इंश्योरेंस में निवेश बढ़ाने के लिए नया सोचने की जरूरत
पर्सनल फाइनेंस और टर्म इंश्योरेंस जैसे बिल्कुल आसान मामलों को लेते हैं। किसी भी ऐसे व्यक्ति को टर्म इंश्योरेंस लेना ही चाहिए जो परिवार का एकलौता कमाऊ सदस्य है।
यह सवाल अक्सर जेहन में आता है कि लोग ऐसा काम क्यों नहीं करते जो उनके लिए अच्छा है? वैसे यह बहुत कठिन सवाल है। इसे हम मूर्खतापूर्ण भी कह सकते हैं, अथवा दोनों तरह से इसकी व्याख्या की जा सकती है। हालांकि लोगों को किसी काम के लिए प्रोत्साहित तो किया ही जा सकता है। हम कई क्षेत्रों में ऐसा देखते भी रहे हैं। उदाहरण के लिए विज्ञापन जगत को देखें, जो किसी प्रोडक्ट के लिए सामूहिक तौर पर लोगों को प्रोत्साहित करता है। इसके अलावा भी प्रोत्साहन के कई और उदाहरण मौजूद हैं।
चलिए, पर्सनल फाइनेंस और टर्म इंश्योरेंस जैसे बिल्कुल आसान मामलों को लेते हैं। किसी भी ऐसे व्यक्ति को टर्म इंश्योरेंस लेना ही चाहिए जो परिवार का एकलौता कमाऊ सदस्य है। इसकी वजह यह है कि उस पर पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी होती है। लेकिन इसके बावजूद लोग उस उत्पाद को खरीदने में कोई रुचि नहीं दिखाते। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि लोग ऐसा कोई भी उत्पाद खरीदने में रुचि नहीं लेते, जिससे कोई रिटर्न नहीं मिलता हो। इंश्योरेंस एजेंट भी आम लोगों में इस आदत के विकसित होने में काफी हदतक जिम्मेदार हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस आदत को बदला कैसे जाए? एक आम धारणा है कि लोगों को पूरी जानकारी देकर उन्हें इंश्योरेंस जैसे उत्पाद बेचे जा सकते हैं।
निश्चित तौर कुछ मामलों में यह सही हो सकता है। लेकिन यह गहरी मान्यता है और इसे आसानी से इसे बदला नहीं जा सकता। लोगों के मनोविज्ञान को बदलने के लिए टिक की जरूरत पड़ सकती है। चलिए एक पुरानी टिक के बारे में बात करते हैं। इस टिक को 19वीं सदी के अंत में लोगों को इंश्योरेंस बेचने के लिए प्रयोग किया जाता था। उस समय की इंश्योरेंस कंपनियां लोगों को अपने उत्पाद बेचने के लिए पहले एक वार्षिक रकम फिक्स करती थीं। इसे टॉनटाइन कहा जाता था। एक टॉनटाइन में समान उम्र के लोगों का ग्रुप निवेश करता था। इस टॉनटाइन से जो आय होती थी उसमें से सबके शेयर के मुताबिक उनका हिस्सा दे दिया जाता था। इस दौरान किसी सदस्य की मौत हो जाने पर उसका हिस्सा कॉमन पूल में चला जाता था। इस तरह से टॉनटाइन की कुल पूंजी एकसमान रहती थी और इससे होने वाली आय ग्रुप के बाकी बचे सदस्यों में बराबर बांटी जाती थी। इस तरह से यह प्रोडक्ट बिल्कुल अनोखा था। इस ग्रुप के लोग जैसे-जैसे मरते जाते, बचे लोगों की इनकम बढ़ती जाती। इस तरह अंत में बचे सदस्य की इनकम बहुत ज्यादा हो जाती थी। ग्रुप के सभी सदस्यों की मौत के बाद इसकी पूरी पूंजी पर इंश्योरेंस कंपनी का अधिकार हो जाता था। इस तरह टॉनटाइन से फायदा होगा या नुकसान, यह निवेशक की जिंदगी पर निर्भर करता था। जितना जीयो उतना कमाओ।
तो क्या आप टॉनटाइन लेना चाहेंगे? मैं जरूर इसमें निवेश करना चाहूंगा। हालांकि बाद में टॉनटाइन पर बैन लगा दिया गया। क्योंकि उस समय इसमें स्कैम होने लगे थे, या कई बार टॉनटाइन के सदस्य इनकम बढ़ाने के लिए एक-दूसरे की हत्या भी करने लगे थे। आज के दौर में टॉनटाइन जैसी व्यवस्था निश्चित तौर पर रिटायर्ड लोगों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करेगी। पुरानी खामियों को दूर करते हुए इसका सुधरा हुआ रूप लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मॉडर्न टॉनटाइन के निवेशक एक-दूसरे से अनजान हो सकते हैं। लेकिन आजकल इंश्योरेंस बहुत रेगुलेटेड हैं, इसलिए टॉनटाइन जैसी व्यवस्था होना आसान नहीं है।
इसी तरह का एक और उदाहरण ताइवान में सामने आया। ताइवान में 1951 तक नेशनल लॉटरी सिस्टम लागू था। इस सिस्टम में लोगों की खुदरा खरीदारी की रसीदों को टिकट मान लिया जाता था। उस समय पूरे ताइवान में एक समान रसीद का चलन था, जिनमें एक जैसी नंबरिंग भी होती थी। ताइवान में हर दूसरे महीने लॉटरी के विजेताओं की घोषणा की जाती थी। इसमें इनाम बहुत बड़ा होता था। उदाहरण के लिए पहला इनाम 2.3 करोड़ रुपये के बराबर होता था और अंतिम इनाम 460 रुपये तक हो सकता था। इसमें विजेता के चयन के लिए ग्रेडेशन सिस्टम का प्रयोग किया जाता था। इसमें सौदे की कीमत के हिसाब से लोग इनाम के हकदार होते थे।
भारत में इस तरह के तरीकों से टैक्स में ईमानदारी का चलन लाया जा सकता है। इस सिस्टम में ग्राहक रसीद लेने की इच्छा जताएंगे। वैसे, भारत के मामले में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। इन उदाहरणों का मतलब बस इतना है कि अजीब चीजें लोगों के व्यवहार को बदल सकती हैं। यह बहुत अच्छा भी हो सकता है और कई मामलों में बुरा भी। पर्सनल फाइनेंस के मामले में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो ठीक नहीं हैं, उनको बदलने की जरूरत है। कुछ नया सोचने की जरूरत है।
अमूमन लोग ऐसी किसी चीज में निवेश नहीं करना चाहते जिससे कोई रिटर्न नहीं मिलता हो। इसी वजह से लोग इंश्योरेंस में निवेश करने से बचते हैं। निवेशकों को यह समझाना बहुत कठिन काम है कि इंश्योरेंस उनके हित में है। इसकी बुनियादी वजह यही है कि इसे निवेश के अच्छे प्रोडक्ट के रूप में विकसित करने की गंभीर चेष्टा नहीं हुई है। इस सेक्टर में निवेश बढ़ाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के तरीके खोजने होंगे। कंपनियों को ऐसे उत्पाद भी लाने होंगे, जो निवेशकों की छोटी और मध्यम अवधि की जरूरतें पूरी करने में मददगार साबित हो सकें।
(लेखक धीरेंद्र कुमार, वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)