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शहर में जहां भी जाएंगे आप, कचरे से होगा सामना

बगहा /रामनगर। ई-कचरा मतलब इलेक्ट्रॉनिक कचरा। शहर में जहां भी जाएंगे कचरा से आपका पीछा नहीं छूटेगा। मेडिकल कचरा की बात हो या फिर ई-कचरा की।

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 09:51 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 09:51 PM (IST)
शहर में जहां भी जाएंगे आप, कचरे से होगा सामना

बगहा /रामनगर। ई-कचरा मतलब इलेक्ट्रॉनिक कचरा। शहर में जहां भी जाएंगे कचरा से आपका पीछा नहीं छूटेगा। मेडिकल कचरा की बात हो या फिर ई-कचरा की। घर एवं प्रतिष्ठानों से निकलने वाले कचरा का तो थोड़ा बहुत निस्तारण किया जा रहा है। लेकिन ई-कचरा का कोई प्रबंधन नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं। तकनीक में हो रहे लगातार बदलावों के कारण उपभोक्ता भी नए-नए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से घर भर रहे हैं। ऐसे में पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देता है और यहीं से आरंभ होती है ई-कचरे की समस्या। प्रतिदिन निकलने वाले ई-कचरा का आकलन नहीं घरों एवं शहर के प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन निकलने वाला ई-कचरा का अनुमान लगाना मुश्किल है। कारण यहां न तो ई-कचरे का प्रबंधन की व्यवस्था है और न ही इस दिशा में सरकारी कोई पहल है। घरों एवं विभिन्न प्रतिष्ठानों से निकलने वाला ई-कचरा ठेला वेंडरों के हाथ कबाड़ के भाव बेचा जाता है। ठेला वेंडर घरों व प्रतिष्ठानों से एकत्रित किए गए ई-कचरा को कबाड़ीवालों के हाथ बेचा जाता है। कई घरों से इस तरह के बेकार उत्पाद को फेंक दिया जाता है। इसे कहते हैं ई-कचरा तकनीक में आ रहे परिवर्तनों के कारण बाजार में उपलब्ध नई इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का क्रय किया जा रहा है और पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को कबाड़ के भाव बेच दिया जाता है या घर से बाहर फेंक दिया जाता है। पुरानी शैली के कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों और अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होता है। ई -कचरे का बढ़ता आयात नेपाल के रास्ते चीन के इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का आयात जिले में बड़ी मात्रा में हो रहा है। चाइनिज इलेक्ट्रॉनिक्स सामान सस्ते हैं और जल्द खराब भी हो जाते हैं। ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून 1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों ने इसका आयात जारी रखा है। तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले खतरे ने चिंता बढ़ा दी है। पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्त्रोत बन रहा है ई-कचरा। बयान

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इस कचरे में लेड, मरकरी, केडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। दरअसल ई-कचरे का निस्तारण आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है। इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है।

-- डॉ. संजय ¨सह, पर्यावरणविद्

बयान:

इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने के उपयोग में आने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है। कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। पर्यावरण में असावधानी व लापरवाही से इस कचरे को फेंका जाता है, तो इनसे निकलने वाले रेडिएशन शरीर के लिए घातक होते है।

डॉ चंद्रभूषण, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, रामनगर इनसेट बयान

ई-कचरे के निपटाने के लिए अभी कोई व्यवस्था नहीं है। साधारण कचरे को वार्डों से उठाया जाता है और खाली जगहों में इसे निस्तारित किया जाता है। कचरा निस्तारण के लिए भूमि की आवश्यकता है। इसके लिए प्रयास किया जा रहा है। ई कचरा बेहद घातक है। इसके लिए लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जा रही है। ई - कचरा के निस्तारण के लिए भी योजना बनाई जाएगी।

-- जितेंद्र कुमार सिन्हा, कार्यपालक पदाधिकारी, रामनगर


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