जानिए डॉलर के मुकाबले मजबूत होते रुपए की वजह और फायदे-नुकसान
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में तेजी जारी है और यह भारत के आम आदमी के लिहाज से एक अच्छा संकेत है
नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। बुधवार के कारोबार में भारतीय रुपया 8 पैसे की कमजोरी के साथ 63.56 के स्तर पर कारोबार करता देखा गया, हालांकि दिन के 11 बजे के करीब रुपया थोड़ा सुधरकर 63.50 के स्तर पर आ गया। वहीं दोपहर 12 बजे रुपए में और सुधार देखने को मिला और यह डॉलर के मुकाबले 63.48 के स्तर पर आ गया। गौरतलब है कि मंगलवार के कारोबार में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 63.44 के स्तर पर पहुंच गया था जो कि बीते ढाई साल का उच्चतम स्तर रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर भारतीय रुपए में डॉलर के मुकाबले इतनी तेजी क्यों आ रही है? हम अपनी इस रिपोर्ट में आपको यही बताने जा रहे हैं कि आखिर रुपया इतना मजबूत क्यों हो रहा है। हमने इस संबंध में केडिया कमोडिटी के प्रमुख अजय केडिया के साथ विस्तार से बात की है।
आखिर क्यों मजबूत हो रहा है रुपया:
डॉलर में गिरावट जारी: अमेरिका में हाल ही में कॉर्पोरेट टैक्स में संशोधन किया गया है जिसकी वजह आउटलुक थोड़ा डाउन हुआ है। अगर आंकड़े की बात करें तो बीतो एक साल के दौरान डॉलर इंडेक्स में साढ़े 10 फीसद तक की गिरावट देखने को मिली है। इसी गिरावट ने रुपए को मजबूती दी है।
भारत सरकार के सुधारों का असर रुपए पर: अजय केडिया ने बताया कि भारत सरकार की ओर से हाल ही में किए गए टैक्स सुधारों का असर रुपए की स्थिति पर पड़ा है। साथ ही भारतमाला जैसी परियोजनाओं ने भी रुपए को मजबूती देने का काम किया है।
जीडीपी ग्रोथ बेहतर होने के संकेत: केडिया ने बताया कि जीडीपी के आउटलुक बेहतर रहे हैं, तमाम एजेंसियों की ओर से भारत की जीडीपी के सुधरने के अनुमान लगाए गए हैं। वहीं मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई के नंबर्स ने भी उत्साहित किया है। आपको बता दें कि 2 जनवरी को जारी किए गए मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई के नंबर्स बीते पांच सालों में सबसे बेहतर रहे हैं और मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआइ लगातार पांचवें महीने 50 से ऊपर रहा है। इसके अलावा इंडस्ट्रियल ग्रोथ ने भी बेहतरी के संकेत दिए हैं।
बैंकिंग रिफॉर्म्स: सरकार बैंकिंग रिफॉर्म्स की दिशा में भी तेजी से काम कर रही है। बीते साल एसबीआई में इसके पांच सहयोगी और एक भारतीय महिला बैंक का विलय किया गया। सरकार बैंकों की संख्या को कम कर चुनिंदा बड़े बैंक स्थापित करना चाहती है। वहीं सरकार एनपीए के मुद्दे पर भी गंभीरता से काम कर रही है।
विदेशी निवेश में हुआ इजाफा: केडिया ने बताया कि विदेशी निवेश में इजाफा भी भारतीय रुपए की मजबूती के लिहाज से अहम है। साल 2017 की अगर बात करें तो अप्रैल से दिसंबर तक 32 बिलियन का निवेश एफपीआई के जरिए आया है,जो कि साल 2016 के दौरान 4 से 5 बिलियन का रहा था।
2018 की पहली तिमाही में कहां तक जा सकता है रुपया?
