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आर्थिक व चुनावी संतुलन साधने में हांफे बंसल

नई दिल्ली [राजकिशोर]। रेलवे में सुधार के लिए कसमसा रही कांग्रेस को 17 साल बाद रेल बजट पेश करने का मौका मिला तो वह आधे-अधूरे तरीके से ही अपने अरमान निकाल सकी। आर्थिक सुधारों और चुनावी जरूरतों के बीच संतुलन साधने में पवन बंसल की रेल बजट एक्सप्रेस सुपरफास्ट के बजाय पैसेंजर ट्रेन की तरह हांफती हुई दिखी। दो माह पहले ही किराया बढ़

By Edited By: Published: Tue, 26 Feb 2013 07:22 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

नई दिल्ली [राजकिशोर]। रेलवे में सुधार के लिए कसमसा रही कांग्रेस को 17 साल बाद रेल बजट पेश करने का मौका मिला तो वह आधे-अधूरे तरीके से ही अपने अरमान निकाल सकी। आर्थिक सुधारों और चुनावी जरूरतों के बीच संतुलन साधने में पवन बंसल की रेल बजट एक्सप्रेस सुपरफास्ट के बजाय पैसेंजर ट्रेन की तरह हांफती हुई दिखी। दो माह पहले ही किराया बढ़ा चुके बंसल ने पिछले दरवाजे से किराया इस दफा भी बढ़ाया, लेकिन सुधारों के नाम पर चुनावी फैसले ज्यादा दिखे। कांग्रेस शासित राज्यों ही नहीं, पार्टी की सियासत के लिहाज से बेहद अहम गैर कांग्रेसी राज्यों पंजाब और उत्तर प्रदेश का ध्यान भी रखा।

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सुखद-सुरक्षित यात्रा और सहूलियतें बढ़ने की अपेक्षाओं को बढ़ा चुके बंसल इस मुद्दे पर कुछ खास नहीं कर सके। अलबत्ता, अपने से पहले वाले रेल मंत्रियों की तरह अपने क्षेत्र और उनकी पार्टी की लिहाज से अहम राज्यों को ही ट्रेनों या फैक्ट्रियों की सौगात बांटी। सबसे ज्यादा करम उन्होंने पंजाब पर किया। पंजाब और हरियाणा को बंसल ने कुल 22 ट्रेनों की सौगात दी। खासतौर से पंजाब में तमाम परियोजनाओं की भी घोषणा की। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी पर बंसल ने नजरे इनायत बरती है। रायबरेली को एक व्हील फैक्ट्री और मालगाड़ी वैगन का वर्कशॉप दिया गया है। इतना ही नहीं नई लाइनों व दोहरीकरण के लिए उत्तर प्रदेश में एक दर्जन परियोजनाएं हैं, वहीं 14 नई ट्रेनें दी गई हैं।

बजट का सबसे अहम राजनीतिक फैसला है रेलवे में डेढ़ लाख नौकरियां देने व मनरेगा के मजदूरों को रेल की पटरियां बिछाने के काम में लगाना। लंबे अरसे बाद रेलवे में बड़े पैमाने पर नौकरियों का सिलसिला शुरू होगा। साथ ही मनरेगा के मजदूरों के लिए काम भी तलाश लिया गया है। दोनों के ही चुनावी सियासत के लिहाज से मतलब हैं। पवन बंसल अपने पूर्ववर्तियों की तरह बड़ी-बड़ी घोषणाओं से भले ही बचे हों, लेकिन रेलवे में सुधार के नाम पर अपने पहले बजट में कोई बहुत बड़ा फैसला नहीं ले सके।

खान-पान और स्टेशनों पर व्यवस्था सुधारने पर बजट मौन है, वहीं रेलवे का बजट बढ़ाने और सुधारों के लिए कोई नया उपाय या तरीका खोजने में वह असफल रहे। उनकी पूरी कोशिश आर्थिक सुधारों और लोकप्रियता के बीच संतुलन साधने की रही। अलबत्ता, खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री पी चिदंबरम और कांग्रेस के अलावा मीडिया से लेकर सोशल साइटों तक ने बंसल की तारीफ की है। कांग्रेस की पूरी कोशिश 17 साल बाद कांग्रेसी मंत्री की तरफ से पेश किए गए रेल बजट को कुछ अलग दिखाना रहा।

दक्षिण के स्टेशनों में अटके रेल मंत्री :

अंग्रेजी में रेलवे बजट पेश करते समय रेल मंत्री दक्षिण भारतीय स्टेशनों का नाम लेने पर खूब अटके। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बंसल को अटकते देख असहज हुईं। बाकी बंसल का भाषण बेहद नीरस और कई हद तक उबाऊ हो गया। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव तो सदन में ऊंघते देखे गए। बाद में वह इस बजट की कई घोषणाओं को अपनी करार देते जरूर नजर आए।


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