भारत और यूरोप के लिए FTA पर समझौते की राह निकालना बड़ी चुनौती
भारत यूरोपीय संघ के साथ एफटीए के मुद्दे पर अपने दरवाजे पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहता है
नई दिल्ली (जेएनएन)। इस शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय संघ के प्रेसीडेंट जीन क्लाउड जंकर व यूरोपीय परिषद के प्रेसीडेंट डी. एफ. टस्क की अगुवाई में जब दोनों पक्ष द्विपक्षीय वार्ता के लिए आमने-सामने होंगे तब उनके बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की राह निकालना की सबसे बड़ी चुनौती होगी। भारत और यूरोपीय संघ के बीच यह 14वां सम्मेलन होगा। लेकिन इस बार आर्थिक मुद्दे ही ज्यादा हावी रहेंगे।
जानकारों के मुताबिक भारत और यूरोपीय संघ दोनों एक दूसरे के बाजार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहते हैं और इस बार की वार्ता के केंद्र में यही रहेगा। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक एफटीए निश्चित तौर पर एक ऐसा मुद्दा है जिस पर यूरोपीय संघ सबसे ज्यादा जोर दे रहा है, लेकिन भारत अभी भी सोच विचार के दौर से गुजर रहा है। खास तौर पर यूरोपीय संघ के कई देश जिस तरह सूचना प्रौद्योगिकी बाजार में नई तरह की बंदिशें लगा रहे हैं, उससे भारत काफी सतर्क हो गया है।
भारत अपने शराब बाजार को यूरोपीय संघ की कंपनियों के लिए खोलने को लेकर भी बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। यूरोपीय संघ डाटा सिक्योरिटी और कृषि व डेयरी उत्पादों की भारतीय बाजार में पहुंच आसान बनाने की मांग को लेकर जो शर्ते डालता रहा है उससे भी भारत को कई आपत्तियां हैं। तमाम आपत्तियों के बावजूद भारत यूरोपीय संघ के साथ एफटीए के मुद्दे पर अपने दरवाजे पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहता है। पिछले दिनों यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के साथ इस बारे में जब पूर्व वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण की बात हुई थी तो यह प्रस्ताव आया था कि आगे की राह निकालने के लिए समिति गठित की जाए।
शुक्रवार को पीएम मोदी के साथ उच्चस्तरीय वार्ता में हो सकता है कि दोनों पक्षों के बीच इस पर सहमति बन जाए। सनद रहे कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीए के मुद्दे पर वर्ष 2007 में बातचीत शुरू हुई थी लेकिन वर्ष 2013 में इसे रोक दिया गया था। हाल ही में यूरोपीय संघ ने कहा है कि वह भारत के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को नया आयाम देने की कोशिश करेगा और इस पर श्वेत पत्र जारी करने की भी तैयारी हो रही है।