Pranab Mukherjee: 1984 में कर सुधारों से आए सुर्खियों में, जानें वित्त मंत्री के रूप में कैसे रहे उनके दो कार्यकाल
Pranab Mukherjee को उनके कर सुधारों के लिए 1984 में यूरोमनी मैग्जीन ने दुनिया का सर्वेश्रेष्ठ वित्त मंत्री करार दिया था।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को निधन हो गया। कुशल रणनीतिकार और दिग्गज राजनेता मुखर्जी की स्वीकार्यता सभी दलों में समान रूप से देखने को मिली। उन्होंने राष्ट्रपति बनने से पहले केंद्र की कई सरकारों में वित्त, रक्षा, विदेश, वाणिज्य, शिपिंग और उद्योग मंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि, मुखर्जी को वित्त मंत्री के रूप में उनके कामकाज के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। मुखर्जी आर्थिक उदारीकरण से पूर्व 1982-1984 की अवधि में और फिर उदारणीकरण के बाद के काल में जनवरी, 2009 से जून, 2012 के बीच देश के वित्त मंत्री रहे।
आइए जानते हैं वित्त मंत्री के रूप में कैसा रहा था कार्यकाल
प्रणब मुखर्जी के पहले कार्यकाल की बात की जाए तो उन्होंने 1982 में इंदिरा गांधी की सरकार में पहली बार देश के वित्त मंत्री का पदभार ग्रहण किया। उनके पहले कार्यकाल को सरकार की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने और IMF को भारत के ऋण वापस करने के लिए जाना जाता है। मुखर्जी को भारतीय अर्थव्यस्था के शुरुआती सुधारक होने का श्रेय दिया जाता है। प्रणब मुखर्जी को उनके कर सुधारों के लिए 1984 में यूरोमनी मैग्जीन ने दुनिया का सर्वेश्रेष्ठ वित्त मंत्री करार दिया था। हालांकि, 1984 में राजीव गांधी ने उन्हें वित्त मंत्री के पद से हटा दिया था।
इसके बाद नरसिम्हा राव की सरकार में मुखर्जी को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया था।
मुखर्जी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान भारत में निवेश करने वाले अनिवासी भारतीयों के लिए प्रोत्साहन की घोषणा की थी। इसके तहत उन्होंने NRIs को द्वितीयक बाजार से शेयरों की खरीद की अनुमति दी थी।
बतौर वित्त मंत्री मुखर्जी का दूसरा कार्यकाल
मुखर्जी को 2009 में एक बार फिर वित्त मंत्री की जिम्मेदारी मिली। इस कार्यकाल में बतौर वित्त मंत्री वह रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लेकर आए। हालांकि, कई हलको में इस टैक्स की काफी आलोचना भी हुई। मुखर्जी ने अपने दूसरे कार्यकाल में साक्षरता और हेल्थ केयर से जुड़ी योजनाओं को बेहतर बनाने के लिए इन मदों में बजट में वृद्धि की।
प्रणब मुखर्जी के आधिकारिक प्रोफाइल के मुताबिक वर्ष 2004-2012 के दौरान उन्होंने प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल की स्थापना जैसे विभिन्न मुद्दों पर गठित 95 से अधिक मंत्री समूहों की अध्यक्षता करते हुए सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण निर्णयों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन कार्यों पर भी डालें नजर
सातवें और आठवें दशक में उन्होंने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) तथा भारतीय एक्जिम बैंक के साथ ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में भूमिका निभाई। इसके अलावा मुखर्जी ने 1991 में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे का संशोधित फार्मूला भी तैयार किया था, जिसे गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला के नाम से जाना जाता है।