स्वीकृत विदेशी कर्ज न उठाने पर भरना पड़ा 553 करोड़ कमिटमेंट चार्ज
बीते पांच साल में कमिटमेंट चार्ज का आंकड़ा 553 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। सरकारी बाबू विदेश से वित्तीय सहायता व कर्ज लेने के लिए अक्सर उत्साहित रहते हैं लेकिन उधार ली गई धनराशि के समय पर इस्तेमाल करने में वैसा उत्साह नहीं दिखता है। विदेशी कर्ज की राशि का समय पर इस्तेमाल न होने के कारण देश को कमिटमेंट चार्ज के रूप में भारी भरकम कीमत चुकानी पड़ रही है। हाल यह है कि देश को हर साल औसतन 100 करोड़ रुपये से अधिक कमिटमेंट चार्ज के रूप में चुकाने पड़ रहे हैं। बीते पांच साल में कमिटमेंट चार्ज का आंकड़ा 553 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन कानून 2003 के क्रियान्वयन का ऑडिट किया है जिसमें यह पता चला है। कैग की यह रिपोर्ट हाल में संसद में पेश की गई। असल में सरकार का कोई विभाग जब विदेश से कर्ज लेता है लेकिन समय पर उसे निकालकर इस्तेमाल नहीं कर पाता है तो कमिटमेंट चार्ज देना पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कर्ज देते समय यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि वह राशि समय पर खर्च हो और विकास कार्य पूरे किए जाएं। इसी इरादे से वे विदेशी लोन में कमिटमेंट चार्ज का प्रावधान रखती हैं।
कैग की यह रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2012-13 से 2016-17 के बीच सरकार को 553.22 करोड़ रुपये कमिटमेंट चार्ज के रूप में देने पड़े। इसका मतलब यह है कि सरकार के स्तर पर यह लोन लेने से पहले समुचित योजना नहीं बनायी गयी। कितना कर्ज लेने की जरूरत है और कितना कर्ज लेना चाहिए, इस बारे में अगर पहले से ही सुनियोजित योजना रहती तो कमिटमेंट चार्ज नहीं देना पड़ता।
रिपार्ट के मुताबिक कैग ने ऑडिट के दौरान वित्त मंत्रलय का ध्यान कमिटमेंट चार्ज के बोझ के बारे में दिलाया। हालांकि मंत्रलय ने इस संबंध में जो जवाब दिया, उससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि हाल के वर्षो में कमिटमेंट चार्ज की यह राशि क्यों बढ़ी है। मंत्रलय ने कमिटमेंट चार्ज के रूप में हो रहे इस भारी भरकम खर्च को घटाने के लिए कोई सुझाव भी नहीं दिया है।