चीन के साथ व्यापार घाटा पाटना कठिन, पांच वर्षो में आयात 50 फीसद बढ़ा
भारत व चीन के बीच सीमा विवाद के साथ ही व्यापार घाटा भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे यानी भारत में बढ़ते आयात व घटते निर्यात से सरकार परेशान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले पांच-छह महीने में दो बार इस मुद्दे को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के समक्ष उठा चुके हैं। इसके बावजूद इस समस्या का कोई फौरी हल निकलता नहीं दिख रहा है। पिछले पांच वर्षो में चीन से आयात में 50 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि भारत से निर्यात कम हुआ है। ऐसे में चीन व अमेरिका के बीच शुरू हुए ‘ट्रेड वार’ से भी भारतीय निर्यातकों को खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।
भारत व चीन के बीच सीमा विवाद के साथ ही व्यापार घाटा भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। वर्ष 2017-18 में चीन के साथ व्यापार में भारत का घाटा 63 अरब डॉलर हो गया। यानी भारत ने चीन को जितना निर्यात किया, उसके मुकाबले उसका आयात 63 अरब डॉलर ज्यादा हो गया। वर्ष वर्ष 2013-14 में व्यापार घाटा 36.2 अरब डॉलर था। जबकि इस दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन स्थापित करने के लिए कई बार बैठकें हो चुकी है। हकीकत यह है कि इन पांच वर्षो में भारत से चीन को होने वाला निर्यात 14.8 अरब डॉलर से घटकर 13.3 अरब डॉलर रह गया है। हाल ही में चीन ने भारतीय गैर बासमती व फार्मास्यूटिकल्स आयात को बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इसका असर दिखना बाकी है।
निर्यातकों के शीर्ष संगठन फियो के पूर्व अध्यक्ष रफीक अहमद का कहना है कि जब तक हम उन उत्पादों के बाजार में प्रवेश नहीं करेंगे, जिनका चीन बड़े पैमाने पर आयात करता है, तब तक व्यापार घाटे को पाटना मुश्किल है। मसलन, चीन तकरीबन 450 अरब डॉलर की इलेक्टिकल मशीनरी और 97 अरब डॉलर के मेडिकल उपकरण, 125 अरब डॉलर के लौह अयस्क आयात करता है।
भारत इनके निर्यात में कहीं नहीं है। अहमद बताते हैं कि चीन के बाजार में भारतीय उत्पादों के बारे में काफी कम जानकारी है। इसके लिए सरकार को बड़े पैमाने पर मार्केटिंग अभियान चलाना होगा ताकि वहां के कारोबारियों व आम जनता में भारतीय उत्पादों के प्रति जागरूकता बढ़ सके। फियो के मौजूदा अध्यक्ष गणेश कुमार गुप्ता मानते हैं कि जब तक चीन की तरफ से भारतीय आयात को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा तब तक व्यापार घाटे की भरपाई मुश्किल है। चीन सरकार की तरफ से भारतीय फार्मा, समुद्री उत्पादों, ताजे फलों, आइटी व कृषि उत्पादों के लिए अपने बाजार पूरी तरह खोलने से हालात में सुधार होगा।
भारत पिछले कई वर्षो से चीन से अपने कृषि बाजार में भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता देने का आग्रह कर रहा है। लेकिन चीन का अब तक का रवैया बहुत उत्साहवर्धक नहीं है। भारतीय खाद्य उत्पादों की लागत ज्यादा होने की वजह से भी एक बड़ी अड़चन आती है। चीनी इसका एक बड़ा उदाहरण है।
चीन दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा आयातक है जबकि भारत एक प्रमुख उत्पादक है लेकिन चीन हमसे चीनी नहीं खरीदता। दोनो देशों के वाणिज्यिक मंत्रालयों के अधिकारियों की बैठकों में यह मुद्दा भी उठा लेकिन भारतीय चीनी का महंगा होना एक बड़ी अड़चन है। कुछ ऐसी ही समस्या सोयाबीन निर्यात में आ रही है। अभी चीन ने अमेरिका से सोयाबीन खरीदना बंद किया है। चीन सालाना 35 अरब डॉलर का सोयाबीन खरीदता है। लेकिन चीन को भारत से सोयाबीन खरीदने के बजाय कनाडा से खरीदना सस्ता पड़ रहा है।