पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम न करना केंद्र की रणनीति या राजनीतिक ''मजबूरी''
पेट्रोल और डीजल की कीमतें आम आदमी को राहत क्यों नहीं दे पा रही हैं, हमने एक्सपर्ट की मदद से पूरा मुद्दा समझने की कोशिश की है
नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हो रही छिटपुट गिरावट आम आदमी को उम्मीद के मुताबिक राहत नहीं दे रही है। हालांकि ओपक देशों के बीच उत्पादन में इजाफे को लेकर बनी सहमति आने वाले दिनों में ईंधन की कीमतों में कटौती की आस जगा रही है।
नीतिगत मोर्च पर बात की जाए तो लगातार उठ रही मांग के बावजूद केंद्र सरकार ने इस मामले में किसी तरह की राहत देने की संभावना को सीधे-सीधे खारिज कर दिया है। पेट्रोल और डीजल, अन्य कमोडिटी के मुकाबले राजनीतिक रूप से संवेदनशील होते हैं, जो किसी व्यक्ति के मतदाता के रूप में उसके विचार को प्रभावित करता है। हालांकि ओपेक देशों के बीच बनी सहमति आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नीचे लाएगी और लोगों को थोड़ी-बहुत राहत मिलेगी। लेकिन यह राहत केंद्र सरकार की तरफ से एक्साइज ड्यूटी में की जाने वाली कटौती से मिलने वाले फायदे से बेहद कम और न्यूनतम होगी।
ऐसी स्थिति में केंद्र की तरफ से दरों में कटौती किए जाने की संभावनाओं को खारिज किए जाने का क्या मतलब है? और दरों में कटौती न करना रणनीति है या मजबूरी?
कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड के हेड डॉ. रवि सिंह ने कहा, 'पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी को कम न करना केंद्र सरकार की रणनीतिक और राजनीतिक दोनों ही तरह की मजबूरी है।'
उन्होंने कहा, ''दरअसल सरकार ईंधन की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती के लिए इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे किसान और आम आदमी के लिए कई तरह की योजनाएं लॉन्च करनी है। यह योजनाएं चाहे आवास से जुड़ी हो या किसी अन्य क्षेत्र के, उसमें पैसों की जरूरत होगी और सरकार के पास पेट्रोल-डीजल से बड़ा रेवेन्यू का दूसरा कोई जरिया नहीं है।''
सिंह ने कहा कि वर्तमान में पेट्रोल और डीजल पर 52 फीसद का टैक्स (केंद्र एवं राज्य दोनों) लगाया जा रहा है। शायद यही कारण है कि सरकार फिलहाल पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में नहीं रख रही है।
हालांकि ओपेक देशों के प्रोडक्शन बढ़ाए जाने की स्थिति में कीमतों को लेकर राहत मिलेगी। पेट्रोलियम का उत्पादन करने वाले देशों की तरफ से उत्पादन बढ़ाए जाने के बाद क्रूड के दाम गिरेंगे जो कि भारत में भी पेट्रोल और डीजल को सस्ता करेंगे।
अगले साल होने वाले आम चुनाव को देखते हुए सरकार की तरफ से इस मामले में कुछ राहत दिए जाने की उम्मीद है। हालांकि पेट्रोलियम को जीएसटी में शामिल किए जाने की संभावना के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
सिंह ने कहा कि हो सकता है कि सरकार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में ले आए, लेकिन फिर इसमें वैट शामिल नहीं होना चाहिए, जैसा कि अनुमान लगा जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ''अगर पेट्रोल पर जीएसटी के साथ वैट भी लगा तो यह जनता को बेवकूफ बनाने वाली बात होगी क्योंकि यह ''वन नेशन और वन टैक्स'' की धारणा को खारिज करने जैसे होगा।''
तो क्या निकट भविष्य में उपभोक्ताओं को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में राहत मिलने की उम्मीद है?
केडिया कमोडिटीज के प्रमुख अजय केडिया बताते हैं, ''पेट्रोल और डीजल की मांग में जो इजाफा देखने को मिला है वो सीजनल है।'' उन्होंने कहा कि अप्रैल और मई के दौरान आम तौर पर इसकी मांग में हर साल तेजी देखने को मिलती है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अपने खेतों को पानी देना होता है जिसके लिए डीजल की जरूरत होती है। वहीं शहरी क्षेत्रों में गर्मियों के दिनों में लाइट ज्यादा जाने के कारण जेनरेटर में भी डीजल का इस्तेमाल बढ़ जाता है। शायद यही वजह है कि कीमतों में अनिश्चितता बनी हुई है। लेकिन आगे स्थितियां सामान्य हो सकती हैं।
अभी तक स्थिति यह थी ओपेक के प्रोडक्शन कट जारी रखने के फैसले और जियो पॉलिटिकल टेंशन के चलते क्रूड में उबाल था, जिसने भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को बढ़ा रखा था। लेकिन अब स्थितियां लगातार बेहतर होती नजर आ रही हैं।
उन्होंने कहा कि हाल ही में ओपेक देशों ने अपना प्रोडक्शन बढ़ाने के संकेत दिए हैं, वहीं जियो पॉलिटिकल टेंशन में भी थोड़ी नरमी दिख रही है। ऐसे में अगर सप्लाई में इजाफा होगा तो कीमतें आने वाले दिनों में कम हो सकती हैं। वहीं मानसून भी इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। अगर मानसून बेहतर रहता है, तो ग्रामीण क्षेत्रों में डीजल की मांग कम होगी लेकिन दूसरी तरफ से सप्लाई (आपूर्ति) में इजाफा जारी रहेगा जो कि ईंधन की कीमतों को काफी हद तक कम कर देगा।