पहली अप्रैल से अमल में आ गए हैं टैक्स से जुड़े ये तीन बदलाव, आप सभी के लिए जानना है बेहद जरूरी
Income Tax नए वित्त वर्ष में आपके पास नई कर व्यवस्था का विकल्प चुनने या फिर पुराने के साथ बने रहने का विकल्प है।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। कोरोनावायरस से उपजे संकट के बीच वित्त मंत्रालय ने कई वैधानिक चीजों के लिए समयसीमा को 31 मार्च, 2020 से बढ़ाकर 30 जून, 2020 कर दिया है। हालांकि, वित्त विधेयक 2020 एक अप्रैल, 2020 से लागू हो गया है। इसके साथ ही केंद्रीय बजट में प्रस्तावित कई संशोधन भी बुधवार को अमल में आ गए हैं। ये बदलाव इनकम टैक्स के प्रावधानों से जुड़े हैं, लाभांश वितरण कर से जुड़े है। ऐसे में आपके लिए इन परिवर्तनों के बारे में बारे में विस्तार से जानकारी होनी चाहिए।
नई कर व्यवस्था
नए वित्त वर्ष में आपके पास नई कर व्यवस्था का विकल्प चुनने या फिर पुराने के साथ बने रहने का विकल्प है। नए सिस्टम के तहत Individual Taxpayers के लिए सात टैक्स स्लैब हैं। इसके तहत 2.5 लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं है, 2.5 लाख और 5 लाख के बीच आय पर 5% टैक्स, 5 लाख से 7.5 लाख की आय पर 10% टैक्स, 7.5 लाख से 10 लाख के बीच 15%, 10 लाख से 12.5 लाख पर 20%, 12.5 लाख से 15 लाख पर 25%, 15 लाख से ऊपर की आय पर 30% टैक्स का प्रावधान है। इसके अलावा, जिन लोगों की आय 5 लाख से कम है, वे आयकर अधिनियम की धारा 87A के तहत 12,500 तक की छूट का दावा करना जारी रख सकते हैं।
हालांकि, नई कर प्रणाली के तहत कुछ शर्तों के तहत ही आपको कम दर से टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा। इसके तहत आपको हाउस रेंट अलाउएंस (HRA), सैलरी पर स्टैंडर्ड डिडक्शन, सेक्शन 80C और 80D के तहत मिलने वाली छूट को छोड़ना होगा। ऐसे में किसी भी एक विकल्प को चुनने के लिए आपको अच्छे से पूरे गणित को समझना चाहिए।
लाभांश वितरण कर (DDT)
वित्त विधेयक, 2020 में लाभांश वितरण कर (DDT) को हटा दिया गया है। कंपनियों द्वारा वितरित किए जाने वाले लाभांश पर यह टैक्स लगता था। अब तक कंपनियों को DDT पर 15 फीसद की दर से कर देना होता था। वहीं अगर सरचार्ज और सेस को भी जोड़ लिया जाए तो कंपनियों को लगभग 20.56 फीसद का लाभांश वितरण कर देना पड़ता था। एक अप्रैल से निवेशकों को लाभांश से प्राप्त आय पर निर्धारित स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा। कंपनियों को 5,000 रुपये से अधिक लाभांश देने पर 10 फीसद की दर से TDS काटना होगा।
आवासीय नियम
टैक्स से जुड़े कई नियम टैक्सपेयर के आवास पर निर्भर होते हैं। नए नियमों के मुताबिक अगर कोई भारतीय नागरिक या भारतीय मूल का व्यक्ति बीते साल में देश में 120 दिन से भी कम बिताता है तो भी वह नॉन-रेजिडेंट इंडियन (NRI) कहलाएगा। इससे जुड़े नियम में ढील दिए जाने से बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों को राहत मिली है।