जनहित याचिका आर्थिक नीति को चुनौती देने का हथियार नहीं: आरबीआइ
आरबीआइ ने कहा जनहित याचिका में उठाया गया मुद्दा सीधे तौर पर देश की आर्थिक नीति को चुनौती दे रहा है
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि जनहित याचिकाएं देश की आर्थिक नीतियों को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकती हैं।
हाई कोर्ट में क्रेडिट कार्ड व डेबिट कार्ड से ट्रांजैक्शन किए जाने पर लिए जाने वाले सरचार्ज को जनहित याचिका लगाकर चुनौती दी गई थी। कहा गया था कि बैंक व अन्य संस्थानों द्वारा कार्ड से पेमेंट करने पर वसूला जाने वाला सरचार्ज गैरकानूनी है। हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने याचिका पर आरबीआइ को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। जवाब में आरबीआइ ने हाई कोर्ट से यह याचिका को निराधार बताते हुए खारिज करने की अपील की। आरबीआइ की तरफ से कहा गया कि उन्होंने सरचार्ज के संदर्भ में अपना निर्णय विचार विमर्श करने के बाद अपने अधिकारों व क्षमताओं के अनुरूप ही लिया है।
आरबीआइ का कहना है कि इस जनहित याचिका में उठाया गया मुद्दा सीधे तौर पर देश की आर्थिक नीति को चुनौती दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी समय समय पर यह कह चुका है कि एक आम नागरिक के पास ऐसे मामलों में जनहित याचिका लगाने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट के समक्ष यह याचिका वकील अमित साहनी ने लगाई थी, जिसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी का निर्णय सराहनीय है, लेकिन कार्ड से ट्रांजैक्शन के दौरान लोगों से सरचार्ज के रूप में अतिरिक्त शुल्क वसूला जाना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सरचार्ज वसूलने से लोग फिर काला धन रखने के लिए प्रेरित होंगे।