निर्भर करेगा। सनद रहे कि सरकार का कहना है कि इस बार मानसून की शुरुआत साामान्य समय से पहले होने जा रही है। इसको लेकर कुछ विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं। सीआइआइ के आंतरिक सर्वेक्षण में 70 फीसद उद्यमियों ने कहा है कि महंगाई और बढ़ेगी।
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से बढ़ी चिंता
सीआइआइ का मानना है कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से पूरी इकोनोमी के लिए चिंता बढ़ रही है और इस चिंता को कम करने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों को मिल कर पेट्रो उत्पादों पर टैक्स की दर को घटाने के लिए कदम उठाने चाहिए। महंगाई को एक चुनौती मानते हुए सीआइआइ का कहना है कि भारतीय इकोनोमी दूसरे कई मोर्चे पर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही है और यह वर्ष 2026-27 तक पांच लाख करोड़ डॉलर (5 ट्रिलियन डॉलर) की इकोनोमी, वर्ष 2030-31 तक नौ लाख करोड़ डॉलर की इकोनोमी और वर्ष 2047-48 तक 40 लाख करोड़ डॉलर की इकोनोमी बन सकता है। लेकिन इसके लिए सरकार को देश के कुल इकनोमी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को बढ़ाने पर काफी ध्यान देना होगा। देश की कुल इकोनोमी में मैन्यूफैक्चरिंग का हिस्सा बढ़ा कर 27 फीसद पर ले जाने के लिए काम काम करना होगा।
सीआइआइ ने हाल के वर्षों में इकोनोमी के आकार के मुकाबले निवेश और घरेलू बचत की हिस्सेदारी घट जाने को लेकर काफी चिंता जताई है और आग्रह किया है कि सरकार को इस मुद्दे को काफी गंभीरता से लेना चाहिए। अभी इन दोनों का अनुपात इकोनोमी के आकार के मुकाबले 26-27 फीसद है जो काफी कम है। आजादी के सौवें साल में एक मजबूत इकोनोमी बनने के लिए हमें इसमें काफी वृद्धि करनी होगी।