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प्रदूषण की मार और सियासत बेपरवाह

ये रामनगर शहर है। यहां वर्ष के चार माह शासन व प्रशासन की लापरवाही हर सांस पर भारी रहती है। हरिनगर चीनी मिल की चिमनी से निकलने वाली छाई और विषैला धुआं गरीबों की रोजी-रोजगार के साथ जिदगी भी छीन रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 10:52 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 10:52 PM (IST)
प्रदूषण की मार और सियासत बेपरवाह
प्रदूषण की मार और सियासत बेपरवाह

बगहा । ये रामनगर शहर है। यहां वर्ष के चार माह शासन व प्रशासन की लापरवाही हर सांस पर भारी रहती है। हरिनगर चीनी मिल की चिमनी से निकलने वाली छाई और विषैला धुआं गरीबों की रोजी-रोजगार के साथ जिदगी भी छीन रहा है। इसके अतिरिक्त शहर की सड़कों पर उड़ती धूल, धुआं उगलते जेनरेटर, खटारा वाहन, निर्माण कार्यो के लिए स्टेशन परिसर में उतारे जाने वाले पत्थर व बालू वायु प्रदूषण के स्तर को लगातार बढ़ा रहे हैं। लेकिन, इस प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। 20 हजार से अधिक की आबादी को प्रभावित कर रहे प्रदूषण की पड़ताल करती जागरण टीम की रिपोर्ट।

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रामनगर शहर में प्रत्येक वर्ष चीनी मिल के पेराई सीजन में प्रदूषित हवा की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। हरिनगर चीनी मिल की चिमनी से निकलने वाली छाई से करीब 20 हजार की आबादी बुरी तरह से प्रभावित होती है। सड़क पर ठेला लगाकर जीविकोपार्जन के लिए चाट व समोसा बेचने वाले रोजगार बंद कर इन चार महीनों के लिए पलायन कर जाते हैं। लेकिन, जहरीली गैस के बोझ से छटपटाती हवा का दर्द अब तक संसद में नहीं पहुंच पाया। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और जनता से कम वास्ता की वजह से जनप्रतिनिधियों ने इस मुद्दे को कभी गंभीरता के साथ नहीं लिया। एक वजह यह भी रही कि चीनी मिल के पेराई सीजन में जनप्रतिनिधियों व समाजसेवा का ढिंढोरा पीटने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन के प्रतिनिधियों को भी यहां पर्ची के लिए माथा टेकना होता है। सबके सब इस दर्द को समझते हैं, लेकिन आंखें बंद कर बेदर्द की भूमिका निभा रहे हैं। बेलागोला हरिनगर के संजय कुमार कहते हैं कि चाट का ठेला उनकी आजीविका का साधन है। लेकिन, चीनी मिल का पेराई सीजन आरंभ होने के साथ वे चार माह के लिए पंजाब चले जाते हैं। जब मिल बंद होने की घोषणा होती है तो फिर वापस आते हैं और दुकानदारी आरंभ करते हैं। इसी तरह चीनी मिल के समीप की बस्ती बहुअरी और पचरूखिया के लोगों का हाल भी बेहाल रहता है। हरिनगर हाई स्कूल में बच्चे नहीं

चीनी मिल की ओर से बायोफर्टिलाइजर बनाई जा रही है। इसका प्लांट हरिनगर हाईस्कूल के समीप है। जैविक खाद के प्लांट से निकलने वाली बदबू का असर है कि स्कूल में पढ़ने के लिए बच्चे नहीं जाते हैं। यह प्लांट पूरे वर्ष भर संचालित होता है। इसके उत्पाद भी स्कूल के समीप गोदाम में रखे जाते हैं। दसवीं कक्षा का छात्र रोहित कहता है कि इतना प्रदूषण है कि स्कूल जाने का मन नहीं करता। स्कूल के रास्ते में गन्ना लदे वाहनों की भीड़ के कारण कोई छात्र साइकिल व अन्य वाहन से नहीं जा सकता। छात्रों ने कई बार प्रधान शिक्षक से इसकी शिकायत भी की। लेकिन, इसका समाधान उनके स्तर से संभव नहीं है। वायु प्रदूषण से बच्चों की सेहत पर असर

वायु प्रदूषण का स्तर हर दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है। इससे लोगों की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंच रहा है। प्रति दिन स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों को वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। हरिनगर चीनी मिल में प्रदूषण नियंत्रण का संयंत्र लगा हुआ है। यह नियमित रूप से चलता भी है। मिल प्रबंधन की ओर से वायु व जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बेहतर प्रयास किए गए हैं। पौधरोपण आदि का कार्यक्रम भी चलाया जाता है।

-- शंकर लाल बहेती, मुख्य महाप्रबंधक, हरिनगर चीनी मिल

-- 22 अप्रैल को हरिनगर चीनी मिल का पेराई सीजन बंद होने की संभावना

-- 20 हजार की आबादी छाई व धूल से पूरी तरह प्रभावित

-- 04 माह फुटपाथी दुकानदारों का रहता है व्यवसाय प्रभावित

-- 02 इंच मोटी मिल के चिमनी से निकली छाई जम जाती है घर की छतों पर


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