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निवेश की पुरानी सोच से बुढ़ापा संवरता नहीं, और मुश्किल में पड़ता है

भारत में बचत करने वालों निवेशकों और निवेश सलाहकारों के दिमाग में यह बात जड़ जमा चुकी है कि रिटायरमेंट के लिए की गई बचत को ऐसी जगह निवेश करना चाहिए

By NiteshEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 12:27 PM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 12:27 PM (IST)
निवेश की पुरानी सोच से बुढ़ापा संवरता नहीं, और मुश्किल में पड़ता है
निवेश की पुरानी सोच से बुढ़ापा संवरता नहीं, और मुश्किल में पड़ता है

दुनिया के सफलतम निवेशकों में एक वारेन बफेट का कहना है कि जो लोग ‘जोखिम मुक्त रिटर्न’ चाहते हैं, ज्यादा संभावना इस बात की है कि वे रिटर्न मुक्त जोखिम हासिल करेंगे। हालांकि वारेन बफेट ने यह बात अमेरिका के बांड निवेशकों के लिए कही थी। लेकिन यह बात भारत में रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे या रिटायर हो चुके लोगों के लिए ज्यादा सही है। भारत में बचत करने वालों, निवेशकों और निवेश सलाहकारों के दिमाग में यह बात जड़ जमा चुकी है कि रिटायरमेंट के लिए की गई बचत को ऐसी जगह निवेश करना चाहिए, जहां जोखिम का स्तर कम से कम हो। एक अमूर्त विचार के तौर पर यह बात सही है और शायद ही कोई इस बात से असहमत होगा। लेकिन व्यवहार में शून्य जोखिम या नहीं के बराबर जोखिम को लेकर निवेशकों का लगाव उनको बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसका कारण यह है कि हर कोई सबसे बड़े खतरे को नजरअंदाज करता है। यह खतरा है महंगाई का। बात थोड़ी कड़वी है, लेकिन मुङो यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अगर आप रिटायरमेंट के लिए बचत करते हुए महंगाई के प्रभाव को नजरअंदाज करते हैं तो रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी में गरीबी के ऐसे जाल में फंसने जा रहे हैं, जिसे काट पाना आपके लिए वाकई मुश्किल हो सकता है।

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रिटायरमेंट के लिए निवेश को लेकर आम भारतीय की एक खास तरह की सोच है। यह सोच सिखाती है कि रिटायरमेंट के लिए की गई बचत का तरह से निवेश किया जाए कि मूल रकम सुरक्षित रहे या इसे जरा भी नुकसान न हो। वे यह भूल जाते हैं कि महंगाई उनकी रकम की वास्तविक कीमत को लगातार कम कर रही है। महंगाई दर सालाना पांच से लेकर 12 प्रतिशत तक कुछ भी हो सकती है। कुछ लोग जरूर किस्मत वाले हैं जिनको प्रॉपर्टी जैसी चीजों से रिटर्न मिलता है और वे महंगाई के असर का बेहतर तरीके से सामना कर पाते हैं। जैसे, अगर किसी के पास प्रॉपर्टी है तो उसे रेंट मिल रहा है। लेकिन ज्यादातर लोग पुरानी सोच के साथ जिंदगीभर महंगाई के असर के खिलाफ जंग लड़ेंगे या लड़ रहे हैं। दुखद स्थिति यह है कि इस जंग में उनकी हार तय है।

निवेश में जोखिम की बात बाजार में कम अवधि के उतार-चढ़ाव को लेकर कही जाती है। इक्विटी में कम अवधि में उतार-चढ़ाव का दौर आता है, लेकिन इस जोखिम का सामना करने पर बेहतर रिटर्न मुआवजे के तौर पर मिलता है। लंबी अवधि के निवेश में कम अवधि के उतार-चढ़ाव को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। आप बीते एक दशक का उदाहरण ले लीजिए। अगर किसी ने इस अवधि में फिक्स्ड इनकम ऑप्शन में निवेश किया होता तो उसे आठ प्रतिशत से थोड़ा अधिक रिटर्न मिला होता। अगर किसी ने 10,000 रुपये महीना 10 साल तक फिक्स्ड इनकम ऑप्शन में निवेश किया होता तो उसे 18-19 लाख रुपये मिलते। वहीं, अगर उसने इतनी ही रकम हर महीने 10 साल तक एक औसत इक्विटी फंड में निवेश किया होता, तो उसे 25 लाख रुपये मिल जाते। यानी उसने निवेश पर सालाना 14 फीसदी रिटर्न हासिल किया होता। अगर आप निवेश पर मिलने वाले रिटर्न के अंतर को तीन दशक तक ले जाकर हिसाब लगाएं तो पता चलेगा कि इक्विटी में निवेश करने वाले को फिक्स्ड इनकम ऑप्शन में निवेश करने वाले की तुलना में 2.5 से 3 गुना तक ज्यादा रिटर्न मिला होता।

