कृषि कर्ज माफ करने से राज्यों में राजकोषीय असंतुलन की आशंका
सभी को आवास की जरूरत को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना पर जोर देने की आवश्यकता है
नई दिल्ली(जेएनएन)। उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे प्रदेशों में कृषि ऋण माफी की घोषणा से राजनीतिक दलों को कुछ फायदा जरूर हो जाए लेकिन इससे राज्यों का राजकोषीय संतुलन पटरी से उतर सकता है। यह कदम न सिर्फ महंगाई बढ़ाने में मदद करेगा बल्कि इससे सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। रिजर्व बैंक ने बुधवार को मौद्रिक नीति समीक्षा में महंगाई बढ़ाने में योगदान करने वाले कारकों का जिक्र करते हुए साफ कहा कि राज्यों में कृषि ऋण माफी की घोषणाओं पर अमल से राजकोषीय संतुलन पर असर पड़ सकता है। साथ ही इस कदम से सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।
आरबीआइ की यह टिप्पणी इसलिए अहम है क्योंकि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक ने किसानों के फसल ऋण माफ करने की घोषणा की है। हालांकि केंद्र ने साफ किया है कि कृषि ऋण की माफी से जो वित्तीय बोझ आएगा, उसे राज्य अपने खजाने से वहन करेंगे। हाल के वर्षो में राज्यों की राजकोषीय स्थिति थोड़ी खराब हुई है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006-11 के दौरान राज्यों का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 2.1 प्रतिशत था जो 2011-16 की अवधि में बढ़कर 2.5 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2015-16 में तो यह 3.6 प्रतिशत से भी अधिक हो गया था। इस तरह बीते तीन साल में राज्यों की राजकोषीय स्थिति तेजी से बिगड़ी है। ऐसे में राज्यों को कर्ज माफी के मोर्चे पर संभल के कदम रखने की जरूरत है।
आरबीआइ ने इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कहा है कि राज्यों की कर आय और बाजार से उधारी की सीमा को देखते हुए कृषि कर्ज माफी से पूंजीगत व्यय में कटौती करनी पड़ सकती है। इसका पूंजीगत व्यय के चक्र पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो कि पहले से ही सुस्त पड़ा हुआ है।
अलबत्ता आरबीआइ ने सामाजिक और ढांचागत क्षेत्र में व्यय बढ़ाने की जरूरत पर बल देते हुए ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के प्रभावी क्रियान्वयन की वकालत की है। आरबीआइ का कहना है कि सभी को आवास की जरूरत को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना पर जोर देने की आवश्यकता है। साथ ही राज्यों को परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया भी तेज करनी होगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक सबको आवास देने का लक्ष्य रखा है।