क्रूड की कीमतों में अप्रैल 2018 में हुआ 5.6% का इजाफा, 15% से ज्यादा टूट चुके OMCs शेयर्स
डीजल की कीमत 65.75 रुपये प्रति लीटर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की मजबूत होती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल पिछले 55 महीनों के उच्चतम स्तर (दिल्ली-74.50 रुपये प्रति लीटर) पर है, तो डीजल की कीमत 65.75 रुपये प्रति लीटर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है।
हालात की समीक्षा के लिए सोमवार को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सरकारी तेल कंपनियों के प्रमुखों के साथ बैठक की है। अप्रैल, 2018 में अभी तक क्रूड की कीमतों में 5.6 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत 0.5 फीसद व डीजल में 1.4 फीसद का ही इजाफा हुआ है। शेयर बाजार में पिछले एक माह में आइओसी, बीपीसीएल व एचपीसीएल के शेयरों के भाव में क्रमश: 7.9 फीसद, 12 फीसद व 15.7 फीसद की गिरावट को भी एक वजह माना जा रहा है।
राजस्व शुल्क घटाना आसान नहीं
वर्ष 2014 व 2015 में जब क्रूड तेजी से सस्ता हो रहा था तो केंद्र सरकार ने इन पर उत्पाद शुल्क में नौ बार इजाफा किया। इस वजह से घरेलू बाजार में पेट्रो उत्पादों की खुदरा कीमतों में कमी नहीं हो सकी। अब क्रूड महंगा हो रहा है तो सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती कर आम जनता को राहत दे सकती है। वर्ष 2016-17 में इन दोनों उत्पादों से 2,19,000 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क वसूला गया जो वर्ष 2014-15 में 99,000 करोड़ रुपये का था। सरकार अगर अभी इन दोनों पर उत्पाद शुल्क में एक रुपये प्रति लीटर की भी कटौती करती है तो इससे सालाना राजस्व में 13,000 करोड़ रुपये की कमी होगी। इस वजह से वित्त मंत्रालय ने साफ तौर पर कहा है कि राजस्व शुल्क घटाने से बजटीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।
सुस्त निर्यात से बढ़ी मुश्किल
मार्च, 2018 में निर्यात की वृद्धि दर 0.8 फीसद थी। निर्यात नहीं बढ़ने से विदेशी मुद्रा की आवक रफ्तार भी धीमी पड़ी हुई है, महंगे क्रूड पर ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ रहा है। रुपये की कीमत भी बीते कुछ दिनों से लगातार कमजोर हो रही है। इससे चालू खाता घाटा (विदेशी मुद्रा की आय व खर्च का अंतर) और महंगाई बढ़ने का खतरा है। कर्नाटक चुनाव के एकदम सर पर होने की वजह से सरकार पेट्रोल व डीजल के बढ़ते दाम से ज्यादा दुविधा में है। सरकार को असली चुनौती आर्थिक मोर्चे पर दिख रही है। जानकार मान रहे हैं कि निर्यात की सुस्त रफ्तार और महंगे क्रूड का तालमेल सरकार के राजकोषीय ताने-बाने को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह एक वजह है कि वित्त मंत्रालय अभी पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने के पक्ष में नहीं है।’