एनबीएफसी संकट के बावजूद आर्थिक तंत्र मजबूत: RBI
बैंक ने चेताया है कि अगर कोई बड़ी गैर-बैंकिंग कंपनी बिखरती है तो अर्थव्यवस्था पर उतना ही असर पड़ता है जितना उसी आकार के किसी बैंक के बिखरने से हो सकता है।
मुंबई, प्रेट्र। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने कहा है कि हाल के दिनों की कुछ बड़ी चुनौतियों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था मजबूत और स्थिर है। अपनी द्विवार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में बैंक ने कहा है कि चार वर्षो से कुछ ज्यादा समय तक बैंकों की फांस बने फंसे कर्ज (एनपीए) का बोझ घटकर 9.3 फीसद रह गया है। हालांकि बैंकिंग क्षेत्र के नियामक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर अतिरिक्त निगरानी रखने की जरूरत बताई है। बैंक ने चेताया है कि अगर कोई बड़ी गैर-बैंकिंग कंपनी बिखरती है, तो अर्थव्यवस्था पर उतना ही असर पड़ता है, जितना उसी आकार के किसी बैंक के बिखरने से हो सकता है।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में आरबीआइ के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सरकार और बैंक को मिलकर काम करने की जरूरत पर भी बल दिया है, ताकि आर्थिक विकास के रास्ते में आ रही चुनौतियों से मजबूती से निपटा जा सके। उन्होंने सरकारी बैंकों को भी हिदायत दी है कि वे निजी निवेश आकर्षित करने योग्य बनें और पूंजी के लिए सरकार पर निर्भरता कम करें।
रिपोर्ट में सरकार के लिए अच्छी बात यह बताई गई है कि इस वर्ष मार्च में समाप्त वित्त वर्ष के आखिर में बैंकों के एनपीए में कमी आई है। पिछले चार वर्षो से बैंकिंग सेक्टर को हलकान करने वाला एनपीए इस वर्ष मार्च के आखिर में घटकर 9.3 फीसद रह गया है, जो 11.2 फीसद पर था। आरबीआइ को उम्मीद है कि बैंकों का एनपीए चालू वित्त वर्ष के आखिर में घटकर नौ फीसद रह जाएगा। वहीं, अगले वर्ष मार्च के आखिर में सरकारी बैंकों का एनपीए भी घटकर 12 फीसद रह जाने की उम्मीद है, जो इस वर्ष मार्च की समाप्ति पर 12.6 फीसद रहा है।
आरबीआइ के मुताबिक बैंकिंग सेक्टर की सेहत में सुधार और तंत्र की मजबूती का एक संकेत यह है कि सेक्टर एनपीए के एवज में 60.6 फीसद तक प्रावधान करने में सफल रहा। पिछले वर्ष सितंबर के आखिर में सेक्टर एनपीए के एवज में 52.4 और मार्च के आखिर में 48.3 फीसद ही प्रावधान कर पाया था।
बैंकिंग नियामक का कहना है कि हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (एचएफसी) की हालत अच्छी नहीं रही है, और उन पर और ज्यादा नजर रखने की जरूरत है।
बैंक के विशेष अधिकारी रखेंगे MSME पर नजर
सरकार अब यह मानने लगी है कि देश की लघु, छोटी व मझोली औद्योगिक इकाइयों (एमएसएमई) की स्थिति अनुमान से ज्यादा खराब है। देश के औद्योगिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन इकाइयों की स्थिति का सही जायजा लेने के लिए सभी बैंकों से कहा गया है कि वे महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी की विशेष तौर पर नियुक्त करें। अधिकारी हर हफ्ते अपने इलाके के एमएसएमई की पूरी वित्तीय स्थिति, उन्हें मिलने वाले कर्ज, बकाया कर्ज की स्थिति समेत ऐसे सभी मामलों की जानकारी एकत्रित करेंगे। ये अधिकारी एमएसएमई कंपनियों के हालात की गहरी समीक्षा करने की स्थिति में होंगे, जिनके सुझावों पर आगे कदम उठाए जा सकेंगे।
वित्त मंत्रलय की तरफ से सभी बैंकों के प्रमुखों को कहा गया है कि वह एमएसएमई सेक्टर पर खास तौर पर नजर रखें और यह सुनिश्चित करें कि इस सेक्टर की कोई भी कंपनी कर्ज की कमी महसूस न करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष नवंबर में इस सेक्टर की स्थिति सुधारने को लेकर एक विशेष अभियान की शुरुआत की थी। इनकी फंड संबंधी जरूरतों को बेहतर करने के लिए 12 सूत्री एजेंडा लागू किया गया था। इसके तहत 59 मिनट में उन्हें एक करोड़ रुपये तक का कर्ज देने की भी व्यवस्था की गई थी। वैसे, एजेंडे के तहत पांच ऐसे मामले हैं जिस पर महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी को नजर रखने को कहा गया है। इनमें बैंक से कर्ज लेने वाले, फंसे कर्ज (एनपीए) के खाते वाले, बकाया कर्ज भुगतान के लिए ज्यादा वक्त दिए गए, कर्ज लेने वाले नए और अब तक सरकारी नीतियों का फायदा नहीं ले सकने वाले एमएसएमई कंपनियों का ब्योरा जुटाना शामिल हैं।
देश में पंजीकृत 6.5 करोड़ एमएसएमई हैं। ये तकरीबन 12 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। देश के कुल निर्यात में इनकी हिस्सेदारी 45 फीसद है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में इनका हिस्सा 25 फीसद है। नोटबंदी के बाद से यह सेक्टर दिक्कतों से गुजर रहा है। इनके प्रतिनिधि लगातार सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें फंड मिलने में दिक्कत हो रही है। इसके लिए आरबीआइ का नये सकरुलर को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।