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कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार पंजाब और हरियाणा भी ऑनलाइन खाद्यान्न खरीद पर हुए राजी

दरअसल सरकारी खरीद में शिरकत करने वाले आढ़ती ऑनलाइन खरीद पर तो सहमत थे लेकिन किसानों के भुगतान को सीधे उनके बैंक खातों में भेजने में आनाकानी कर रहे थे।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 09:00 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 09:00 AM (IST)
कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार पंजाब और हरियाणा भी ऑनलाइन खाद्यान्न खरीद पर हुए राजी

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। देश की खाद्य सुरक्षा का दायित्व संभालने वाले राज्य पंजाब और हरियाणा भी कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार ऑन लाइन खरीद पर राजी हो गये हैं। चालू खरीफ सीजन से इन दोनों राज्यों में धान और मोटे अनाज की सरकारी खरीद ऑनलाइन शुरू हो जाएगी। इन राज्यों में सरकारी खरीद पर आढ़तियों का दबदबा कायम था, उनके दबाव में ही ऑनलाइन खरीद और किसानों के भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में नहीं हो पा रहा था।

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केंद्र व राज्य सरकार के साथ आढ़ती प्रतिनिधियों के बीच हुई लंबी जद्दोजहद के बाद मसला सुलझ गया है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस डिजिटल प्रक्रिया से अनाज की सरकारी खरीद में जहां पारदर्शिता आयेगी वहीं किसानों को सूदखोरों से बचाने में मदद मिलेगी। दरअसल, सरकारी खरीद में शिरकत करने वाले आढ़ती ऑनलाइन खरीद पर तो सहमत थे, लेकिन किसानों के भुगतान को सीधे उनके बैंक खातों में भेजने में आनाकानी कर रहे थे।

खाद्य मंत्रालय के मुताबिक मंगलवार से होने वाली सरकारी खरीद में पंजाब ने छत्तीसगढ़ की खरीद प्रक्रिया को अपनाने का फैसला किया है। जबकि हरियाणा ने अपनी अलग डिजिटल प्रणाली तैयार कर ली है, जिस पर वह खरीद करेगा। देश के दूसरे हिस्से में अनाज की खरीद ऑनलाइन होने लगी है, जिसमें उत्तर प्रदेश अव्वल है।

दरअसल, पंजाब और हरियाणा सेंट्रल पूल के लिए अनाज खरीदते हैं। खाद्य सुरक्षा का दायित्व दोनों राज्य बहुत पहले से ही निभाते आ रहे हैं। सरकारी खरीद का बड़ा हिस्सा इन्हीं दोनों राज्यों से आता है। खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इन राज्यों में परंपरागत रूप से सूदखोर सक्रिय हैं, जो आज भी बदस्तूर जारी है।

खरीद करने वाले आढ़ती किसानों के अनाज मूल्य का दो -तिहाई हिस्सा तो चेक से भुगतान करते थे, लेकिन एक तिहाई के भुगतान का कोई पुष्ट ब्योरा नहीं होता था। भुगतान की पर्ची और रजिस्टर पर किसानों के हस्ताक्षर तक नहीं होते रहे हैं। बातचीत के दौरान बताया गया कि किसान अपनी जरूरतों के हिसाब से फसल आने से पहले ही आढ़ती से कर्ज लेता रहा है। इसके लिए उसे नाजायज तौर पर भारी दर पर ब्याज (30 से 35 फीसद तक) चुकाना पड़ता है। लेकिन किसानों की ओर से इसके लिए कभी विरोध नहीं जताया गया। व्यापारी इसे सामाजिक समरसता की आड़ में चलाते आ रहे थे।

केंद्र के सहयोग से राज्य सरकारें खेतिहरों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) मुहैया कराने के लिए भी अभियान चलाएंगी। किसानों को संस्थागत बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की भी योजना है, ताकि उन्हें नकदी के लिए सूदखोरों का सहयोग न लेना पड़े।


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