भारी कर्ज के कारण रुका भारत की रेटिंग में सुधार: फिच
सरकार पर जीडीपी के करीब 68 फीसदी के बराबर कर्ज का बोझ है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने शुक्रवार को कहा कि सरकार पर कर्ज के भारी दबाव के कारण भारत की रेटिंग में सुधार रुक गया है। लगातार रेटिंग अपग्रेड करने के प्रयास में लगी सरकार के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है। फिच का बयान ऐसे समय में आया है, जब एक दिन पहले पेश बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी के 3.2 फीसद से बढ़ाकर 3.5 फीसद किया है।
बजट में आर्थिक जरूरतों और सामाजिक बेहतरी के लिए कई नीतिगत कदमों की घोषणा की गई। इनमें कृषि से होने वाली आय में बढ़ोतरी और नए मेडिकल कॉलेज बनाने समेत महत्वाकांक्षी चिकित्सा बीमा योजना आदि शामिल हैं। फिच रेटिंग (इंडिया) के डायरेक्टर एवं प्राइमरी सोवरेन एनालिस्ट थॉमस रूक्माकर ने कहा, ‘यदि अच्छे से क्रियान्वयन हो, तो इन क्षेत्रों में किया गया खर्च मतदाताओं के एक बड़े वर्ग तक पहुंचेगा, जिसे आगामी चुनाव के लिहाज से महत्वहीन नहीं कहा जा सकता।’ सरकार की कमजोर माली हालत ने भारत की सोवरेन रेटिंग के सुधार में रुकावट डाली है।
सरकार पर जीडीपी के करीब 68 फीसदी के बराबर कर्ज का बोझ है। यदि राज्यों को शामिल किया जाए तो राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.5 फीसद है। फिच ने पिछले साल मई में कमजोर वित्तीय स्थिति का हवाला देकर भारत की सोवरेन रेटिंग बीबीबी (माइनस) पर स्थिर रखी थी।
यह स्थिर परिदृश्य के साथ निवेश योग्य निम्नतम श्रेणी है। रूक्माकर ने कहा, 'सरकार ने राजकोषषीय घाटे को जीडीपी के 3 फीसद तक सीमित रखने के लक्ष्य को 2020-21 तक के लिए टाल दिया है, जो मौजूदा सरकार के कार्यकाल से भी आगे है।'