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फंसे कर्ज पर कार्रवाई से नहीं आई क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट: रघुराम राजन

रघुराम राजन ने अपनी किताब में फंसे कर्ज पर रिजर्व बैंक की कोशिशों के संबंध में लिखा है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 04 Sep 2017 09:41 AM (IST)Updated: Mon, 04 Sep 2017 09:41 AM (IST)
फंसे कर्ज पर कार्रवाई से नहीं आई क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट: रघुराम राजन
फंसे कर्ज पर कार्रवाई से नहीं आई क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट: रघुराम राजन

नई दिल्ली (आइएएनएस)। एनपीए (फंसे कर्जो) से निपटने की खातिर उठाए जा रहे कदम बैंकों से कर्ज का उठाव यानी क्रेडिट ग्रोथ घट जाने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट एनपीए पर बैंकों की कार्रवाई शुरू होने के पहले से आ रही है। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी आगामी किताब ‘आइ डू वॉट आइ डू : ऑन रिफॉर्म्स, रेटोरिक एंड रिजॉल्व’ में यह बात कही है। किताब का विमोचन अगले हफ्ते होना है। बीते साल गवर्नर के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद रघुराम फिर से अमेरिका में अकादमिक दुनिया में लौट गए थे।

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किताब में राजन ने लिखा कि ऐसे कई आलोचक हैं जो कहते हैं कि फंसे कर्जो को लेकर हो रही कार्रवाई से सरकारी बैंकों से कर्ज उठाव में कमी आई है। उन्होंने आगे लिखा, ‘जून, 2016 में बेंगलुरु में अपने एक संबोधन में मैंने आलोचकों को आंकड़ों की ओर देखने को कहा था। आंकड़ों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि एनपीए पर कार्रवाई से पहले से ही क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट आ रही है। हकीकत यह है कि यह गिरावट शुरू होने के समय तो बैंकों को एनपीए के खतरे का ठीकठाक अनुमान भी नहीं हो पाया था।’

रघुराम ने फंसे कर्ज पर रिजर्व बैंक की कोशिशों और बैंकों की ओर से मिली अनचाही प्रतिक्रिया पर भी लिखा है। राजन के मुताबिक, ‘जब हमें लगा कि बैंक परेशानी को समझने के लिए तैयार नहीं हैं, तब हमने सहनशीलता छोड़ करके बैंकों पर अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त करने का दबाव बनाया। 2015 में शुरू हुआ एसेट क्वॉलिटी रिव्यू इस दिशा में पहला बड़ा कदम था।’

महंगाई और मांग में कमी को देखते हुए आरबीआइ ने पिछले महीने मौद्रिक समीक्षा में रेपो रेट में एक चौथाई फीसद की कमी की। अक्टूबर, 2016 के बाद नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में यह पहली कटौती थी। इस दौरान केंद्रीय बैंक ने कहा कि बैंकों में एनपीए के कारण दोहरी बैलेंस शीट की समस्या उसकी प्राथमिकता में है। कमजोर क्रेडिट ग्रोथ और निजी निवेश में कमी पिछले कुछ समय से बड़ी समस्या बनी हुई है। एसोचैम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से पहले निजी निवेश में तेजी के आसार कम हैं। इंडिया इंक की ओर से कर्ज का उठाव बढ़े बिना अर्थव्यवस्था का रफ्तार पकड़ पाना भी आसान नहीं है।


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