मुरली में पईन और पुल तय करेगा प्रत्याशी का भाग्य
नरकटियागंज अनुमंडल मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर पश्चिम सुगौली पंचायत का मुरली खरकटवा गांव।
बेतिया । नरकटियागंज अनुमंडल मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर पश्चिम सुगौली पंचायत का मुरली खरकटवा गांव। 90 फीसद किसान बहुल गांव लोगों में नदी पर पुल, खेती किसानी के लिए सिचाई का अभाव विकास में बाधक है। सड़क और शिक्षा की समूचित व्यवस्था नहीं हुई है। कभी इलाके के दर्जनाधिक गांवों में समृद्ध मुरली खरकटवा खेती किसानी में पिछड़ेपन की अपनी दास्तां बयां कर रहा है। गांव के बड़े बुजुर्गों ने कई चुनाव देखें और उनके उम्मीद पानी फिरता रहा। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समस्याओं को यहां के लोगों ने मुद्दा मान लिया है और यहां के लोग उसी को ताज बनाएंगे जो उनकी समस्याओं का समाधान करेगा। प्रस्तुत है रिपोर्ट :
गांव के दक्षिण एक प्राथमिक विद्यालय है। विद्यालय के आगे चमचमाती हुई सड़क। फिर उसके आगे बढ़ते ही गांव शुरू हो जाता है। राघवेंद्र तिवारी, निलय कांत द्विवेदी, प्रदीप मिश्र लोकतंत्र के इस महापर्व मे रहनुमाओं की चर्चा पर बोल पड़े। किसानों के विकास पर किसी को ध्यान नहीं। कभी कच्ची सड़कों के दोनों किनारे पईन से सालों भर पानी मिलता था। फसलें लहलहाती थी। फिर सड़क बनने के साथ ही वह ध्वस्त हो गई। खेती किसानी महंगी हो गई। सिचाई के प्रबंध में किसानों का बजट बिगड़ गया। यही वजह है कि खेती किसानी से युवा पीढ़ी दूर होने लगी है। गांव में अच्छे अच्छे कई घर मगर गांव के उत्तर खरकटवा से बाहर निकलते ही पक्की सड़क की हालत यह कि उस पर चलने से मवेशी भी कतराते हैं। वाहनों का पहिया पंचर होना आम बात है। फूस की झोपड़ी और टाट बनाने में लगे सुखल राम और रामाशीष राम भोजपुरी अंदाज में बोल पड़े कि बाबू, हम लोग देखे हैं। यहां सालों भर पानी नहर में बहता रहता था। जब जिस फसल के लिए पानी की जरूरत हो। पूरी हो जाती थी। खेती को महंगा और किसानों को उसे दूर करने का प्रमुख कारण सिचाई के प्रति उपेक्षा बन रही है। करीब 350 घरों वाले इस गांव में बच्चों की शिक्षा के लिए माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नहीं बना। यहां की बेटियों को काफी दूर जाकर पढ़ना पड़ता है। लेकिन काफी पुराने इस प्राथमिक विद्यालय को उत्क्रमित भी नहीं किया गया। लोग गांव के अतीत को याद कर व्यवस्था के प्रति रोष जताते हैं। करीब चार दशक पूर्व गांव से पश्चिम बावड़ नदी पर अनंत राउत ने एक पुल बनवाया, जिससे आवागमन शुरू हुआ। बाद में सरकारी स्तर पर थोड़ी बहुत मरम्मत कर दी गई। आज वह भी खतरनाक बन चुका है। किसानों को भारी वाहन आने-जाने के समय खतरा बना रहता है। हालांकि बिजली की व्यवस्था गांव को शाम होते ही शहरी लुक देती है। सड़क के लिए खत्म कर दी गई पईन
गांव के किसान व्यवस्था से आहत है। पिछले एक दशक से किसानों की कमर टूट गई है। सड़क निर्माण से लोगों को उम्मीद थी, निर्माण कार्य के दौरान पईन को काटकर सड़क बना दिया गया। तब से खेतों को पानी मिलना बंद हो गया। किसान आनंद किशोर तिवारी और महेंद्र यादव का कहना है कि इसके लिए बार-बार आवाज उठाई गई। मगर आज तक उस कच्ची पईन को नहीं निकाला गया। गन्ना, रबी और खरीफ फसल सभी प्रभावित होते रहे हैं। गर्मी में तो बावड़ नदी में भी पानी अब नहीं रहता। नदी सूख जाती है। किसानों ने यह भी कहा कि पईन को तो नष्ट कर ही दिया गया। अब वह सड़क भी ध्वस्त हो गया है। हालत यह है कि कभी रही कच्ची सड़कें भी आज की उस पक्की सड़क की तुलना में चलने लायक होती थी। ऐसी स्थिति में किसान करे तो क्या?
इनसेट
सुनहले अतीत पर बिछा दी उपेक्षा की चादर
मुरली गांव का अपना एक अलग इतिहास रहा है। यहां आपसी सछ्वाव और मेलजोल इसकी पहचान रही है। हाल के वर्षों तक कभी वैसा विवाद होने नहीं दिया। इस गांव की पहचान लक्ष्मी कांत दुबे, कमल नाथ तिवारी, इंद्रजीत तिवारी, मुनीष मिश्र, चंद्रिका तिवारी, वशिष्ठ तिवारी अनंत राऊत जैसे चर्चित लोगों से रही है। उसके बाद आने वाली पीढि़यां भी कई ऐसे सपूतों को दिया, जिन्हे इलाके के लोग अदब से याद करते हैं। मगर सरकार की उपेक्षा इस गांव को इस कदर अपनी चपेट में ले ली कि यहां के समृद्ध किसान पानी के लिए पानी पानी हो रहे हैं। इलाके के सबसे पुराने विद्यालयों में शामिल इस गांव के प्राथमिक विद्यालय को किसी जनप्रतिनिधि ने उत्क्रमित करने की पहल नहीं की और न हीं सरकारी स्तर पर यहां कोई अस्पताल खुला। इस गांव में कभी एक समृद्ध पुस्तकालय हुआ करता था जो समय के साथ खत्म हो गया। यह गांव स्वतंत्रता सेनानी केदार मणि शुक्ल की कर्मस्थली रही है। उनके वंशज आज भी इस गांव की पहचान में शामिल है। खेती किसानी इस गांव की उन्नति का मुख्य आधार है। लेकिन उपेक्षा से यह चौपट होती जा रही है। गन्ना किसानों की हालत यह कि चालान के लिए मारे मारे फिरते रहे। डीजल और पंपसेट की महंगी व्यवस्था कर से खेतों की सिचाई की जाती है। किसानों की बेहतरी के लिए अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया। और नहीं तो कभी सालों पर पानी के लिए सुनार सिचाई की व्यवस्था सड़क निर्माण के साथ खत्म कर दी गई। किसान शंभू मिश्र, मृत्युंजय कुमार, शैलेश तिवारी का कहना है एक तो कभी मुरली और खरकटवा एक ही पंचायत का हिस्सा हुआ करता था। आपस में सटे हुए ये दोनों गांव बाहरी लोगों की नजर में आज तक अलग नहीं दिखे। लेकिन व्यवस्था की ऐसी नजर पड़ी की मुरली और खरकटवा को दो पंचायतों में बांट दिया गया।