मॉरीशस के निवेशक अब प्राथमिकता सूची में, सख्त कानूनों से मिलेगी राहत
वित्त मंत्रालय ने मॉरीशस से आने वाले विदेशी निवेश को प्राथमिकता वाली श्रेणी (वन) में रख दिया है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा शेयर बाजारों से निकासी की रफ्तार को देखते हुए सरकार ने अब मॉरीशस से आने वाले विदेशी निवेश के प्रति अपनी चिंताओं को एक तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया है। वित्त मंत्रालय ने मॉरीशस से आने वाले विदेशी निवेश को प्राथमिकता वाली श्रेणी (वन) में रख दिया है। इस श्रेणी के निवेशकों पर टैक्स बोझ भी कम होता है और उन्हें कुछ सख्त नियम कानूनों से भी राहत मिलती है।
वैसे, पूंजी बाजार नियामक सेबी ने भी इस बारे में सरकार को कदम उठाने की खुली छूट दी हुई है। लेकिन एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मॉरीशस अभी भी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में है। पाकिस्तान भी एफएटीएफ की निगरानी सूची में है।
कोराना महामारी के प्रसार के बाद जब संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से निवेश निकालना शुरू किया तो अप्रैल के पहले हफ्ते में मारीशस के रास्ते भारत में पैसा लगाने वाले फंड निवेशकों को वरीयता वाले एफपीआइ के वर्ग में रखने की अनुमति दे दी गई थी। दरअसल, सेबी ने भारत सरकार को यह अनुमति दी थी कि अगर वह चाहे तो एफएटीएफ के दिशानिर्देश नहीं मानने वाले देशों से आने वाले निवेश को भी वरीयता वाली श्रेणी में रखने का अध्यादेश ला सकती है।
अभी तक इस श्रेणी में उन्हीं देशों के फंड या निवेश को रखने का प्रावधान था जिनको लेकर एफएटीएफ को कोई आपत्ति नहीं हो। फरवरी, 2020 में ही मॉरीशस को एफएटीएफ ने ग्रे लिस्ट में रखने का फैसला किया था। उसके बाद से ही वहां पंजीयन करा भारत में निवेश करने वाले निवेशकों के लिए समस्या पैदा हो गई थी।
असल में घरेलू शेयर बाजारों को हासिल विदेशी निवेश में मॉरीशस की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही है। वर्ष 2019 तक के आंकड़े बताते हैं कि देश में आने वाले कुल एफडीआइ में 32 फीसद मॉरीशस, 20 फीसद सिंगापुर और सात फीसद नीदरलैंड्स के रास्ते आए हैं।