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Tax on Petrol-Diesel: सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगाया निर्यात कर, घरेलू कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स

सरकार ने शुक्रवार को पेट्रोल और हवाई जहाज में इस्तेमाल होने वाले एटीएफ के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर और डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर का टैक्स लगाया है। इसके अलावा घरेलू कच्चे तेल उत्पादन पर अतिरिक्त विंडफॉल टैक्स लगाया गया है।

By Sarveshwar PathakEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 06:31 AM (IST)
Tax on Petrol-Diesel: सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगाया निर्यात कर, घरेलू कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स
Tax on Petrol-Diesel: सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगाया निर्यात कर

नई दिल्ली, पीटीआइ। सरकार ने शुक्रवार को पेट्रोल और हवाई जहाज में इस्तेमाल होने वाले एटीएफ (Aviation Turbine Fuel- ATF) के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर टैक्स लगाया है। वहीं, डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर का टैक्स लगाया है। सरकार ने उच्च अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों से उत्पादकों को होने वाले विंडफॉल प्रॉफिट को कम करने के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर 23,230 रुपये प्रति टन अतिरिक्त कर लगा दिया है। सरकार ने यह जानकारी एक नोटिफिकेशन जारी कर दी है।

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चुकाना होगा ज्यादा टैक्स

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियों द्वारा भारत में पेट्रोल-डीजल और जेट फ्यूल (ATF) निर्यात किया जाता है, जिनको अब ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ेगा। वहीं, ओएनजीसी और वेदांता लिमिटेड जैसी घरेलू क्रूड ऑयल उत्पादन करने वाली कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगा दिया है। सरकार ने पेट्रोल और एटीएफ के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर कर और डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर कर लगाया है। इसके अलावा घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर 23,250 रुपये प्रति टन अतिरिक्त कर लगाया गया है।

घरेलू कच्चे तेल उत्पादन से सरकार को प्राप्त होते हैं करोड़ों रुपये 

कच्चे तेल पर लगने वाले लेवी (टैक्स) से राज्य के स्वामित्व वाली ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC), ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) और वेदांत लिमिटेड बंपर कमाई करती हैं। घरेलू 29 मिलियन टन कच्चे तेल उत्पादन से सालाना सरकार को 67,425 करोड़ रुपये प्राप्त होता है।

निर्यात पर टैक्स लगने का मतलब साफ है कि सरकार निर्यात को कम करना चाहती है। इसका उद्देश्य पेट्रोल पंपों पर घरेलू आपूर्ति को कम करना भी है। निजी रिफाइनर स्थानीय स्तर पर ईंधन बेचने की तुलना में ईंधन का निर्यात करना पसंद करते थे। निर्यात को प्राथमिकता दी गई, क्योंकि प्रमुख पब्लिक सेक्टर के खुदरा विक्रेताओं द्वारा खुदरा पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लागत से कम दरों पर सीमित कर दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि निजी खुदरा विक्रेता, जो बाजार हिस्सेदारी के 10 प्रतिशत से कम को नियंत्रित करते हैं या तो नुकसान पर ईंधन बेचते हैं या फिर वे उच्च लागत पर ईंधन बेचकर अपनी हिस्सेदारी खो देते हैं।


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