केडिया ने बताया कि साल 2018 की पहली तिमाही में रुपया और बेहतर प्रदर्शन करेगा। अगर सिर्फ पहली तिमाही की बात की जाए तो यह निचले स्तर पर 62.70 और ऊपरी स्तर पर 65.20 तक जा सकता है।
रुपए के लिए कैसा रहेगा 2018:
केडिया कमोडिटी के प्रमुख अजय केडिया ने बताया कि अगर ओवरऑल देखें तो साल 2018 रुपए के लिए बेहतर है और रुपया इस साल मजबूती ही दिखाएगा। हालांकि इस साल की पहली तिमाही रुपए के लिए थोड़ी चुनौतीपूर्ण है। इसके कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि अमेरिका में हाल ही में इंटरेस्ट रेट में इजाफा किया गया है, जिसका असर साल 2018 में भी दिखाई देगा। अमेरिकी फेड रिजर्व का यह कदम डॉलर को मजबूती देगा जिससे रुपया थोड़ा कमजोर हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ डोमेस्टिक फंडामेंटल कमजोर है। फरवरी में बजट आना है इसलिए लोग प्रॉफिट बुकिंग का रुख कर सकते हैं, यह भी रुपए को थोड़ा कमजोर कर सकता है। इसके अलावा सरकार की हालिया उधारी भी रुपए की स्थिति में परिवर्तन ला सकती है। क्योंकि सरकार की अतिरिक्त उधारी बाजार में चिंताएं बढ़ा सकती है जिससे रुपया कमजोर हो सकता है। इसके अलावा हाल ही में एक्सपोर्ट के डेटा थोड़े खराब आए हैं, ऐसे में सरकार को इसे सुधारने के लिए रुपए को थोड़ा गिराना होगा। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि साल 2018 की पहली तिमाही में रुपया डॉलर के मुकाबले 64.80 से 65 के स्तर तक जा सकता है। वहीं दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान रुपए में स्टेबलाइजेशन देखने को मिल सकता है। इस दौरान यह डॉलर के मुकाबले 64.30 से 64.50 तक जा सकता है। वहीं सरकार की ओर से अगले साल के इलेक्शन को देखते हुए जो भी प्रयास किए जाएंगे उसके नतीजे आखिरी तिमाही में दिखने लगेंगे और रुपया फिर से मजबूत होगा। रुपया आखिरी तिमाही में 62.80 से 63 के आस पास कारोबार करता हुआ देखा जा सकता है। आमतौर पर साल की आखिरी तिमाही रुपए के लिए मजबूत माना जाती है।
जानिए रुपए की मजबूती से आम आदमी को कौन से 4 बड़े फायदे होंगे-
सस्ता होगा विदेश घूमना: रुपए के मजबूत होने से वो लोग खुश हो सकते हैं जिन्हें विदेश की सैर करना काफी भाता है। क्योंकि अब रुपए के मजबूत होने से आपको हवाई किराए के लिए पहले के मुकाबले थोड़े कम पैसे खर्च करने होंगे। फर्ज कीजिए अगर आप न्यूयॉर्क की हवाई सैर के लिए 3000 डॉलर की टिकट भारत में खरीद रहे हैं तो अब आपको कम भारतीय रुपए खर्च करने होंगे।
विदेश में बच्चों की पढ़ाई होगी सस्ती: अगर आपके बच्चे विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं तो रुपए का मजबूत होना आपके लिए एक अच्छी खबर है। क्योंकि अब आपको पहले के मुकाबले थोड़े कम पैसे भेजने होंगे। मान लीजिए अगर आपका बच्चा अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है, तो अभी तक आपको डॉलर के हिसाब से ही भारतीय रुपए भेजने पड़ते थे। यानी अगर डॉलर मजबूत है तो आप ज्यादा रुपए भेजते थे, लेकिन अब आपको डॉलर के कमजोर (रुपए के मजबूत) होने से कम रुपए भेजने होंगे। तो इस तरह से विदेश में पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई भारतीय अभिभावकों को राहत दे सकती है।
क्रूड ऑयल होगा सस्ता तो थमेगी महंगाई: डॉलर के कमजोर होने से क्रूड ऑयल सस्ता हो सकता है। यानी जो देश कच्चे तेल का आयात करते हैं, उन्हें अब पहले के मुकाबले (डॉलर के मुकाबले) कम रुपए खर्च करने होंगे। भारत जैसे देश के लिहाज से देखा जाए तो अगर क्रूड आयल सस्ता होगा तो सीधे तौर पर महंगाई थमने की संभावना बढ़ेगी। आम उपभोक्ताओं के खाने-पीने और अन्य जरूरी सामानों की आपूर्ति परिवहन माध्यम से की जाती है, इसलिए महंगाई थम सकती है।
डॉलर में होने वाले सभी पेमेंट सस्ते हो जाएंगे: वहीं अगर डॉलर कमजोर होता है तो डॉलर के मुकाबले भारत जिन भी मदों में पेमेंट करता है वह भी सस्ता हो जाएगा। यानी यह भी भारत के लिए एक राहत भरी खबर है।
रुपए की कमजोरी से भारत को होते हैं ये नुकसान: रुपए की मजबूती से भले ही आम आदमी को फायदा होता हो लेकिन देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह कुछ हद तक नकारात्मक भी है..जैसे कि
देश के निर्यातकों को होता है बड़ा नुकसान: भारत की सरकार के देश के निर्यातकों को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह के प्रयास करती है। ऐसे में अगर रुपया मजबूत होता है और डॉलर कमजोर तो उनके लेन-देन के लिहाज से घाटा सहना पड़ेगा क्योंकि उनकी सारी डीलिंग डॉलर में ही होती है। ऐसे में कमजोर डॉलर उन्हें काफी नुकसान दे जाता है।
देश की प्रमुख सर्विस प्रोवाइडर को नुकसान: रुपए की मजबूती टीसीएस और इन्फोसिस जैसी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के लिए भी नुकसानदेह है। डॉलर की कमजोरी के बाद अमेरिका जैसे देशों में कारोबार करने वाली इन कंपनियों को बिजनेस में नुकसान उठाना पड़ता है। यानी उन्हें अपनी सेवाओं के लिए पहले की तुलना में कम पैसा (डॉलर) मिलता है।