मनरेगा की मांग में 60 फीसदी इजाफा, नोटबंदी से प्रभावित हुए प्रवासी मजदूर
मनरेगा के तहत दिसंबर महीने में दैनिक रोजगार की मांग में 60 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है, जो कि बीते महीनों की तुलना में काफी ज्यादा है
नई दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत दिसंबर महीने में दैनिक रोजगार की मांग में 60 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है, जो कि बीते महीनों की तुलना में काफी ज्यादा है। मनरेगा के कामकाज की ऑनसाइट देखरेख करने वाले अधिकारियों का कहना है कि अचानक से आई इस तेजी की मुख्य वजह नोटबंदी है। 8 नवंबर को सरकार की ओर से लिए गए विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के फैसले के बाद से कई प्रवासी मजदूर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। यह खबर अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रैस में प्रकाशित हुई है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के रिकॉर्ड्स के मुताबिक जुलाई से नवंबर 2016 तक मनरेगा में प्रतिदिन औसतन मजदूरी (टर्नआउट) 30 लाख थी, जो कि दिसंबर महीने में 50 लाख प्रति दिन पर पहुंच गई। वहीं, 7 जनवरी 2017 को दैनिक रोजगार की मांग करने वाले मजदूरों की संख्या 83.60 लाख थी। यह आंकड़ा नोटबंदी की घोषणा से पहले के आंकड़े का लगभग तीन गुना है।
इस रिवर्स माइग्रेशन (पलायन) का प्रमुख कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में अनियमित मजदूरों की नौकरी छिनना रहा। उनका मनरेगा की ओर लौटाना रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीण भारत में उपलब्ध कराए गए काम की मांग में इजाफे का परिणाम है। अधिकारियों की माने तो दिसंबर में जब रबी फसल की बुवाई की प्रक्रिया खत्म हो जाती है, उस समय में मांग में मामूली तेजी देखी जाती है। लेकिन जो तेजी इस बार दिसंबर में देखी गई है वह अबतक की सबसे ज्यादा रही है। नोटंबदी के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग और अन्य सेक्टर्स प्रभावित हुए हैं। ऐसी स्थिति में मजदूर अपने गांव वापस चले जाते हैं और मनरेगा के तहत रोजगार की तलाश करते हैं। इस बढ़ोतरी का यही सबसे मुख्य कारण है।
अगर डेटा देखा जाए तो 7 नवंबर 2016 यानी कि नोटबंदी के फैसले से पहले 38.52 लाख मजदूर मनरेगा के तहत रोजगार तलाश रहे थे। 2 दिसंबर को इस आंकड़ें में मामूली गिरावट आने के बाद यह 35.60 लाख के स्तर पर आ गया था। लेकिन इसके तुरंत बाद दिसंबर महीने के दौरान इस आंकड़ा बढ़ता रहा जो कि 5 जनवरी 2017 तक 78.90 लाख और 8 जनवरी को 83.60 लाख हो गया।