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अब परदेस नहीं जाकर गांव में ही करेंगे रोजगार

नगर से करीब 15 किमी दूरी पर स्थित है मुरली गांव। यहां न कोरोना का खौफ है और ना ही लॉकडाउन की पीड़ा।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 06:12 AM (IST)
अब परदेस नहीं जाकर गांव में ही करेंगे रोजगार
अब परदेस नहीं जाकर गांव में ही करेंगे रोजगार

नरकटियागंज। नगर से करीब 15 किमी दूरी पर स्थित है मुरली गांव। यहां न कोरोना का खौफ है और ना ही लॉकडाउन की पीड़ा। यहां प्रदेश में रह रहे ज्यादातर लोग गांव वापस आ चुके हैं। हालांकि कुछ लोग अब भी प्रदेश में फंसे हैं। उनकी वापसी के लिए उनके परिजन को लॉक डाउन टूटने का इंतजार हैं। सोमवार को गांव में सब कुछ पटरी पर दिखा। यहां घर की मरम्मत से लेकर खेत में काम काम होता रहा। यहां के युवा परदेश ना जाकर अब गांव में ही मेहनत मजदूरी कर रहने को तैयार हैं। लॉक डाउन के दौरान घर वापसी के लिए महानगरों में जो भागम भाग की स्थिति उत्पन्न हुई है। वह गांव के लिए सबक बन गई है। उनका मानना है। कि विपत्ति के वक्त कम से कम अपनों के बीच तो रहेंगे। इस गांव के ज्यादातर लोग परदेश में मजदूरी करने चले जाते है। लेकिन अब लोगों ने मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेश में जाने से तौबा कर ली है। अब गांव में ही करेंगे खेती-गृहस्थी परदेश से लौटे दीपक साह ने बताया कि लॉक डाउन की घोषणा के पहले ही छुट्टी में गांव आए और अभी घर पर है। उन्होने बताया कि अपनों के बीच खुद को पाकर सुकून मिला रहा है। अब गांव में ही रह कर खेती गृहस्थी करेंगे। वही परदेश से लौटे अन्य मजदूरों ने बताया कि गांव में अब अपनों के बीच रहकर ही कोई रोजगार कर परिवार का परवरिश करेंगे। दोबारा परदेश नहीं लौटेंगे। लोगों को जागरूक कर रहे परदेस से लौटे छात्र परदेस से गांव लौटे छात्र प्रियांशु कुमार शारीरिक दूरी बनाकर गांव में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वह ग्रामीणों से अपील कर रहे है। कि वह लॉक डाउन का पालन करते हुए ज्यादा समय घर पर बिताएं। घर से निकलते समय मास्क लगाएं और शारीरिक दूरी का ख्याल रखें। बदलने लगी गांव के लोगों की सोच अपने दरवाजे पर बैठे मिले निलय कान्त दुबे ने बताया कि गांव के युवाओं की सोच बदली है। उनमें गांव से जुड़ने की प्रेरणा मिली है। वही कुछ नया करने का जोश जगा है। झोपड़ी की मरम्मत करते मिले राम ने कहा कोरोना के खौफ के चलते भले ही महानगरों में रहने वाले लोग बेचैन हुए हैं। लेकिन सच कहे तो गांव की खुशहाली लौट आई है।

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