म्युचुअल फंड और कर्जदार नहीं कर सकते भुगतान विराम संधि: SEBI
Essel group ने दावा किया है कि उसे विभिन्न म्यूचुअल फंड हाउसेज सहित सभी कर्जदाताओं की तरफ से बकाया की वसूली की समयसीमा बढ़ाने को लेकर पूरा समर्थन मिला हुआ है।
मुंबई, एजेंसी। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने गुरुवार को स्पष्ट किया है कि म्यूचुअल फंड और उनके कर्जदारों के बीच बकाया के भुगतान में ‘विराम’ देने जैसे समझौते का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी निकायों को यह समझ लेना चाहिए और उन्हें इसका पालन करना होगा। सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने संवाददाताओं से कहा कि लेनदेन में कुछ समय के लिए यथास्थिति रखने जैसा प्रावधान किसी भी नियम में नहीं है। हमने इस बारे में स्थिति स्पष्ट कर दी है। निकायों को मौजूद नियमों का ही पालन करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों सुभाष चंद्रा के नेतृत्व वाले एस्सेल ग्रुप ने दावा किया है कि उसे विभिन्न म्यूचुअल फंड हाउसेज सहित सभी कर्जदाताओं की तरफ से बकाया की वसूली की समयसीमा बढ़ाने को लेकर पूरा समर्थन मिला हुआ है। इसी बारे में त्यागी से पूछा गया था कि कुछ निकाय कैसे अब भी विराम देने के समझौते कर रहे हैं।
डीएचएफल के पुनर्गठन के मामले में एसबीआइ द्वारा छूट मांग जाने के बारे में त्यागी ने कहा कि हमारे पास पहले से म्यूचुअल फंड के लिए इंटर क्रेडिटर एग्रीमेंट्स (आइसीए) की व्यवस्था पहले से है, और यही नीति भी है। उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) को एनएसई में अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ सकती है।
एलआइसी और आइडीबीआइ बैंक की एनएसई में करीब 14 प्रतिशत संयुक्त हिस्सेदारी है। सेबी के शेयरधारिता नियम के मुताबिक शेयर बाजारों के मामले में कोई भी संस्थागत निवेशक 15 प्रतिशत से अधिक शेयर नहीं रख सकता है जबकि कोई कारोबारी सदस्य अथवा ब्रोकर शेयर बाजारों का पांच प्रतिशत से ज्यादा होल्डिंग नहीं रख सकता है।
एलआइसी पहले संस्थागत निवेशक के तौर पर जाना जाता था लेकिन आइडीबीआइ के अधिग्रहण के बाद वह एक कारोबारी सदस्य के तौर पर जाना जाता है। पीडब्ल्यूसी मामले में सिक्युरिटीज अपीलेट टिब्यूनल यानी सैट के फैसले के बारे में उन्होंने कहा कि सेबी की कानूनी मामलों की टीम आदेश का अध्ययन कर रही है।