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सुधारों पर राज्यों से सहमति बनाना जरूरी

नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। आम चुनाव से पहले संप्रग सरकार के आखिरी बजट की तैयारियों में जुटे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ऐसे कई सुधारों को लेकर चिंतित होंगे जिनके अमल की चाबी राज्यों के पास है। चाहे वह वैट को बदल देश में जीएसटी लागू करने का सवाल हो या फिर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ या महंगाई को काबू करने वाले मंडी कानून

By Edited By: Published: Thu, 07 Feb 2013 08:56 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
सुधारों पर राज्यों से सहमति बनाना जरूरी

नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। आम चुनाव से पहले संप्रग सरकार के आखिरी बजट की तैयारियों में जुटे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ऐसे कई सुधारों को लेकर चिंतित होंगे जिनके अमल की चाबी राज्यों के पास है। चाहे वह वैट को बदल देश में जीएसटी लागू करने का सवाल हो या फिर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ या महंगाई को काबू करने वाले मंडी कानून में बदलाव के प्रस्ताव। इन सभी आर्थिक सुधारों पर बिना राज्यों की सहमति के आगे बढ़ना बेमानी है। वित्त मंत्री को अपने बजट में आर्थिक सुधारों का खाका तैयार करते वक्त राज्यों के साथ उलझी इस गुत्थी से जूझना होगा।

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मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] को केंद्र सरकार भले ही मंजूरी दे चुकी है लेकिन देश के कई बड़े राज्य इसे लागू करने के हक में नहीं हैं। सरकार ने इसके विरोध को देखते हुए ही राज्यों को इसे लागू करने या न करने का अधिकार नीति के तहत दिया है। मगर अब यह जाहिर हो गया है कि उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के राजी हुए बिना देश में बड़ी मल्टीब्रांड कंपनियों को लाना संभव नहीं होगा।

इससे भी खराब हालत वस्तु व सेवा कर [जीएसटी] को लेकर है। वैट को बदल सभी अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर पूरे देश में जीएसटी को अप्रैल 2010 से लागू होना था। मगर बिक्री कर के मुआवजे के भुगतान से लेकर टैक्स की दरों पर राज्यों से सहमति नहीं बनने की वजह से अभी तक इस पर अमल की स्थिति नहीं बन सकी है। हालांकि, वित्त मंत्री ने नए सिरे से राज्यों के साथ बातचीत शुरू की है और इसके संकेत भी अच्छे दिख रहे हैं। इसके बावजूद अप्रैल 2013 से इसे लागू कर पाने की स्थिति में सरकार नहीं है।

पिछले डेढ़ साल से महंगाई केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ा मुद्दा रही है। आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा करने में महंगाई एक बड़ी वजह रही है। बावजूद इसके केंद्र राज्यों को मंडी कानून में बदलाव के लिए नहीं मना पाया है। इससे खाद्य उत्पादों समेत तमाम आवश्यक वस्तुओं की पूरे देश में एक समान आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी। ऐसे सभी मुद्दों पर राज्यों का आरोप है कि केंद्र उनकी सहमति तो चाहता है लेकिन विकास के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में हमेशा राज्यों के साथ भेदभाव बरतता है। चुनावी साल का बजट होने के नाते वित्त मंत्री को इन सब मुद्दों पर ध्यान देना होगा। साथ ही सुधारों पर राज्यों की सहमति के लिए एक संतुलित नजरिया अपनाना होगा।


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