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PNB स्कैम:...तो क्या स्विफ्ट कोड है इतने दिन तक धोखाधड़ी न पकड़े जाने की वजह

बैंक से स्विफ्ट मैसेज भेजने पर सिस्टम में दर्ज करना जरूरी नहीं, आरबीआइ ने तीन बार आगाह किया लेकिन यह नियम नहीं सुधारा

By Shubham ShankdharEdited By: Published: Thu, 22 Feb 2018 08:01 AM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2018 08:31 AM (IST)
PNB स्कैम:...तो क्या स्विफ्ट कोड है इतने दिन तक धोखाधड़ी न पकड़े जाने की वजह
PNB स्कैम:...तो क्या स्विफ्ट कोड है इतने दिन तक धोखाधड़ी न पकड़े जाने की वजह

नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। तो क्या पीएनबी में हुए बैंकिंग घोटाले के लिए कहीं नियमों में ढिलाई ही तो मुख्य तौर पर जिम्मेदार नहीं है। संकेत तो कुछ ऐसे ही हैं, क्योंकि इतना बड़ा घोटाला हो जाने के बावजूद रिजर्व बैंक ने अभी भी बैंकों के लिए स्विफ्ट के संदेशों को कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) से जोड़ने की बाध्यता लागू नहीं की है। नियम के इस पेंच का फायदा ही पीएनबी की दक्षिण मुंबई स्थित शाखा के कर्मचारियों ने उठाया। उन्होंने नीरव मोदी व उसकी सहयोगियों की कंपनियों के पक्ष में भुगतान के लिए स्विफ्ट के जरिये भेजे संदेशों यानी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) का सीबीएस में कहीं उल्लेख नहीं किया। पीएनबी प्रबंधन का कहना है कि इस वजह से इतने वर्षो तक यह धोखाधड़ी नहीं पकड़ी जा सकी। आरबीआइ के नियम के मुताबिक हर बार स्विफ्ट भुगतान को सीबीएस में दर्ज करने की जरूरत नहीं है।

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स्विफ्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुगतान करने का आदेश देने वाला एक खास इलेक्ट्रॉनिक वित्तीय संदेश प्लेटफार्म है। पीएनबी की शाखा से इलाहाबाद बैंक, एक्सिस बैंक व अन्य कई भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को नीरव मोदी के पक्ष में भुगतान के लिए इसी तकनीक के इस्तेमाल से संदेश भेजे जा रहे था। आमतौर पर बैंक कर्मचारियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे हर वित्तीय लेनदेन को तुरंत ही सीबीएस में दर्ज करें। लेकिन बैंक कर्मचारी ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह बात पीएनबी घोटाला सामने आने के बाद केंद्रीय बैंक की तरफ से बैंकों को जारी नए निर्देश में भी कही गई है। लेकिन आरबीआइ के नियमों के मुताबिक बगैर सीबीएस में दर्ज स्विफ्ट के जरिये लेनदेन बहुत कम होना चाहिए। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक का नियम यह भी कहता है कि बैंक के खाते या किसी दूसरे एकाउंटिंग सिस्टम में इस लेनदेन को दर्ज किया जाना चाहिए। साथ ही स्विफ्ट के जरिये भुगतान का निर्देश भी पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही होना चाहिए। सीबीएस हर बैंक का सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली है जिसमें हर वित्तीय लेनदेन का लेखा जोखा होता है।

पहले भी सामने आई स्विफ्ट की खामी: आरबीआइ की तरफ से बैंकों को भेजे गये सुझाव में यह बात स्वीकार की गई है कि अगस्त, 2016 के बाद से वह कम से कम तीन बार इस तकनीक के इस्तेमाल से जुड़े जोखिम को लेकर चेतावनी दे चुका है। दरअसल, सिर्फ आरबीआइ ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी इस फाइनेंशियल प्लेटफार्म के जरिये होने वाले घोटाले को लेकर चिंताएं सामने आई है। सबसे पहले वर्ष 2016 में बांग्लादेश में हुए 8.1 करोड़ डॉलर (करीब 525 करोड़ रुपये) के बैंकिंग फ्रॉड से स्विफ्ट की खामी सामने आई थी। माना गया था कि कुछ साइबर अपराधियों ने स्विफ्ट के जरिये ही बांग्लादेश के बैंकों से पैसा विदेश भेज दिया। अभी हाल ही में भारत के निजी क्षेत्र के सिटी यूनियन बैंक ने कहा है कि उसके एक खाते से स्विफ्ट प्लेटफार्म का इस्तेमाल करके 20 लाख डॉलर (करीब 13 करोड़ रुपये) बाहर भेज दिये गये। दुनिया के कुछ दूसरे देशों में भी इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं। इसके समाधान के लिए यह जरूरी माना गया है कि स्विफ्ट को बैंकों के सीबीएस से पूरी तरह से जोड़ा जाए। अगर आरबीआई ने सख्ती दिखाते हुए देश में यह नियम पहले ही लागू किया होता तो पीएनबी का यह घोटाला बहुत पहले ही पकड़ा जाता।


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