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IPO vs FPO: आईपीओ और एफपीओ और में क्या है अंतर, निवेश करने के लिए कौन-सा सबसे ज्यादा सुरक्षित

कंपनी पहली बार शेयर मार्केट में लिस्ट होकर पैसा जुटाना चाहती है तो वह इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) लेकर आती है। इसके साथ ही कंपनी पब्लिक हो जाती है और शेयर बीएसई या एनएसई में लिस्ट हो जाती है। जब कोई लिस्टेड कंपनी अपने विस्तार और अन्य जरूरत के लिए मार्केट से दोबारा पैसा जुटानी है तो वह फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) लेकर आती है।

By Subhash Gariya Edited By: Subhash Gariya Published: Thu, 18 Apr 2024 04:07 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 04:40 PM (IST)
नई या पहले से लिस्टेड कंपनी कहां करें निवेश

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। वित्तीय संकट का सामना कर रही देश की प्रमुख टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया (VI) फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग (FPO) लेकर आई है। कंपनी ने अपनी मुश्किलें कम करने के लिए मार्केट से 18000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है। इसे लेकर सबसे दिलचस्प बात है कि यह देश का अब तक का सबसे बड़ा FPO है, जो 18 से 22 अप्रैल तक सब्सक्राइब किया जाएगा।

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VI के FPO की अलॉटमेंट डेट 23 अप्रैल है। संभावना है कि बीएसई और एनएसई में कंपनी ने एफपीओ शेयर 25 अप्रैल को ही लिस्ट हो जाएंगे। अगर आप भी एफपीओ और आईपीओ में कन्फ्यूज हैं तो यहां हम आपको डिटेल में इन दिनों में अंतर की जानकारी डिटेल में दे रहे हैं।

FPO और IPO में अंतर

जब कोई कंपनी पहली बार शेयर मार्केट में लिस्ट होकर पैसा जुटाना चाहती है तो वह इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) लेकर आती है। ऐसा कर वह पहली बार लोगों के लिए शेयर जारी करती है और स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी के शेयर को लिस्ट करती है। इसके साथ ही कंपनी पब्लिक हो जाती है और शेयर बीएसई या एनएसई में लिस्ट हो जाती है।

दूसरी ओर, जब कोई लिस्टेड कंपनी अपने विस्तार और अन्य जरूरत के लिए मार्केट से दोबारा पैसा जुटानी है तो वह फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) लेकर आती है। इसके लिए कंपनी के प्रमोटर्स और बड़े शेयरधारक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बेचते हैं।

FPO कैसे काम करता है?

आमतौर पर कंपनियों को जब नया बिजनेस शुरू करने या फिर लोन चुकाने के लिए अतिरिक्त फंड की जरूरत होती है तो वह एफपीओ लेकर आती है। कंपनी दो तरीके से ऐसा करती है।

  • पहला तरीका वह लोगों के लिए अतिरिक्त शेयर जारी करती है। इसमें कंपनी की वैल्यू वहीं रहती हैं। इसे डाइल्यूटिव एफपीओ के रूप में जाना जाता है। जैसे-जैसे शेयर की संख्या बढ़ती है प्रति इक्विटी शेयर की कीमत कम हो जाती है।
  • दूसरे तरीके की बात करें तो कंपनी के बड़े शेयरधारक अपनी इक्विटी को मार्केट में बेचने की पेशकश करते हैं। ऐसा कर कंपनी के प्रमोटर्स और बड़े शेयर धारक अपनी हिस्सेदारी बेचते हैं। इसमें कंपनी के शेयर की संख्या समान रहती हैं और वैल्यूवेशन में कुछ भी असर नहीं होता है।

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निवेशकों के लिए मौका

IPO की तरह ही FPO में निवेशक बोली लगाकर भाग ले सकते हैं। सफल बॉयर्स को शेयर मिल जाते हैं। IPO की तुलना में FPO में निवेश करना कम जोखिम भरा हो सकता है। इसे ऐसे समझिए, जब आप आईपीओ में निवेश करते हैं तो प्राइवेट कंपनी में हिस्सेदारी चुनते हैं और कंपनी के शेयर लिस्ट होने के बाद ही आपको मुनाफा या घाटे का पता चलता है।

दूसरी ओर, एफपीओ में आप एक लिस्टेड कंपनी के शेयर खरीदते हैं। यहां शेयर की कीमत का रुझान, कंपनी और उससे जुड़ी दूसरी जानकारी पहले से मालूम होती है। इसके साथ ही एफपीओ में निवेश कर निवेशक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को और बढ़ा सकते हैं। अगर कंपनी का रिकॉर्ड अच्छा है तो बेहतर ग्रोथ की संभावना रहती है।

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