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नहरों में पानी नहीं, कड़ी मेहनत के बावजूद किसान तंगहाल

थरुहट में राजनीतिक पारा चढ़ने लगा है। चौक-चौराहों पर पान से लेकर चाय-नाश्ते की दुकानों तक सुबह की शुरुआत चुनावी चर्चा के साथ ही होती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 12:13 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 12:13 AM (IST)
नहरों में पानी नहीं, कड़ी मेहनत के बावजूद किसान तंगहाल
नहरों में पानी नहीं, कड़ी मेहनत के बावजूद किसान तंगहाल

बगहा । थरुहट में राजनीतिक पारा चढ़ने लगा है। चौक-चौराहों पर पान से लेकर चाय-नाश्ते की दुकानों तक सुबह की शुरुआत चुनावी चर्चा के साथ ही होती है। स्थानीय मुद्दों से लेकर राष्ट्रीय मुद्दे चर्चा का केंद्र बनते हैं। थारू बहुल हरनाटांड़ में वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशियों को कसौटी पर कसा जा रहा है। हालांकि, अभीतक सिर्फ एनडीए गठबंधन ने ही अपने उम्मीदवार की घोषणा की है। महागठबंधन का चेहरा अभी सामने नहीं। कुछ नेताओं के चुनावी समर में उतरने की चर्चा जोरों पर है। इलेक्शन ट्रेवल से रिपोर्ट। सुबह के करीब 10:30 बज रहे हैं। बस में यात्रियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। बस हरनाटांड़ से बगहा के लिए खुल चुकी है। करीब घंटे भर में बस गंतव्य तक पहुंचेगी तो चुनावी चर्चा शुरू हो चुकी है। मझौवा निवासी बुजुर्ग धीरेंद्र राय कहते हैं कि बीते पांच साल में सरकार द्वारा कई वादे किए गए। जिसमें कई धरातल पर उतर नहीं सके। चुनाव का वक्त आया है तो कई लोग नजर आ रहे हैं। लेकिन, हमारे थरुहट का उत्तरी इलाका आज भी असिचित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। खेत सूख रहे हैं। कड़ी मेहनत के बावजूद किसान तंगहाली झेलने को विवश हैं। राजनीतिक पार्टियां हम थरुहट के लोगों पर केवल उम्मीदवार थोपना जानती हैं। लेकिन अब उम्मीदवारों के चयन को लेकर थरुहट के लोग काफी संजीदा हो गए हैं। हमें विकास के साथ-साथ सही उम्मीदवार की भी चयन जरूरी है। एक ऐसे उम्मीदवार की जरूरत है जो हमारे क्षेत्र में आए और हम लोगों का हाल भी जाने। बस में बैठे लौरिया के रामचंद्र पटेल कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती हैं। उम्मीदवारों के चयन में राजनीतिक पार्टियों को ध्यान देना चाहिए। वोट देना तो हमारा अधिकार है, लेकिन इस बार अपने अधिकार का सही प्रयोग करना है और अगर उम्मीदवार पसंद नहीं आया तो हमारे पास नोटा का भी विकल्प है। वहीं उनकी बातों का जवाब देते हुए युवा जोश से लबरेज अविनाश कुमार सिंह सकते हैं कि भाई कुछ भी हो और उम्मीदवार चाहे जो भी आए। जब बात देश की आएगी तो हम खुलकर उसका समर्थन करेंगे। जो देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर रहा है। आज हमारे देश को एक ऐसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री की आवश्यकता है जो देश ही नहीं विदेशों में भी हमारी बात रखे। आज गैस सिलिंडर घर- घर आ गया। इसके लिए आज कतार में नहीं लगनी पड़ती। हर घर बिजली पहुंच गई। हर किसी का अपना बैंक खाता खुल गया। आज हर जरूरतमंद गरीब आयुष्मान भारत योजना का लाभ उठा रहे हैं। मुद्रा लोन से लेकर स्वरोजगार को बढ़ावा दिया गया है और इसके साथ साथ हमारा देश भी सुरक्षित हो रहा है। आज हमारे देश की तरफ आंख उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है। ऐसे में देशहित में हमें एक मौका और देना जरूरी है। क्योंकि अब देश की मांग है कि हमें स्थानीय छोटे-मोटे मुद्दों से ऊपर उठकर भी सोचना पड़ेगा। तब जाकर हमारे देश का भला हो सकेगा और जब देश का भला होगा तो हमारा भी भला होगा। सुधीर कुमार ने स्थानीय मुद्दे गिनाते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है जब मतदाता स्थानीय स्तर के मुद्दों पर भी विचार करने के बाद सोच समझकर अपना मत ऐसे प्रत्याशी को दें जो उनके हक की लड़ाई लड़े। चर्चाओं के बीच बस बगहा पहुंच चुकी थी। इसलिए यात्री अपने अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए।

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न तो ट्रेनों की संख्या बढ़ी और न ही सड़क की हालत सुधरी :-

चुनावी चर्चा के दौरान युवा पंकज सोनी ने रोजगार मुहैया कराने की वकालत की। ताकि मजदूरों का पलायन रुक सके। रेल और सड़क यातायात पर भी चर्चा छिड़ी। ट्रेनों के अनियमित परिचालन से यात्री खासे नाराज दिखे। मुकेश कुमार ने सड़क की बदहाली का मुद्दा उठाते हुए कहा कि मदनपुर से होकर पनियहवा तक जाने वाली सड़क बदहाल है। बीते कई वर्षों से यह सड़क चुनावी मुद्दा बनती आ रही है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। नेशनल हाईवे होने के बावजूद आज उसकी दुर्दशा विकास का माखौल उड़ा रही है। जो नेता इसे अपने मुद्दे में रखेगा उसे ही वोट मिलेगा। वहीं विकास जायसवाल ने कहा कि नेताओं को केवल वोट से मतलब है। जनता की परेशानी से उन्हें कोई मतलब नहीं है। ना तो सवारी ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है और ना ही ट्रेनों के टाइमिग में सुधार हो रहा है। कोई ध्यान देने वाला नहीं है। गरीबों के लिए कोई साधन नहीं है। 20 किमी की दूरी तय करने में घंटों लग जा रहे हैं। इन मुद्दों पर भी हुई चर्चा :-

किसानों की समस्या, सिचाई की बदहाल व्यवस्था, उच्च शिक्षा की स्थापना, रोजगार का अभाव, चिकित्सीय व्यवस्था, आदिवासियों के अधिकार, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, जल निकासी की व्यवस्था आदि।


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