कृषि कर्ज माफी चुनावी वायदों का हिस्सा नहीं होना चाहिए: रघुराम राजन
सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं है आखिरी समाधान: रघुराम राजन ने कहा कि सरकारी बैंकों का निजीकरण हर मर्ज की दबाव नहीं है।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शुक्रवार को कहा कि कृषि कर्ज माफी को चुनावी वायदों का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए और उन्होंने निर्वाचन आयोग को लिखा भी है कि ऐसे वायदों पर रोक लगाया जाए। उन्होंने कहा कि इससे कृषि क्षेत्र में निवेश पर नकारात्मक असर पड़ता है और कृषि कर्ज माफ करने वाले राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर भी दबाव पड़ता है।
उन्होंने ‘भारत के लिए एक आर्थिक रणनीति’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा कि पिछले पांच साल में हुए प्रत्येक राज्य विधानसभा चुनावों में किसी न किसी पार्टी ने कर्ज माफी का वादा किया। हाल में हुए राज्यों के चुनाव में भी कुछ राजनीतिक पार्टियों ने कृषि कर्ज माफ करने और अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के वायदे किए थे।
उन्होंने कहा कि मैं कहता रहा हूं और मैंने निर्वाचन आयोग को भी लिखा है कि ऐसे वायदों पर रोक लगाई जानी चाहिए। कृषि समस्या के बारे में सोचना वाजिब है।
सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं है आखिरी समाधान: रघुराम राजन ने कहा कि सरकारी बैंकों का निजीकरण हर मर्ज की दबाव नहीं है। कर्ज लक्ष्यों और बैंकों की शाखाओं के जरिए योजनाओं को चलाने जैसे अलाभकर आदेशों को भी अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि सांविधिक तरलता अनुपात घटाया जाना चाहिए और इसकी जगह बैसल द्वारा निर्धारित लिक्विडिटी कवरेज अनुपात और नेट स्टेबल फंडिंग अनुपात लाया जाना चाहिए। बैंकों का एनपीए काफी बढ़ गया है और सरकारी बैंकों के बोर्ड को पेशेवर बनाने की जरूरत ह।