रोजगार आंकड़ों का तंत्र विकसित करना सरकार के लिए अहम
जहां तक देश में रोजगार के आंकड़े एकत्र करने के तंत्र का सवाल है अभी केवल कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ही एकमात्र ऐसा तंत्र है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आम चुनाव के बाद केंद्र में आने वाली नई सरकार पर रोजगार का प्रामाणिक आंकड़ा एकत्र करने के लिए एक तंत्र विकसित करने की अहम जिम्मेदारी होगी। एनएसएसओ सर्वे के रूप में मौजूदा तंत्र नीति निर्माण के लिहाज से उपयोगी नहीं है क्योंकि इसके नतीजे एक साल के बाद मिलते हैं। अगर रोजगार संबंधी आंकड़े तुरंत मिलें तो सरकार को बेहतर नीतियां तैयार करने में मदद मिलेगी।
पिछले दिनों नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के वर्ष 2017-18 के रोजगार के आंकड़ों संबंधी एक सर्वे रिपोर्ट से देश का सियासी माहौल काफी गरमाया हुआ है। हालांकि नीति आयोग ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, इसके बावजूद विपक्ष इसे मुद्दा बनाए हुए है। भाजपा से राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर का मानना है कि यह सर्वे केवल एक खास अवधि की तस्वीर दिखा रहा है। नोटबंदी और जीएसटी की वजह से अनौपचारिक सेक्टर में जो परेशानियां उत्पन्न हुई थीं, सरकार उन सबका निराकरण वर्ष 2018 के बजट में कर चुकी है। इसलिए अब साल 2017-18 के आंकड़ों को उठाने का कोई मतलब नहीं है।
चंद्रशेखर के मुताबिक औपचारिक सेक्टर में रोजगार को लेकर कुछ दिक्कतें हैं। लेकिन उनका मानना है कि बीते पांच साल में पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकार ने करीब 11 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। इससे औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं। इसलिए कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष पुराने आंकड़ों को लेकर केवल राजनीति कर रहा है।
जहां तक देश में रोजगार के आंकड़े एकत्र करने के तंत्र का सवाल है, राजीव कहते हैं कि अभी केवल कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ही एकमात्र ऐसा तंत्र है। लेकिन यह काफी नहीं है। उन्होंने कहा कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी इसके लिए कोई तंत्र विकसित नहीं हो पाया, यह निराशाजनक है। लिहाजा अगली सरकार के समक्ष इसका तंत्र विकसित करना एक अहम काम होगा। जब तक रोजगार संबंधी आंकड़े तत्काल उपलब्ध नहीं होंगे विकासमूलक नीतियों का निर्धारण ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकेगा।