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IFFCO ने शुरू किया Nano Urea का व्यावसायिक उत्पादन, उत्तर प्रदेश के किसानों को भेजी गयी पहली खेप

IFFCO ने बताया कि खेती में यूरिया के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने की गंभीर समस्या से निजात पाने में नैनो यूरिया काफी कारगर साबित होगा। कंपनी के अनुसार 50 किलोग्राम की एक बोरी Urea की जगह मात्र आधा लीटर Nano Urea (तरल) काफी होगा।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 06 Jun 2021 02:11 PM (IST)Updated: Sun, 06 Jun 2021 07:58 PM (IST)
IFFCO ने शुरू किया Nano Urea का व्यावसायिक उत्पादन, उत्तर प्रदेश के किसानों को भेजी गयी पहली खेप
Nano Urea Liquid P C : Pixabay

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। सहकारी क्षेत्र की कंपनी IFFCO द्वारा नैनो यूरिया तरल का व्यावसायिक उत्पादन शुरू कर दिया गया है। इफको ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर नैनो यूरिया तरल की अपनी पहली खेप किसानों के उपयोग हेतु उत्तर प्रदेश भेजी है। कंपनी ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि नैनो यूरिया तरल एक नया और अनोखा उर्वरक है, जिसे दुनिया में पहली बार इफको द्वारा गुजरात के कलोल स्थित नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में इफको की पेटेंटेड तकनीक से विकसित किया गया है।

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इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने 31 मई, 2021 को नई दिल्ली में हुई प्रतिनिधि महासभा के सदस्यों की 50वीं वार्षिक आम सभा की बैठक के दौरान इस उत्पाद को दुनिया के सामने पेश किया था।

इफको ने बताया कि खेती में यूरिया के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने की गंभीर समस्या से निजात पाने में नैनो यूरिया काफी कारगर साबित होगा। कंपनी के अनुसार, 50 किलोग्राम की एक बोरी Urea की जगह मात्र आधा लीटर Nano Urea (तरल) काफी होगा।

इफको का मानना है कि यह पोषक तत्वों से भरपूर है और मिट्टी, जल व वायु प्रदूषण को कम करने में सक्षम है। इफको का दावा है कि नैनो यूरिया के प्रयोग से फसलों की उपज आठ फीसद तक बढ़ेगी। साथ ही खेती की लागत में कमी आएगी, जिससे किसानों की आमदनी को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

गुजरात के कलोल और उत्तर प्रदेश के आंवला व फूलपुर स्थित इफको की इकाइयों में नैनो यूरिया के निर्माण की प्रक्रिया पहले ही शुरू की जा चुकी है। पहले चरण में 14 करोड़ बोतलों की वार्षिक उत्पादन क्षमता विकसित की जा रही है । दूसरे चरण में वर्ष 2023 तक अतिरिक्त 18 करोड़ बोतलों का उत्पादन किया जाएगा। इस प्रकार वर्ष 2023 तक ये 32 करोड़ बोतल संभवतः 1.37 करोड़ मीट्रिक टन यूरिया की जगह ले लेंगे।

भारत में खपत होने वाले कुल नाइट्रोजन उर्वरकों में से 82% हिस्सा यूरिया का है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी खपत में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2020-21 के दौरान यूरिया की खपत 35 मिलियन मीट्रिक टन तक रही है।


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