NPA के बाद किसान कर्ज माफी से बैंकों के वित्तीय ढांचे को पहुंच सकता है नुकसान
NPA की समस्या से जूझ रहे बैंकों का मानना है कि किसानों के कर्ज माफी से इनके वित्तीय ढांचे को नुकसान पहुंचा सकता है
नई दिल्ली(जेएनएन)। किसान के कर्ज माफी को लेकर जिस तरह से देश में राजनीति शुरू हो गई है उससे बैंको के कान खड़े हो गये हैं। पहले से ही फंसे कर्जे (एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिग एसेट्स) की भयंकर समस्या से जूझ रहे इन बैंकों को लगता है कि किसानों के कर्ज माफी का सिलसिला उनके वित्तीय ढांचे को और नुकसान पहुंचा सकता है। सरकारी बैंकों ने अपनी चिंताओं से वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी अवगत करा दिया है। सोमवार को जेटली, आरबीआइ व वित्त मंत्रलय के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में कई सरकारी बैंकों के प्रमुखों ने इस बिगड़ते हालात पर अपनी जताई है।
बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक मुंबई मुख्यालय के एक बैंक के शीर्ष अधिकारी ने यहां तक कह दिया कि अगर महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक व मध्य प्रदेश का भी कर्ज माफ हो जाता है तो उसके बोझ से चालू वित्त वर्ष के दौरान उसका पूरे मुनाफे में चपत लग सकती है। एक अन्य बैंक के चेयरमैन ने कहा कि तेलगांना राज्य की तरफ से माफ किये गये किसानों की कर्ज राशि की भरपाई होने में तीन साल लग गये थे। जबकि माफ किये गये कर्ज की राशि को एनपीए में डालने से उसे भारी भरकम हानि उठानी पड़ी थी। संयुक्त तौर पर बैंकों का यह कहना था कि किसानों के कर्ज माफी का मुद्दा आगे भी जारी रहने के आसार हैं क्योंकि कई अगले वर्ष के अंत तक पांच बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। उसके बाद आम चुनाव भी है।
बैंकों की इन चिंताओं को वित्तीय सलाहकार एजेंसी नोमुरा ने सही ठहराया है। नोमुरा की रिपोर्ट के मुताबिक सभी राज्यों में संयुक्त तौर पर 9.5 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज बकाया है। इसका दो-तिहाई हिस्सा उन राज्यों में है जहां दो वर्षो के भीतर चुनाव होने वाले हैं। यह भी ध्यान देने वाली बात है मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक में सबसे ज्यादा किसान कर्ज माफी के लिए अभियान चल रहा है और यहां भी चुनाव होने वाले हैं। नोमुरा का कहना है कि इससे इन राज्यों में बैंकिंग कर्ज का पूरा ताना-बाना ही गड़बड़ा जाएगा।