मैट के झंझट से आजाद हुए FII
र्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार और शेयर बाजार में भारी अनिश्चितता के मद्देनजर विदेशी निवेशकों का भरोसा जगाने के लिए सरकार ने एक अहम फैसला कर लिया है। शेयर बाजार में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) की लटकी तलवार हटा ली गई है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार और शेयर बाजार में भारी अनिश्चितता के मद्देनजर विदेशी निवेशकों का भरोसा जगाने के लिए सरकार ने एक अहम फैसला कर लिया है। शेयर बाजार में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) की लटकी तलवार हटा ली गई है।
वित्त मंत्रालय ने इस बारे में बहुचर्चित एपी शाह समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है। समिति की सिफारिशें लागू होने के बाद एक अप्रैल, 2015 से पूर्व के मामलों में एफआइआइ पर मैट नहीं लगेगा।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार शाम इस अहम फैसले का एलान किया। केंद्र ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार भारत से अपना निवेश खींच रहे हैं। एफआइआइ ने अगस्त में ही भारतीय शेयर बाजार से 17,000 करोड़ रुपये का निवेश वापस लिया है।
एफआइआइ की बेरुखी का असर शेयर बाजार में दिख रहा है, जो पिछले हफ्ते सोमवार को 1600 से अधिक अंकों की ऐतिहासिक गिरावट के बाद मंगलवार को भी 587 अंक लुढ़का है। आर्थिक विकास दर भी चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सात प्रतिशत पर ठहर गई है।
वित्त मंत्री ने कहा कि विधि आयोग के अध्यक्ष एपी शाह की अध्यक्षता वाली समिति ने इस साल एक अप्रैल से पूर्व एफआइआइ के पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेंस) पर मैट के संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सरकार ने इस रिपोर्ट की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं।
अब इन सिफारिशों को लागू करने के लिए आयकर कानून की धारा 115 जेबी में संशोधन किया जाएगा। इसके लिए वित्त विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। इस संशोधन से पहले आयकर विभाग अपने सभी फील्ड कार्यालयों का सर्कुलर जारी कर एफआइआइ पर एक अप्रैल, 2015 से पहले के मामलों पर मैट के मामलों में कार्रवाई रोकने को कहेगा।
वित्त मंत्री ने इस साल अपने बजट भाषण में विदेशी संस्थागत निवेशकों को इस साल एक अप्रैल के बाद मैट नहीं लगाने की घोषणा की थी। हालांकि एफआइआइ इस तारीख से पहले के मामलों में भी मैट से छूट की मांग कर रहे थे। एफआइआइ ने पिछले साल भारतीय शेयर बाजार में 20 अरब डॉलर और बांडों में 28 अरब डॉलर का निवेश किया था। मैट की वजह से इनके निवेश पर अनिश्चितता का माहौल बन गया था।
भारत में 1980 के दशक से ही बिजली और ढांचागत क्षेत्र को छोड़ बाकी कंपनियों पर मैट लगाया जाता रहा है। वर्ष 2010 से पहले विदेशी कपंनियों ने मैट का भुगतान नहीं किया था। मॉरीसस की एक कंपनी कास्टलेटन ने 2010 में अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएआर) से पूछा कि क्या उसे मैट का भुगतान करना होगा। इस पर एएआर ने 2012 में फैसला दिया कि विदेशी कंपनियों पर भी मैट लागू होगा।
हालांकि एफआइआइ की दलील रही है कि उनका ऑफिस भारत में नहीं है, इसलिए उन पर मैट लागू नहीं होता। लेकिन एएआर के इस फैसले के बाद एफआइआइ को मैट की मांग के नोटिस भेजे जाने शुरू हो गए। तकरीबन 100 एफआइआइ से लगभग 36,000 करोड़ रुपये बतौर मैट मांगे गए। इसे देखते हुए कई एफआइआइ ने कहा था कि वे भारत में निवेश करने से पहले अब दो बार सोचेंगे।