कर्ज नीति पर उलझन
रिजर्व बैंक और सरकार के बीच मंदी के इलाज को लेकर सैद्धांतिक मतभेद ने शेयर बाजारों को अनिश्चिचितता में धकेल दिया है। ताजा मौद्रिक नीति ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया कि रिजर्व बैंक महंगाई के डर से बाहर नहीं आया है।
By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
रिजर्व बैंक और सरकार के बीच मंदी के इलाज को लेकर सैद्धांतिक मतभेद ने शेयर बाजारों को अनिश्चितता में धकेल दिया है। ताजा मौद्रिक नीति ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया कि रिजर्व बैंक महंगाई के डर से बाहर नहीं आया है। ग्रोथ की वापसी के लिए उसे सरकार के नुस्खे में दम नहीं दिख रहा है। सामान्य मानसून, सोने की कीमत में गिरावट, दुनिया के बाजारों में सुधार से रिजर्व बैंक बहुत प्रभावित नहीं है। उसे देशी अर्थव्यवस्था की ढांचागत दिक्कतें ज्यादा परेशान कर रही हैं। ऐसी स्थिति शेयर बाजार के निवेशकों के लिए बेहद उलझन भरी होती है।
अब एक निवेशक के चश्मे से इस पूरी नीति को देखने की कोशिश करते हैं। जनवरी, 2013 और अप्रैल, 2013 के बीच रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने तीन बार मुख्य ब्याज दरों में कटौती की है। इस कटौती को विकास दर को सहारा देने के लिए जरूरी बताया गया। लेकिन 0.75 फीसद की कटौती के बाद भी आम जन के लिए कर्ज की दर जस की तस है। बैंकों ने अपने हाथ खड़े कर दिए। बढ़ते एनपीए (फंसे कर्ज) और दुनिया भर के बैंकों की जमीन छूती ब्याज दरों से मुकाबला करते भारतीय बैंकों ने तरलता बढ़ने (सीआरआर में कटौती) और फंड की लागत (रेपो दर) घटने के बावजूद भी प्राथमिकता अपनी बैलेंस शीट को दी। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) ने तो कर्ज की दर में कमी की संभावना को सिरे से नकार दिया। दूसरी ओर, आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव ने साफ किया कि परिस्थितियां प्रतिकूल हुईं तो ब्याज दरें बढ़ानी भी पड़ सकती हैं। तो छह फीसद महंगाई और 5.7 फीसद की विकास दर वाली अर्थव्यवस्था में आप एक निवेशक के तौर पर क्या करेंगे, यह एक बड़ा सवाल है। इन तथ्यों की रोशनी में बाजार में संभल कर चलना जरूरी है। रिजर्व बैंक की सालाना मौद्रिक नीति वित्तीय क्षेत्र और ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले सेक्टर्स का आइना होती है। इनमें बैंकिंग, ऑटोमोबाइल और अचल संपत्ति प्रमुख हैं। मौद्रिक नीति के बाद इन क्षेत्रों का हाल कुछ इस तरह रहने वाला है।
बैंकिंग: आरबीआइ द्वारा ब्याज दरों में चौथाई फीसद की कटौती बाजार की उम्मीदों के अनुरूप ही रही, लेकिन भविष्य में कटौती की संभावना न होने की घोषणा ने बाजार को काफी निराश किया। मुख्य बैंकिग शेयर सबसे ज्यादा प्रभावित रहे और बैंक निफ्टी 2.5 फीसद तक टूटा। ज्यादातर जानकार आगे भी बैंकिग शेयरों में गिरावट की आशंका जता रहे हैं। बैंको ने ब्याज दरों में फौरी तौर पर किसी भी तरह की कटौती से इंकार किया है, क्योंकि उनके डिपॉजिट बढ़ नहीं रहे। इसलिए वे जमा पर ब्याज दरें घटा नहीं सकते। इस वजह से बैंक जमा की ब्याज दरों और कर्ज पर ब्याज दरों (नेट इंटरेस्ट मार्जिन) के अंतर को कम नहीं कर सकते। इसके अलावा आरबीआइ ने बैंकों को रीयल एस्टेट और कुछ दूसरे क्षेत्रों में कर्ज देने की स्थिति में