इसे एक बार और पढ़िए। रिटर्न में जो अंतर दिख रहा है वही अंतर यह तय करता है कि बचत करने वाला रिटायरमेंट के बाद पैसों के लिहाज से सुकून की जिंदगी बिताता है या अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है। काम की बात यह है कि रिटायरमेंट के लिए की जाने वाली बचत लंबी अवधि का लक्ष्य है। इसलिए आपको रिटायरमेंट के लिए की गई बचत को भी लंबी अवधि के लिए किए जाने वाले निवेश की तरह ही लेना होगा। इसके लिए आपको कुछ अलग करने की जरूरत नहीं है।

आमतौर पर लोग रिटायरमेंट के लिए 20 से 30 साल तक बचत और निवेश करते हैं। यानी यह काफी लंबा समय होता है। लोग रिटायरमेंट की डेट तक निवेश करने का लक्ष्य बना कर चलते हैं। हो सकता है कि आपकी जिंदगी के लिहाज से रिटायरमेंट एक बड़ी घटना हो लेकिन बचत और निवेश के लिहाज से यह एक घटना नहीं है बल्कि रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी की शुरुआत है। 55 साल की उम्र में आपको ऐसा लग सकता है अब मेरा रिटायरमेंट एक दशक ही दूर है ऐसे में मेरा रिटायरमेंट कॉर्पस ऐसे निवेश में होना चाहिए जहां जोखिम न हो। लेकिन वास्तव में इसका कोई मतलब नहीं है।

आप इस निवेश से होने वाली आय का इस्तेमाल 65 साल की उम्र में, 75 साल की उम्र में और 85 साल की उम्र में और हो सकता है 95 साल की उम्र में भी कर रहे होंगे। रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी बहुत लंबी भी हो सकती है। यानी 60 साल की उम्र में रिटायर होने के बाद आप अगले 30 या 35 साल तक भी जी सकते हैं। यह लगभग उतना ही लंबा समय होगा जितना समय आपने काम करते हुए बिताया है। इस अवधि में कीमतें भी पांच से सात गुना तक या इससे भी अधिक बढ़ जाएंगी। यही नहीं, आपको बढ़ते हुए मेडिकल बिल का भी सामना करना पड़ेगा। इलाज की लागत भी तेजी से बढ़ रही है। तो अगर आप रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आराम से जीना चाहते हैं तो आपको इन बातों पर गहराई से विचार करना होगा। आपको रिटायरमेंट सेविंग्स को लेकर चली आ रही पुरानी सोच और तौर तरीको से खुद को अलग करना होगा।

मैं जब भी रिटायरमेंट सेविंग के बारे में लिखता या बोलता हूं तो लोगों की प्रतिक्रिया देख कर हैरान रह जाता हूं। ज्यादातर लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि रिटायरमेंट के बाद वे अपनी जरूरतें कैसे पूरी करेंगे। लेकिन इस चिंता के निदान के लिए लोग निवेश के उन पुराने तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जो मौजूदा दौर की जरूरतें पूरी करने में सक्षम नहीं हैं। रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी के लिए निवेश करने को इच्छुक निवेशक अक्सर न्यूनतम जोखिम वाली योजनाएं चुनते हैं, जिनमें निश्चित रिटर्न हो। लेकिन गिरती ब्याज दरों के बीच उन्हें जितना रिटर्न मिल सकता है, उससे यह समस्या कम नहीं होने वाली है बल्कि और बढ़ने वाली है।

धीरेंद्र कुमार, सीईओ, वैल्यू रिसर्च 


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