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कोरोना की दूसरी लहर का इकोनॉमी पर पिछले साल जैसा बुरा असर नहीं, RBI कर सकता है पिछली बार जैसे Moratorium का ऐलानः फिच

वैक्सीन की रफ्तार सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था की रिकवरी से जुड़ी हुई है। फिच रेटिग एजेंसी का कहना है कि इस बार दूसरी लहर का भारतीय इकोनोमी पर उतना असर होता नहीं दिख रहा है जितना पिछले वर्ष की महामारी से हुआ था।

By Ankit KumarEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 10:38 AM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 10:38 AM (IST)
कोरोना की दूसरी लहर का इकोनॉमी पर पिछले साल जैसा बुरा असर नहीं, RBI कर सकता है पिछली बार जैसे Moratorium का ऐलानः फिच
आरबीआइ ने हाल ही में जो कदम उठाये हैं उसका भी सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। (PC: ANI)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। प्रमुख रेटिग एजेंसी फिच ने भारत में कोविड--19 की रोकथाम के लिए जारी वैक्सीनेशन अभियान की रफ्तार को बेहद सुस्त करार देते हुए इस पर चिंता जताई है। फिच रेटिग एजेंसी ने कहा है कि सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 05 मई, 2021 तक सिर्फ 9.4 फीसद आबादी को ही वैक्सीन (कम से कम एक) दी जा सकी है। इस धीमी रफ्तार का साफ मतलब है कि अगर मौजूदा लहर सुस्त पड़ भी जाती है तो भारत कोरोना के भावी खतरे के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। फिच ने कोविड--19 की दूसरी लहर से भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी के प्रभावित होने की बात कही है, लेकिन यह भी मानता है कि पिछले साल के दौरान अर्थव्यवस्था को जो नुकसान उठाना पड़ा था वैसे इस साल नहीं होगा।

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फिच ने वैक्सीन देने का आंकड़ा 5 मई तक का लिया है। हालांकि, इसके बाद वैक्सीन देने की रफ्तार में थोड़ी वृद्धि हुई है। तब रोजाना देश में 15--16 लाख वैक्सीन लगाई जा रही थीं लेकिन पिछले चार-पांच दिनों से यह रफ्तार 20-22 लाख के बीच स्थिर है। निश्चित तौर पर यह वृद्धि भी जरूरत के हिसाब से कम है। भारत में सबसे ज्यादा 05 अप्रैल, 2021 को 45 लाख वैक्सीन डोज दी गई थीं। उसके बाद वैक्सीन की देशव्यापी कमी की वजह से यह रफ्तार बनी नहीं रह सकी। 

विशेषज्ञों का मानना है कि चार-पांच महीनों में देश की बड़ी आबादी को वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए रोजाना 70 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाने की जरूरत है। ऐसा करके कोविड की तीसरी लहर से बचने के खिलाफ एक कवच तैयार किया जा सकता है।

वैक्सीन की रफ्तार सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था की रिकवरी से जुड़ी हुई है। फिच रेटिग एजेंसी का कहना है कि इस बार दूसरी लहर का भारतीय इकोनोमी पर उतना असर होता नहीं दिख रहा है जितना पिछले वर्ष की महामारी से हुआ था। 

आरबीआइ ने हाल ही में जो कदम उठाये हैं उसका भी सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। हालांकि जिस रफ्तार से स्थिति बेहतर हो रही थी वह अब नहीं होगी। अप्रैल, 2021 के मुकाबले मई, 2021 में स्थिति खराब होगी। फिच को यह भी उम्मीद है कि आरबीआइ की तरफ से पिछले साल जैसा मोरेटोरियम की घोषणा फिर की जा सकती है।

रेटिंग एजेंसी के मुताबिक इसके बावजूद दूसरी लहर का आम आदमी के जीवन पर ज्यादा असर पड़ सकता है। इसके पीछे एक वजह स्वास्थ्य क्षेत्र पर बढ़ता खर्च है। इन सब टिप्पणियों के अंत में फिच ने यह भी कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी की रफ्तार धीमी हो सकती है लेकिन इन हालात से भारतीय इकोनोमी पटरी से नहीं उतर सकती।


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