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गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा पर जोर, नीति आयोग की इन सिफारिशों से जानें कैसे बदल जाएगी सर्विस सेक्‍टर की तस्‍वीर

देश के सर्विस सेक्टर में अस्थाई तौर पर काम करने वाले डिलीवरी ब्वाय प्लेटफार्म वर्कर्स या ठेके पर काम करने वाले दूसरे सभी कामगारों की स्थिति पर सरकार का ध्यान गया है। नीति आयोग की तरफ से तैयार रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया गया है

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2022 10:37 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2022 08:40 AM (IST)
गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा पर जोर, नीति आयोग की इन सिफारिशों से जानें कैसे बदल जाएगी सर्विस सेक्‍टर की तस्‍वीर
नीति आयोग ने गिग वर्कर्स को समाजिक सुरक्षा देने की सिफारिश की है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के सर्विस सेक्टर में अस्थाई तौर पर काम करने वाले डिलीवरी ब्वाय, प्लेटफार्म वर्कर्स या ठेके पर काम करने वाले दूसरे सभी कामगारों की स्थिति पर सरकार का ध्यान गया है। नीति आयोग की तरफ से तैयार रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया गया है कि सभी तरह के गिग वर्कर्स को समाजिक सुरक्षा जैसे पेड लीव, बीमा होने वाले छुट्टी, बीमा, सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ जैसी सुविधाएं देने की व्यवस्था की जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले आठ-नौ वर्षं में देश में सृजित कुल रोजगार का 4.1 प्रतिशत इस तरह के अस्थाई कामगारों का ही होगा।

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  • सेवा क्षेत्र में अस्थाई तौर पर काम करने वाले वर्कर्स की स्थिति पर नीति आयोग की रिपोर्ट
  • आयोग ने कामगारों को पेड लीव, बीमा, सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ जैसी सुविधाएं देने की सिफारिश की
  • जानकारों की मानें तो यदि ये सिफारिशें लागू हो जाती हैं तो सर्विस सेक्‍टर की पूरी तस्‍वीर ही बदल जाएगी
  • आठ से नौ वर्षं में देश में सृजित कुल रोजगार का 4.1 प्रतिशत इस तरह के अस्थाई कामगारों का होगा

दुनिया में तेजी से ग्रो कर रहा सर्विस सेक्टर

रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में जिस तरह से इकोनमी में बदलाव हो रहा है उसे देखते हुए गिग वर्कर्स की संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में भी यह संख्या तेजी से बढ़ेगी। इसके पीछे वजह यह है कि सर्विस सेक्टर यहां पर काफी तेजी से फल-फूल रहा है।

गिग वर्कर्स का आंकड़ा

-26.6 लाख खुदरा और बिक्री क्षेत्र में

-13 लाख ट्रांसपोर्ट सेक्टर में

-6.2 लाख मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में

-6.3 लाख वित्त व बीमा क्षेत्र में

-2.3 करोड़ लोग गिग वर्कर्स के तौर पर करेंगे काम वर्ष 2030 तक

यह भी एक वजह

दूसरा कारण यह है कि भारत में युवा आबादी की संख्या काफी ज्यादा है जिनके एक बड़े वर्ग को सर्विस सेक्टर में रोजगार मिलेगा। साथ ही स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या और तेजी से बढ़ता शहरीकरण दो अन्य वजहें हैं जिसके कारण अस्थाई तौर पर मिलने वाले रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

गिग वर्कर्स की सुरक्षा जरूरी

हाल के वर्षों में फ्लिपकार्ट, अर्बन कंपनी, ओला, ऊबर, डेल्हीवरी, स्विगी, जोमैटो, डुंजो, बिग बास्केट जैसी कंपनियों ने जिस तेजी से भारतीय इकोनमी में अपनी जगह बनाई है उसे देखते हुए इनमें काम करने वाले गिग वर्कर्स की सुरक्षा के महत्व को इकोनमी के साथ जोड़ कर देखा गया है।

दुर्घटना होने पर बीमा देने की भी हो व्यवस्था

इन कामगारों को वेतन समेत छुट्टी, बीमार पड़ने पर छुट्टी, बीमा, स्वास्थ्य लाभ जैसी सुविधाएं देने की सिफारिश है। दूसरी अहम सिफारिश पेशे से जुड़े जोखिम और काम करते वक्त दुर्घटना होने पर बीमा देने की व्यवस्था भी अलग से होनी चाहिए। बाइक रेंटल या राइड सेवा देने वाली कंपनियों के संदर्भ में कहा गया है कि हर ग्राहक से हासिल शुल्क का एक छोटा हिस्सा दुर्घटना बीमा कोष में जमा करने की प्रथा शुरू की जा सकती है, जिससे बड़ी संख्या में इनमें काम करने वालों को फायदा होगा।

आर्थिक मदद के खुलेंगे रास्‍ते

इस कोष का इस्तेमाल दुर्घटना होने पर आर्थिक मदद देने में की जा सकती है। एप आधारित टैक्सी सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए काम करने वालों के सदंर्भ में ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पिछले वर्ष दिए गए एक फैसले का उदाहरण दिया गया है कि किस तरह से वहां ऊबर के ड्राइवरों को कई तरह की सामाजिक सुरक्षा सर्विस मिलने लगी है।

विशेष ऋण सुविधा देने की भी सिफारिश

रिपोर्ट में नई तरह की इकोनमी में प्लेटफार्म जाब करने वालों को भी गिग वर्कर्स मानते हुए उनके लिए विशेष ऋण की सुविधा देने या सरकार की तरफ से उन्हें बड़े पैमाने पर काम करने की सुविधा देने की सिफारिश की गई है। इससे क्षेत्रीय खाने-पीने की चीजों या दूसरे क्षेत्रीय उत्पादों का बड़ा बाजार तैयार करने में मदद की जा सकती है। ट्रेंड यह बता रहा है कि बेहद प्रशिक्षित और कम प्रशिक्षित गिग वर्कर्स की संख्या बढ़ रही है लेकिन मझोले स्तर पर इनकी संख्या घट रही है।

कौन है गिग वर्कर्स

कामगारों का ऐसा वर्ग जो सामान्य नियोक्ता-श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते, स्वतंत्र तौर पर कांट्रेक्ट पर काम करते हैं। सामान्य तौर पर ये सर्विस देने वाली कंपनियों के लिए सेवाओं व उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करते हैं या उत्पाद तैयार करने में निश्चित अवधि के लिए मदद करते हैं। जोमैटो, ओला, ऊबर, स्विगी जैसे सैकड़ों मोबाइल एप आधारित कंपनियां इन कामगारों के बदौलत ही चलती हैं। इनके काम करने की अवधि निर्धारित नहीं होती। कई बार इस सेक्टर में काम करने वाले आय के लिए दूसरे काम भी करते हैं और यहां पार्ट-टाइम जाब करते हैं।


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