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नोटबंदी के बाद सरकारी बैंकों में नहीं रहेगी नकदी की कमी

नोटबंदी के बाद देश के बैंकिंग क्षेत्र का हुलिया बदल गया है। बैंकों का सारा जोर अभी करेंसी चेस्ट से नकदी लाकर आम जनता के बीच इसे बांटने और नगदी जमा करने में लगा हुआ है

By Surbhi JainEdited By: Published: Wed, 14 Dec 2016 11:01 AM (IST)Updated: Wed, 14 Dec 2016 11:04 AM (IST)
नोटबंदी के बाद सरकारी बैंकों में नहीं रहेगी नकदी की कमी

नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। नोटबंदी के बाद देश के बैंकिंग क्षेत्र का हुलिया बदल गया है। बैंकों का सारा जोर अभी करेंसी चेस्ट से नकदी लाकर आम जनता के बीच इसे बांटने और नगदी जमा करने में लगा हुआ है। लेकिन सरकार का मानना है कि नोटबंदी की प्रक्रिया सरकारी बैंकों के लिए अंतत: मुनाफे का सौदा साबित होगी। जमा राशि में भारी वृद्धि से न सिर्फ बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी, बल्कि इससे आम जनता को सस्ती दरों पर कर्ज देने की राह भी खुलेगी।

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वित्त मंत्रलय के अधिकारियों को तो यहां तक भरोसा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत इतनी सुधर जाएगी कि उन्हें पूंजीकरण के लिए सरकार पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने इन्हें 25,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध कराने का प्रावधान बजट में किया था। इसमें से 22,915 करोड़ रुपये 13 बैंकों को दिए जा चुके हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो और यादा राशि सरकारी बैंकों को खजाने से दी जाएगी। अब वित्त मंत्रलय के अफसर मानते हैं कि नोटबंदी के बाद जिस तरह से भारी नकदी के ढेर पर बैंक बैठे हुए हैं, उसे देखते हुए उन्हें और यादा राशि की जरूरत न पड़े। वजह यह है कि तीसरी तिमाही में इन बैंकों के वित्तीय नतीजे बेहतर रहेंगे। इसलिए इस वर्ष इन्हें और अतिरिक्त फंड की जरूरत नहीं होगी। जमा में प्राप्त राशि को बैंकों ने सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर अछी कमाई की है। इससे उनके वित्तीय नतीजे बेहतर आने के आसार हैं।

वित्त मंत्रलय का यह भी आकलन है कि बैंक अब कर्ज की दरों को घटाने की स्थिति में हैं। यह उनकी जरूरत भी है। बैंकों के पास भारी मात्र में जमा राशि है और इसका इस्तेमाल वे कर्ज देने में कर सकते हैं। चूंकि अभी कर्ज की मांग नहीं है, इसलिए कर्ज की दरों में घटाकर बैंक यादा कर्ज वितरित कर सकते हैं। नोटबंदी के कुछ ही दिनों बाद भारतीय स्टेट बैंक समेत कई सरकारी बैंकों ने ब्याज की दरों में थोड़ी बहुत कमी की थी। अगर केंद्रीय बैंक आरबीआइ ने पिछले हफ्ते रेपो रेट घटा दिया होता तो बैंक अभी तक कर्ज की दरों में एक और कटौती का एलान कर चुके होते। नोटबंदी के बाद कई फंसे कर्ज वाले ग्राहकों ने पुराने नोट में अपने कर्ज की भरपाई की है। इससे भी बैंकों को लाभ पहुंचा है।


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