एक और मंदी के साये में दुनिया, भारतीय शेयर बाजार के लिए काला दिन
दुनिया भर के तमाम वित्तीय व कमोडिटी बाजार एक बार फिर वैश्विक मंदी के मुहाने पर खड़े होते दिख रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से चीन की अर्थव्यवस्था के कमजोर होने के जो संकेत थम-थम कर मिल रहे थे उसका आशंका और बढ़ गई है। इसकी आशंका में भारत के
नई दिल्ली, [जयप्रकाश रंजन]। दुनिया भर के तमाम वित्तीय व कमोडिटी बाजार एक बार फिर वैश्विक मंदी के मुहाने पर खड़े होते दिख रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से चीन की अर्थव्यवस्था के कमजोर होने के जो संकेत थम-थम कर मिल रहे थे उसका आशंका और बढ़ गई है। इसकी आशंका में भारत के शेयर, मौद्रिक और कमोडिटी बाजार में भी जबरदस्त कोहराम मचा हुआ है।
सोमवार को मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक ने 1624 अंकों का ऐतहासिक गोता लगाया। किसी भी एक कारोबारी दिन में यह बाजार की सबसे बड़ी गिरावट है। बाजार के बंद होने के समय सेंसेक्स 25,742 अंकों पर था और एक दिन में निवेशकों को सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लग गई है। इससे पहले इतनी बड़ी गिरावट शेयर बाजार में यूपीए के कार्यकाल में जनवरी 21, 2008 में दर्ज की गई थी तब बाजार ने 2272.93 अंकों का गोता लगाया था।
डॉलर के मुकाबले रुपये की हालात भी काफी पतली बनी रही। देर शाम तक एक डॉलर की कीमत पिछले कारोबारी दिन के मुकाबले 90 पैसे कमजोर हो कर 66.92 रुपये के स्तर पर आ गया था। बुलियन बाजार में भी जबरदस्त अस्थिरता का माहौल है। सोने व चांदी की कीमतों में गिरावट का रुख बना हुआ है। जानकारों का कहना है कि दुनिया भर के तमाम देशों के वित्तीय और जींस बाजार में एक साथ इतनी बड़ी गिरावट को क्षणिक प्रक्रिया कह कर नहीं टाला जा सकता।
असलियत में मंदी के इस माहौल के लिए चीन के बाजार को लेकर किये गये एक ताजे सर्वेक्षण को दोषी माना जा रहा है। इसके मुताबिक चीन का औद्योगिक उत्पादन पिछले कई वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गया है और इसकी स्थिति में हाल फिलहाल सुधार की गुंजाइश भी कम नजर आ रही है। इसकी आशंका में ही पिछले दिनों चीन की सरकार ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपनी मुद्रा युआन की कीमत का अवमूल्यन किया था। साथ ही विकसित देशों की मांग भी निराशानजक नहीं है। अमेरिका में कई वर्षों बाद ब्याज दरों के बढ़ाने की तैयारी है। यूरोप के अधिकांश देश अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने में जुटे हुए हैं लेकिन यह कब तक पटरी पर आएगी, इसको लेकर कोई भी ठोसपूर्वक कहने को तैयार नहीं है।
सोमवार को मुंबई शेयर बाजार 1055 अंकों की गिरावट के साथ खुला बीच में स्थिति कुछ सुधरी। आरबीआइ गवर्नर का बयान आया और उसके बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी बाजार को भरोसा दिलाने की कोशिश की लेकिन कुछ खास असर नहीं हुआ। बाजार के बंद होने के समय सेंसेक्स 1624 अंक लुढ़क कर 25,742 पर आ चुका था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज भी 491 अंकों की गिरावट के साथ 7809 अंकों पर बंद हुआ। शेयर बाजार की यह मंदी मुद्रा बाजार में भी देखी गई। रुपये डॉलर के मुकाबले 66.92 के स्तर पर पहुंच गया जो पिछले दो वर्षों का रुपये का सबसे न्यूनतम स्तर है।
बाजारों की इस प्रतिक्रिया पर सरकार व रिजर्व बैंक की नजर भी है। यही वजह है कि मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर डॉ. रघुराम राजन बाजार को यह आश्वासन दिया कि देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए रुपये की कीमत में जो अस्थिरता आ रही है उससे घबड़ाने की जरुरत नहीं है। लेकिन राजन के बयान का असर देश के बाजारों पर होता नहीं दिखा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा कि भारतीय बाजार में जल्द स्थिरता लौटेगी।
इस मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी असर पड़ने की संभावना है। वैसे अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजार में भारी मंदी से कुछ फायदा भी होगा। मसलन, कच्चे तेल की कीमतों के 40 डॉलर प्रति बैरल आ जाने से भारत का आयात बिल और कम होगा। साथ ही आम जनता को सस्ती कीमत पर पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस मिलेगी। लेकिन तेल कंपनियों के शेयरों का विनिवेश कर राजस्व घाटा पूरा करने का सरकार की मंशा को धक्का लग सकता है। वैसे भी आज शेयर बाजार में जो गिरावट का माहौल है उससे तेल कंपनियों के शेयरों की कीमतें काफी घटी है। रुपये के कमजोर होने से निर्यात बढ़ने की संभावना कम ही है, क्योंकि दुनिया के तमाम देशों में मांग कम हो रही है और कई मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपया हाल के दिनों में मजबूत हुआ है। हां, खाद्य तेलों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी काफी गिरावट देखी जा रही है। इसका भी फायदा होगा।