प्रॉविजनिंग बढ़ाने का निर्देश दिया है, जिससे उनके मार्जिन और भी दबाव में रहेंगे। इस माहौल में सिर्फ बड़े बैंक ही अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रख सकते हैं। किसी भी अच्छी गिरावट के बाद एचडीएफसी बैंक, आइसीआइसीआइ और एक्सिस बैंक में खरीददारी की जा सकती है। छोटे निजी बैंकों में इंडस इंड और फेडरल बैंक ठीक हैं। यह भी ध्यान देने की बात है कि अर्थव्यवस्था में किसी भी तरह की रिकवरी का फायदा सबसे पहले बैंकों को ही मिलता है। बैंक निफ्टी ने एक माह में 9.3 और एक साल में 22.4 फीसद का रिटर्न दिया है। ऑटोमोबाइल: ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले दूसरे क्षेत्र ऑटो में बिक्री पर दबाव काफी पहले से बना हुआ है। इस मौद्रिक नीति में ऐसा कुछ भी नहीं है जो ऑटो सेक्टर को राहत पहुंचा सके। बीएसई का ऑटो इंडेक्स मारुति के बेहतर प्रदर्शन की वजह से एक माह में 11 फीसद बढ़ा है, लेकिन एक साल का रिटर्न केवल 5 फीसद ही है। मारुति और टाटा डीवीआर ही कुछ उम्मीद बंधाते हैं। रीयल एस्टेट: इस क्षेत्र से अभी बचने की जरूरत है। कंपनियां पैसे जुटाने की हर संभव कोशिश कर रही हैं, लेकिन मकानों की बिक्री की हालत जस की जस है। चुनावी माहौल में इन कंपनियों की हालत और भी खस्ता हो जाती है। इंफ्रा और सीमेंट स्टॉक्स के लिए भी यही रणनीति अपनाएं। यहां हैं संभावनाएं: ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले शेयरों से इतर एनर्जी क्षेत्र में कुछ गतिविधि दिख रही है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का मतलब है सब्सिडी में कमी जो तेल मार्केटिंग कंपनियों जैसे एचपीसीएल, बीपीसीएल और आइओसी की मदद करती हैं। दूसरे बड़े खिलाड़ी जैसे रिलायंस, ओएनजीसी और केयर्न पर भी निगाह रखी जा सकती है। फार्मा और एफएमसीजी में काफी तेजी आ चुकी है, फिर भी इन दो सेक्टर्स के अच्छे शेयरों में खरीद की जा सकती है। रुपये में गिरावट पर बड़ी आइटी कंपनियों के शेयर खरीदे जा सकते हैं। मौद्रिक नीति और आप: -आपकी ईएमआइ का बोझ कम नहीं होने वाला, क्योंकि बैंक ब्याज दरें कम करने से कतरा रहे हैं। -आरबीआइ ने बैंकों से रिटेल लोन में पारदर्शिता बरतने को कहा है, जो आपके लिए फायदे वाली बात है। -बैंकों के लिए केवाईसी नियम सख्त करने, मनी लांड्रिंग की कोशिश रोकने, दूसरे वित्तीय उत्पाद की बिक्री को नियमों के दायरे मे लाने जैसे कदम काफी अहम हैं। पॉजिटिव कारक: -मानसून सामान्य रहने की संभावना -सोने और कच्चे तेल का लुढ़कना -महंगाई दर में कमी -ग्लोबल बाजारों में मजबूती निगेटिव कारक: -बढ़ता चालू खाते का घाटा -ऊंचा वित्तीय घाटा -गवर्नेस को लेकर मुश्किलें कहां रखें नजर: -बाजार में उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहेगा। किसी भी तेजी का इस्तेमाल मुनाफावसूली के लिए करें और गिरावट पर उचित कीमत पर अच्छे शेयर खरीदें। -बाजार अब एफआइआइ निवेश और मानसून पर फोकस करेगा, जो अनुमान के मुताबिक सामान्य रहने की उम्मीद है। -निजी बैंकों पर दंाव लगाना बेहतर है, लेकिन शेयर कीमतों में गिरावट का इंतजार करें। -सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से दूर ही रहें, क्योंकि एनपीए का खतरा बढ़ रहा है। -मुनाफे के लिए एनर्जी फार्मा और एफएमसीजी की ओर रुख किया जा सकता है। -सीमेंट, ऑटो, रीयल्टी और इंफ्रा स्टॉक्स के दूर रहें -मिडकैप शेयरों में तब तक निवेश न करें, जब तक कि आप कंपनी के प्रदर्शन और गवनर्ेंस को लेकर आश्वस्त न हों। ''5 अप्रैल तक बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ 14 फीसद के करीब रहा, जो तीन सालों का निम्नतम स्तर है, क्योंकि बैंकों ने मौद्रिक नीति में कटौती के अनुरूप ब्याज दरों में कटौती नहीं की। उम्मीद की जा सकती है कि 3 से 6 माह में बैंक ब्याज दरें घटाएंगे, क्योंकि रेपो रेट में जनवरी से अब तक 75 आधार अंकों की कटौती हो चुकी है।'' -आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव