चालू खाते का घाटा खतरनाक स्तर पर
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कच्चे तेल और सोने के आयात में तेज वृद्धि ने साल 2012-13 के चालू खाते के घाटे को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है। इस अवधि में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] के 4.
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कच्चे तेल और सोने के आयात में तेज वृद्धि ने साल 2012-13 के चालू खाते के घाटे को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है। इस अवधि में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] के 4.8 फीसद के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, दिसंबर 2012 को समाप्त तिमाही में यह 6.7 फीसद की ऊंचाई तक पहुंच गया था। इससे यह आशंका जताई जा रही थी कि पूरे वित्त वर्ष में घाटा पांच फीसद से ऊपर जा सकता है।
रिजर्व बैंक की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष के कुल आयात बिल में कच्चे तेल और सोने-चांदी की सबसे ज्यादा 45 फीसद हिस्सेदारी रही। इस दौरान 53.8 अरब डॉलर का सोना-चांदी आयात किया गया। वहीं, कच्चे तेल का आयात 169.4 अरब डॉलर का हुआ। इसी के चलते चालू खाते का घाटा जीडीपी के 4.8 फीसद [87.8 अरब डॉलर] के स्तर तक पहुंच गया। इससे पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में यह घाटा जीडीपी का 4.2 फीसद [78.2 अरब डॉलर] रहा था। विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी के अंतर को चालू खाते का घाटा कहा जाता है।
रिजर्व बैंक के मुताबिक चालू खाते का घाटा जीडीपी के 2.5 फीसद तक अर्थव्यवस्था के लिए सहूलियत वाला है। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान पेट्रोलियम आयात में 9.3 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, सोना आयात 4.8 फीसद घटा मगर डॉलर की मजबूती की वजह से घाटे में वृद्धि हुई है। सोना आयात पर अंकुश लगाने के जो कदम सरकार ने उठाए हैं उसके नतीजे के रूप में ही मात्रा में कमी आई है। इसके चलते बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही [जनवरी-मार्च] में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 3.6 फीसद तक आ गया।
आंकड़ों के मुताबिक बीते वित्त वर्ष में विदेश व्यापार का घाटा 195.7 अरब डॉलर रहा। मगर चालू वित्त वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल के आयात आंकड़े चालू खाते के घाटे को लेकर फिर से आशंकाएं पैदा कर रहे हैं। इस महीने सोने के आयात में तेज वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही रुपये की कीमत में तेज गिरावट ने भी आयात को महंगा किया है। एक डॉलर की कीमत 60 रुपये को पार कर चुकी है।
सरकार उठाए कदम
चालू खाते के बढ़ते घाटे पर इंडिया इंक ने गंभीर चिंता जताई है। इसमें कमी लाने के लिए उद्योग जगत ने सरकार से नीतिगत उपाय करने, निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी मुद्रा की पर्याप्त आवक के लिए कदम उठाने की मांग की है।