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कैग के ईधन से धधकता रहा कोयला क्षेत्र

नई दिल्ली। देश के राजनीतिक हल्कों में इस साल कोयला खदानों से उठी विवादों की आंच पूरे साल धधकती रही। इस विवाद को कोयला खदान आवंटन पर भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट से ईधन मिला। रिपोर्ट में कैग ने बिना नीलामी के खदानों के आवंटन से 1.

By Edited By: Published: Thu, 27 Dec 2012 07:57 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

नई दिल्ली। देश के राजनीतिक हल्कों में इस साल कोयला खदानों से उठी विवादों की आंच पूरे साल धधकती रही। इस विवाद को कोयला खदान आवंटन पर भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट से ईधन मिला। रिपोर्ट में कैग ने बिना नीलामी के खदानों के आवंटन से 1.86 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया था। इनमें से ज्यादातर आवंटन तब हुए थे जब कोयला मंत्रालय का जिम्मा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था। इससे विपक्षी दलों को सरकार पर चौतरफा हमला करने का मौका मिल गया।

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कोल ब्लॉक आवंटन पर इस बवाल की शुरुआत कैग की मसौदा रिपोर्ट लीक होने से हुई। इस मसौदे में करीब 100 कंपनियों को बिना नीलामी के खदान आवंटन से सरकार को 10.6 लाख करोड़ रुपये की राजस्व हानि का अनुमान जताया गया था। हालांकि, कैग की अंतिम रिपोर्ट में कहा गया कि इस आवंटन से निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। इसमें कुछ ऐसी कंपनियां भी शामिल थीं जिनका कोल ब्लॉकों से कोई लेनादेना नहीं था मगर उन्हें भी इसका आवंटन कर दिया गया। कोल ब्लॉक आवंटन में धांधली पर उठे विवाद से संसद का मानसून सत्र लगभग बिना कामकाज के खत्म हो गया। वर्ष 2009 के आम चुनाव के बाद से यह सरकार के लिए सबसे खराब सत्र रहा। कैग के इस अनुमान से विपक्षी दलों को सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधने का मौका मिल गया। वर्ष 2005 से 2009 के बीच कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के ही पास था।

मीडिया का ध्यान मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआइ और सिविल सोसायटी के आंदोलन पर केंद्रित होने के कारण कोयले पर हाइवोल्टेज ड्रामा कुछ ठंडा हुआ लेकिन सरकार ने दवाब के सामने झुकते हुए चरणबद्ध तरीके से 24 खदानों के लाइसेंस रद करने का फैसला लिया। साथ ही कई अन्य खदानों पर जुर्माने के तौर पर उनकी बैंक गारंटी से राशि काटी गई। इस कार्रवाई की सिफारिश अंतरमंत्रालयी समिति की ओर से की गई थी। खुद को बैकफुट पर महसूस कर रही सरकार ने यह सभी सिफारिशें मंजूर कर लीं।

इसके अलावा आवंटन के कुछ मामलों में सीबीआइ ने जांच शुरू की। जेएसपीएल, आर्सेलरमित्तल, जीवीके पावर, जेएसडब्ल्यू स्टील, भूषण स्टील जैसी कई बड़ी कंपनियों को आवंटित खदानें या तो रद हुई या जुर्माने के तौर पर उनकी बैंक गारंटी में से रकम काटी गई। कांग्रेस सांसद और उद्योगपति नवीन जिंदल की कंपनी जिंदल स्टील एंड पावर भी विवादों में रही। विवादों के घेरे में पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय, प्रेमचंद गुप्ता और विजय दर्डा भी आए।

कोयले से जुड़ा एक और मसला वर्ष 2012 में सुर्खियां बटोरता रहा। यह मामला कोल इंडिया और बिजली कंपनियों के बीच ईधन आपूर्ति समझौते [एफएसए] पर छिड़े विवाद को लेकर था। अब तक 87 में से 33 बिजली संयंत्रों ने कोल इंडिया से एफएसए किया है। इसके अलावा कोल इंडिया को आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए दिए गए राष्ट्रपति के निर्देश का कंपनी के निवेशकों ने विरोध किया। कंपनी में मामूली हिस्सेदार ब्रिटेन की चिल्ड्रेन इन्वेस्टमेंट फंड [टीसीआइ] का कहना था कि सरकार कंपनी के कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है।


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